भारत का सबसे पहले आजाद होने वाला जिला कौन-सा है, जानें

भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी। इसके बाद भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बना। हालांकि, यहां तक पहुंचने में भारत वासियों को लंबा संघर्ष करना पड़ा। इस बीच कई वीर सपूतों को अपने प्राण न्यौछावर भी करने पड़े, जबकि कई स्वतंत्रता सेनानी लंबे समय तक संघर्ष करते रहे। इसके बाद अंत में भारत को आजादी मिली। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि भारत के आजाद होने से पहले ही भारत का ही एक जिला आजाद हो चुका था। यह जिला कहीं और नहीं बल्कि उत्तर भारत में स्थित उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। कौन-सा है यह जिला और क्या है इसके आजाद होने की कहानी, जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें। 

Nov 17, 2023, 14:28 IST
सबसे पहले आजाद जिला
सबसे पहले आजाद जिला

यह बात हम सभी जानते हैं कि भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। भारत को आजादी दिलाने में कई वीर सपूतों ने अपना बलिदान भी दिया। इसके साथ ही कई स्वतंत्रता सेनानियों ने लंबे समय तक संघर्ष किया, जिसके बाद भारत को आजादी मिली। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि भारत के आजाद होने से पहले ही एक जिला आजाद हो गया था। यह जिला उत्तर भारत में स्थित उत्तर प्रदेश का ही एक जिला है। कौन-सा है यह जिला और क्या है इसके पीछे की कहानी, जानने के लिए यह लेख पढ़ें। 

 

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कौन-सा जिला सबसे पहले हुआ था आजाद

आपको बता दें कि भारत में उत्तर प्रदेश में स्थित बलिया जिला सबसे पहले आजाद होने वाला जिला था, जो कि 19 अगस्त 1942 को आजाद हो चुका था। 

 

कैसे आजाद हुआ था जिला

मुंबई में नौ अगस्त 1942 को महात्मा गांधी द्वारा अधिवेशन करने के बाद देशभर में आजादी की क्रांति तेज हो गई थी। इस कड़ी में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में भी इसका शंखनाद हो चुका था। ब्रिटिश सरकार ने बलिया के चित्तू पांडे समेत कई स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डाल रखा था, जिसके बाद स्थानीय लोग 9 अगस्त की शाम को जिला कारगर के बाहर इकट्ठा हो गए थे और अपने नेताओं को रिहा करने की मांग कर रहे थे।

 

इसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी जगदीश्वर निगम और पुलिस अधीक्षक रियाजुद्दीन मौके पर पहुंचे और जेल में बंद आंदोलनकारियों से मुलाकात की और उन्हें रिहा किया। इसके बाद जिले के सभी सरकारी कार्यलयों पर चित्तू पांडे, राधेमोहन और विश्वनाथ चौबे के नेतृत्व में लोगों ने तिरंगा झंडा फहरा दिया। 19 अगस्त 1942 को यहां के लोगों ने भारत के इस जिले को स्वतंत्र घोषित कर यहां ब्रिटिश सरकार के समानांतर स्वतंत्र बलिया प्रजातंत्र  सरकार का गठन किया। 

 

अंग्रेजों ने जब फिर से कर लिया कब्जा 

अंग्रेजी हुकूमत ने इस जिले में फिर से कब्जा करने की कोशिश की। इस कड़ी में ब्रिटिश गवर्नर जनरल हैलट ने वाराणसी के कमिश्नर नेदर सोल को भेजा, जहां उन्होंने अपने सिपाहियों के साथ गोलियां चलाकर 22 अगस्त की रात ही थाने और सरकारी कार्यालयों पर कब्जा करना शुरू कर दिया।

वहीं, स्थिति को गंभीर होता हुआ देख प्रयागराज से लेफ्टिनेंट मार्क्स स्मिथ भी पहुंच गए और ब्रिटिश हुकूमत के तहत सभी सरकारी कार्यालय और थानों व तहसील पर अपना कब्जा करना शुरू कर दिया। इस प्रकार सितंबर के पहले सप्ताह में कई लोगों के शहीद होने के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने फिर से बलिया जिले को अपनी हुकूमत के तहत अधीन कर लिया और चित्तू पांडे समेत अन्य आंदोलनकारियों को फिर से जेल में डाल दिया। 

 

बागी बलिया के नाम से है मशहूर

आपने अक्सर सुना होगा कि बलिया जिले को बागी बलिया कहा जाता है। इसके पीछे इतिहास की यही घटना मशहूर है। इसके तहत यहां के आंदोलनकारी ने ब्रिटिश हुकूमत को घुटना टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। आज भी इस दिन को इस जिले में याद किया जाता है और यहां वीर सपूतों को श्रद्धांजलि दी जाती है।

 

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Kishan Kumar
Kishan Kumar

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