वर्तमान समय में पॉपकॉर्न को अगर दुनिया का सबसे लोकप्रिय स्नैक कहा जाए तो गलत नहीं होगा. पॉपकॉर्न को फिल्म देखते वक़्त खाएं या शाम की चाय के साथ खाएं, दोस्तों एवं परिजनों के साथ गप्पें मारते वक़्त खाएं या कुछ पढ़ते-लिखते हुए अकेले खाएं, यह हर मौके और माहौल के साथ एकदम फिट बैठने वाला स्नैक है. यह हल्का और सेहतमंद भी होता है. लेकिन क्या आपको पता है कि पहली बार पॉपकॉर्न कहां खाया गया था अर्थात इसकी शुरुआत कहां से हुई थी? इस लेख में हम पॉपकॉर्न खाने की शुरुआत से संबंधित विभिन्न तथ्यों का विवरण दे रहे हैं.
“पॉपकॉर्न” खाने की शुरुआत
यूँ तो पॉपकॉर्न पूरी दुनिया में खूब खाया जाता है, लेकिन पॉपकॉर्न खाने की सबसे पुरानी मिसाल अमेरिकी महाद्वीपों में मिलती है. पुरातत्वविदों द्वारा किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों के परिणामस्वरूप उत्तरी और दक्षिणी अमरीका में रहने वाले रेड इंडियन जाति के लोगों के ठिकानों से इसके दाने मिले हैं. इससे पता चलता है कि अमेरिका के मूल निवासी इसे खाया करते थे. वहां बसने गए यूरोपीय लोगों ने भी पॉपकॉर्न को अपना लिया था.
अमेरिका में सर्वाधिक खाया जाता है “पॉपकॉर्न”
आज पॉपकॉर्न का नशा पूरी दुनिया के सिर चढ़कर बोल रहा है. लेकिन इसका सर्वाधिक सेवन अमेरिकी नागरिकों द्वारा किया जाता है. एक अमेरिकी नागरिक हर साल औसतन पचास लीटर पॉपकॉर्न खा जाता है. वहीं ब्रिटेन में पिछले पांच सालों में पॉपकॉर्न की बिक्री में 169 फीसद का उछाल देखने को मिला है.
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पॉपकॉर्न प्राप्त करने के लिए विशेष प्रकार के भुट्टे का इस्तेमाल किया जाता है
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आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि “पॉपकॉर्न” मक्के के उस भुट्टे से नहीं प्राप्त होता है, जिसे हम आमतौर पर खाते हैं. वास्तव में “पॉपकॉर्न” मक्के की एक खास नस्ल से तैयार होता है. पॉपकॉर्न वाले मक्के के दाने की ऊपरी परत, आम भुट्टों के दानों से चार गुना मोटी होती है. ये चमड़ी ही इसके फटने की असल वजह होती है. इसकी वजह से ही दाने जलने के बजाय फटने लगते हैं. तापमान बढ़ने के साथ दानों के भीतर दबाव बढ़ता जाता है और जब ये दबाव बर्दाश्त से बाहर हो जाता है, तो दाने फट पड़ते हैं. लगभग 200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर जब दाने फटती है तो इसमें से पॉपकॉर्न निकलता है. वैज्ञानिकों ने तजुर्बे से पाया है कि आप पॉपकॉर्न के दाने पर दबाव बढ़ाकर उसे दोगुने आकार का कर सकते हैं. ऐसे में जब वो भूनने पर फटेगा तो पॉपकॉर्न और बड़ा होगा.
पॉपकॉर्न के बारे में वैज्ञानिक थॉमस हार्पर गुडस्पीड के विचार
मशहूर अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस हार्पर गुडस्पीड ने पॉपकॉर्न के बारे में बड़ा दिलचस्प किस्सा बयां किया है. वह 1941 में छपी अपनी क़िताब “प्लांट हंटर्स इन द एंडीज” में लिखते हैं कि उन्हें चिली के वैज्ञानिकों से करीब हजार साल पुराने पॉपकॉर्न के दाने मिले थे. एक दिन गुडस्पीड को सूझा कि क्यों ना इन दानों को भूना जाए. हालांकि गुडस्पीड को यकीन नहीं था कि वह दाने भुन जाएंगे. मगर तेज आंच में पकाने पर वह दाने फटने लगे, जैसे अभी पिछले साल की फसल के दाने हों.
पॉपकॉर्न भूनने की मशीन
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दुनिया भर में पॉपकॉर्न को अलग-अलग तरह से भूना जाता है. चीन में अक्सर सड़कों के किनारे लोहे के ड्रम के भीतर इन्हें भूना जाता है, जिनका मुंह खुला रहता है. जब दाने फटने को होते हैं, तो भूनने वाले इसके ऊपर कैनवस का झोला लगा देते हैं और फूटते हुए दाने उसमें भर जाते हैं. भारत में भी आपने पॉपकॉर्न को लोहे की कड़ाही में भुनते हुए देखा होगा, लेकिन, अमरीका में इसे बड़ी मशीनों में भूना जाता है.
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पॉपकॉर्न भूनने वाली मशीन का आविष्कार
पहली बार पॉपकॉर्न भूनने वाली मशीन 1885 में सामने आई थी. इसे अमरीका के इलिनॉय सूबे के चार्स् क्रेटर्स ने बनाया था. जोकर जैसा दिखने वाला एक आदमी इस मशीन की नुमाइश करता था.
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खाने-पीने के इतिहासकार एंड्रयू स्मिथ लिखते हैं कि चार्ल्स क्रेटर और उनके सहायक अपनी पॉपकॉर्न भूनने की मशीन को 1893 के वर्ल्ड फेयर में लेकर गए थे. वहां दोनों आवाज़ लगाकर लोगों को पॉपकॉर्न चखने के लिए बुलाते थे और एक बैग पॉपकॉर्न मुफ्त में देने का वादा करते थे. स्मिथ के मुताबिक इस मशीन को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. पॉपकॉर्न को भुनते देख लोग काफी उत्साहित हुए थे. उन्हें पॉपकॉर्न का स्वाद भी पसंद आया था। आज भी चार्ल्स क्रेटर की कंपनी अमेरिका में पॉपकॉर्न भूनने वाली मशीन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है.
आज लोग पॉपकॉर्न को अच्छी सेहत के लिए भी खाना पसंद करते हैं. भले ही आप इसे नमकीन, मक्खन वाला स्नैक समझते हों, जिसे फिल्म देखते वक्त खाया जाता हो, लेकिन बिना नमक और मक्खन का यह दाना बहुत कम फैट वाला होता है. मार्केटिंग करने वाले इसे बहुत सेहतमंद खाने के तौर पर बेचने में जुटे हुए हैं. पॉपकॉर्न की यही खूबी अमेरिका और ब्रिटेन में इसकी बढ़ती डिमांड की सबसे बड़ी वजह है.
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