मनुष्य ने वैज्ञानिक रूप से बहुत तरक्की की है. विज्ञान एवं तकनीकी, शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्तरिक्ष विज्ञान में प्रगति इसके पुख्ता प्रमाण हैं.लेकिन वैज्ञानिक विकास के साथ साथ चुनौतियाँ भी नए रूप में सामने आतीं रहतीं हैं.वर्तमान में विश्व के सामने सबसे बड़ी समस्या कोरोना वायरस के फैलने की है.
कोरोना वायरस 100 से अधिक देशों में पहुँच चुका है और इससे मरने वालों की संख्या दिन व दिन बढती ही जा रही है.यही कारण है कि हर देश और सरकार इसके विस्तार को रोकने के लिए तरह तरह के उपाय कर रही है.
अभी हाल ही में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा के माध्यम से 123 साल पुराने कानून Epidemic Disease Act 1897 के सेक्शन 2 को लागू करने का फैसला लिया है.
एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा 2 के प्रावधानों को लागू करने का निर्णय कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता में एक समीक्षा बैठक में 11 मार्च को लिया गया था.
कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने कहा कि “बैठक में यह निर्णय लिया गया कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा Epidemic Disease Act 1897 की धारा 2 के प्रावधानों को लागू करने की सलाह दी जानी चाहिए ताकि स्वास्थ्य मंत्रालय की सभी सलाहों को ठीक से लागू किया जाये.
अब यह जानते हैं कि आखिर यह एपीडेमिक डिजीज एक्ट,1897 क्या होता है और इसे लागू करने का फैसला भारत सरकार ने क्यों किया है.
एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 के बारे में(About Epidemic Disease Act, 1897)
इस एक्ट में कुल मिलाकर 4 सेक्शन हैं और संभवतः यह सबसे छोटा एक्ट है. इस एक्ट के सेक्शन 2 में इसे लागू करने के लिए कुछ शक्तियां राज्य और सेक्शन 2 (A) की शक्तियां केंद्र सरकार को किसी महामारी को दूर करने या कण्ट्रोल करने के लिए दी गयीं हैं.
एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा-2 में लिखा है,
जब राज्य सरकार को किसी समय ऐसा लगे कि उस राज्य के किसी भाग में किसी ख़तरनाक महामारी फ़ैल रही है या फ़ैलने की आशंका है, तब अगर राज्य सरकार ये समझती है कि उस समय मौजूद क़ानून इस महामारी को रोकने के लिए नाकाफ़ी हैं, तो राज्य सरकार कुछ उपाय कर सकती है. इन उपायों में लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम बताये जाते हैं.
इसी एक्ट की धारा 2b में राज्य सरकार को यह अधिकार होगा कि वह;
रेल या बंदरगाह या अन्य प्रकार से यात्रा करने वाले व्यक्तियों को, जिनके बारे में निरीक्षक अधिकारी को ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा और यदि कोई संदिग्ध संक्रमित व्यक्ति है तो उसकी जांच भी किसी निरीक्षण अधिकारी द्वारा करवा सकती है.
एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा-2 (A) में लिखा है,
इनमें कहा गया है कि जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फ़ैल चुकी है या फैलने की संभावना है और केंद्र सरकार को यह लगता है कि मौजूदा कानून इस महामारी को रोकने में सक्षम नहीं हैं तो वह (केंद्रीय सरकार) कुछ कड़े कदम उठा सकती हैं जिनमें शामिल हैं; किसी भी संभावित क्षेत्र में आने वाले किसी व्यक्ति, जहाज का निरीक्षण कर सकती है.
एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा-3 में लिखा है,
इसमें एक सख्त प्रावधान भी है. अगर Epidemic Diseases Act, 1897 का सेक्शन 3 लागू हो गया, तो महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा और इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पीनल कोड की धारा 188 के तहत सज़ा मिल सकती है.
इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति इस बीमारी को रोकने के लिए कोई अच्छा कदम उठाता है तो उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी.
महामारी अधिनियम 1987 में संशोधन (Amendments in Epidemic Disease Act, 1987)
1. नए संशोधनों में यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा करता है तो उसको 7 साल तक की कैद के साथ भारी जुर्माना भी भरना पड़ेगा. अपराध को गैर-जमानती अपराध भी बनाया गया है.
2. स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा के अपराधों को भी संज्ञेय और गैर-जमानती बनाया गया है. ऐसे मामलों में जांच 30 दिनों के भीतर की जाएगी.
3. दोषी पाए जाने वालों को 3 महीने से लेकर 5 साल तक की जेल की सजा सुनाई जाएगी और 50000 से 2 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगेगा.
इस प्रकार ऊपर दिए गए लेख से यह स्पष्ट है कि भारत सरकार कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. उम्मीद है कि Epidemic Diseases Act,1897 के प्रावधान लागू होने से इस बीमारी को देश में फैलने से रोकने में मदद मिलेगी.
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