गैल्वेनिक सेल क्या है और यह कैसे काम करता है?

Mar 15, 2017, 18:41 IST

गैल्वेनिक सेल एक ऐसा उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल देता है और इसे बैटरी भी कहा जाता है। इस लेख में गैल्वेनिक कोशिकाओं (सेल) के महत्वपूर्ण घटक और यह कैसे काम करता हैं के बारें में अध्ययन करेंगे |

गैल्वेनिक सेल एक ऐसा उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल देता है। यह विद्युत रसायन विज्ञान का आम अनुप्रयोग है जिसे बैटरी भी कहा जाता है। इसका आविष्कार लुइगी गैलवानी और एलेसेंड्रो वोल्टा (Luigi Galvani and Alessandro Volta ) द्वारा किया गया था जिसमें वोल्टेज बनाने की क्षमता है।
 Galvanic Cell
इस सेल में एक कंटेनर होता है जिसमें सांद्र कॉपर सल्फेट (सीयूएसओ4) का तरल इसके अंदर रखा जाता है और कॉपर रॉड को तरल CuSO4  के अंदर डाला जाता है जो कि कैथोड की तरह काम करता है। इस कंटेनर के अंदर एक छिद्रयुक्त कंटेनर रखा जाता है जिसमें सांद्र सल्फ्यूरिक एसिड (H2SO4) भर दिया जाता है जिसमें जस्ता (जिंक) छड़ी डाली जाती है जो कि एनोड की तरह कार्य करती है। इस प्रकार जब एक तार तांबे की छड़ी और जस्ता (जिंक) छड़ी के माध्यम से जुड़ा होता है तो विद्युत प्रवाह शुरू होता है।

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गैल्वेनिक कोशिकाओं (सेल) के महत्वपूर्ण घटक:

- एनोड एक इलेक्ट्रोड होता है जहां ऑक्सीकरण होता है।

- कैथोड एक इलेक्ट्रोड है जहां रिडक्शन (पराभाव) होता है।

- साल्ट ब्रिज वोल्टिक सेल में सर्किट को पूरा करने के लिए आवश्यक इलेक्ट्रोलाइट्स का एक कक्ष है।

- ऑक्सीकरण और रिडक्शन (पराभाव) प्रतिक्रियाएं डिब्बों में विभाजित होती हैं जो हाफ-सेल्स कहलाती हैं।

- बाहरी सर्किट का उपयोग वोल्टिक सेल के इलेक्ट्रोड के बीच इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह को संचालित करने के लिए किया जाता है और आमतौर पर लोड को शामिल करता है।

- भार यानी कि लोड सर्किट का ऐसा हिस्सा है जो कुछ कार्यों (फ़ंक्शन) को करने के लिए इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह का उपयोग करता है।

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गैल्वेनिक सेल कैसे काम करते हैं?

गैल्वेनिक सेल में दो प्रवाहकीय इलेक्ट्रोड होते हैं, जिन्हें एनोड (anode) और कैथोड (cathode) कहा जाता है। एनोड एक इलेक्ट्रोड होता है जहां ऑक्सीकरण होता है। कैथोड एक इलेक्ट्रोड है जहां रिडक्शन (पराभाव) होता है। इलेक्ट्रोड किसी भी पर्याप्त प्रवाहकीय सामग्री से बन सकते हैं, जैसे धातु, अर्धचालक, ग्रेफाइट और यहां तक कि प्रवाहकीय पॉलिमर। इन इलेक्ट्रोड के बीच में इलेक्ट्रोलाइट होता है, जिसमें आयन शामिल होते हैं जो स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ सकते हैं।
सेल दो अलग-अलग धातु इलेक्ट्रोड का प्रयोग करती है, प्रत्येक में इलेक्ट्रोलाइट तरल होता है। एनोड को ऑक्सीकरण से गुजरना होगा और कैथोड को रिडक्शन (पराभाव) से। एनोड की धातु ऑक्सीडियस होगी, जो कि 0 (ठोस रूप में) ऑक्सीकरण अवस्था से सकारात्मक ऑक्सीकरण अवस्था तक जाकर आयन बन जाएगी। कैथोड में, तरल में धातु आयन कैथोड से एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉनों को स्वीकार करेगा, और आयन की ऑक्सीकरण स्थिति 0 से घट जाएगी। यह एक ठोस धातु बनाता है जो कैथोड पर जमा हो जाता है। कैथोड की सतह पर आयनों के लिए इस कनेक्शन के माध्यम से एनोड की धातु छोड़ने और प्रवाह करने वाले इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह की इजाजत देने के लिए दो इलेक्ट्रोडों को विद्युत रूप से एक दूसरे से जुड़ा होना चाहिए। इलेक्ट्रॉनों का यह प्रवाह एक विद्युतीय प्रवाह है जो काम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे कि मोटर चालू करने या प्रकाश को जलाने के लिए।

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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