भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। वहीं, एशिया में चीन के बाद यह दूसरे पायदान पर है। रेलवे में प्रतिदिन 2.5 करोड़ से अधिक यात्री करीब 13 हजार पैसेंजर ट्रेनों में सफर कर अपनी मंजिलों तक पहुंचते हैं। ये ट्रेनें करीब 8 हजार स्टेशनों से गुजरती हैं और इस तरह रेलवे की ट्रेनें 67 हजार से अधिक किलोमीटर का सफर तय करती हैं। आपने भी रेलवे में जरूर सफर किया होगा और रेलवे का टॉयलेट जरूर इस्तेमाल किया होगा। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि रेलवे को अपना पहला टॉयलेट एक घटना के बाद मिला था, क्या थी वह घटना, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
56 सालों तक बिना टॉयलेट पटरी पर दौड़ी ट्रेनें
भारत में रेलवे की शुरुआत 1853 में हो गई थी। हालांकि, उस समय ट्रेनों में टॉयलेट की सुविधा नहीं थी। यदि किसी यात्री को शौच जाना होता था, तो उसे ट्रेन का स्टेशन पर रूकने का इतंजार करना होता था। ऐसे में कई बार यात्रियों की ट्रेन छुट जाती थी। भारत में ट्रेनों ने करीब 56 सालों तक बिना टॉयलेट के ही पटरियों पर दौड़ना जारी रखा था।
1909 में मिला पहला टॉयलेट
भारतीय रेलवे को अपना पहला टॉयलेट साल 1909 में मिला था। हालांकि, इसके लिए एक घटना जिम्मेदार थी, जिसने रेलवे में ब्रिटिश अधिकारियों को सोचने पर मजबूर कर दिया और ट्रेनों तक टॉयलेट की सुविधा पहुंची थी।
अखिल चंद्र सेन को करें धन्यवाद
साल 1909 में पश्चिम बंगाल में आखिल चंद्र सेन ट्रेन से सफर कर रहे थे। इस दौरान उन्हें पेट दर्द हुआ और उन्होंने ट्रेन का स्टेशन पर रूकने का इंतजार किया। ट्रेन अहमदनगर स्टेशन पर रूकी और अखिल चंद्र सेन शौच के लिए स्टेशन पर उतर गए। हालांकि, इस दौरान ट्रेन चल गई। इस बीच अखिल दौड़ते हुए ट्रेन के पीछे भागे और उनकी धोती खुल गई, जिससे वह गिर पड़े। इससे स्टेशन पर उनका मजाक उड़ा। वह इस घटना से इतना नाराज हुए कि उन्होंने रेलवे अधिकारियों को एक पत्र लिख डाला, जिसमें उन्होंने रेलवे गार्ड पर जुर्माना लगाने की बात कही, नहीं तो यह खबर अखबार में देने की भी बात कही।
रेलवे अधिकारियों ने शुरू की कवायद
रेलवे अधिकारियों ने सेन के इस पत्र पर संज्ञान लिया और यात्रियों की मजबूरी समझी। उन्होंने 50 मील से अधिक यात्रा करने वाली ट्रेनों में टॉयलेट की सुविधा की कवायद शुरू कर दी। वहीं, सेन के इस पत्र को संभालकर रखा। आज भी आप इस पत्र को रेलवे विभाग के पास देखते हैं। भारतीय रेलवे द्वारा इसे भारतीय रेल संग्राहलय में रखा गया है, जिसमें इस घटना का जिक्र किया गया है। इस घटना के बाद से रेलवे में शौच क्रांति हुई और धीरे-धीरे सभी ट्रेनों में टॉयलेट की सुविधा पहुंच गई।
पढ़ेंःउत्तर प्रदेश में कौन-सा जिला कहलाता है ‘गन्ने का शहर’, जानें
Comments
All Comments (0)
Join the conversation