भारत में राजपूतों का उदय हर्षवर्धन की मृत्यु और प्रतिहार साम्राज्य के विघटन का परिणाम थाl 7वीं शताब्दी से लेकर अगले 500 वर्षों तक भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर राजपूतों का प्रभुत्व रहाl पुराणों, महाभारत और रामायण जैसे पवित्र ग्रंथों के अनुसार राजपूतों की मुख्यतः तीन वंशावली हैं, जिन्हें सूर्यवंश, चंद्रवंश या सोमवंश और अग्निवंश के नाम से जाना जाता हैl
प्रमुख राजपूत राजवंश, उसकी राजधानी एवं संस्थापकों की सूची
राजपूत राजवंश | राजधानी | संस्थापक |
दिल्ली-अजमेर के चौहान/चाहमान | दिल्ली | वासुदेव |
कन्नौज के प्रतिहार/परिहार | अवन्ति, कन्नौज | नागभट्ट I |
मालवा के पवार/परमार | उज्जैन,धार | सीअक II “श्री हर्ष” |
काठियावाड़ के चालुक्य/सोलंकी | अन्हिलवाड़ा | मूलराज I |
माल्खंड के राष्ट्रकूट | माल्खंड/मान्यखेत | दंतिदुर्ग (दंति वर्मन II) |
जाजकभुक्ति के चंदेल | खजुराहो, महोबा, कालिंजर | नन्नुक चंदेला |
चेदी के कल्चुरी/हैहया | त्रिपुरी | कोक्कल I |
कन्नौज के गहड़वाल/राठौर | कन्नौज | चन्द्रदेव |
हरियाणा और दिल्ली के चारों ओर के तोमर | ढिल्लीका | अनंगपाल सिंह तोमर |
मेवाड़ के गुहीलोटा/सिसोदिया | चित्तौड़ | बप्पा रावल, हम्मीर I |
राजपूतों का संबंध भारतीय उपमहाद्वीप के क्षत्रिय परिवारों से था। उन्होंने राजस्थान, सौराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू, पंजाब, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और बिहार में योद्धाओं, उद्यमियों और जमीनदार (भूमि मालिक) के रूप में शासन कियाl
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