ध्रुवीय प्रवर्धन से आप क्या समझते हैं?

May 14, 2018, 12:24 IST

जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है। उसी प्रकार ध्रुवीय क्षेत्र में बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग का अवलोकन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और जलवायु मॉडल के प्रयोग से किया जाता है। यहां, हम सामान्य जागरूकता के लिए ध्रुवीय प्रवर्धन के सिद्धांत और उसके आधार के बारे में बताया है जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।

What is Polar amplification HN?
What is Polar amplification HN?

जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के प्रतिमान में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है। उसी प्रकार ध्रुवीय क्षेत्र में बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग का अवलोकन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और जलवायु मॉडल के प्रयोग से किया जाता है। आमतौर पर वैश्विक तापमान में, ध्रुवीय प्रवर्धन समान अवधि के दौरान व्यापक संदर्भ परिवर्तन के साथ ध्रुवीय तापमान में परिवर्तन के अनुपात के आकलन के समानार्थी बन गया है।

ध्रुवीय प्रवर्धन (Polar amplification) क्या है?

ध्रुवीय प्रवर्धन ऐसी जलवायु मॉडल है जो ध्रुवीय क्षेत्र में जलवायु प्रतिक्रियाओं के कारण बढ़ रही वार्मिंग की भविष्यवाणी करता है। दुसरे शब्दों में, जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवी क्षेत्र को गोलार्ध या ग्लोब के बाकी हिस्सों की तुलना में ध्रुव के पास ग्रीनहाउस गैसों की एकाग्रता (GHGs) के कारण जलवायु परिवर्तन होता है तो उसे ध्रुवीय प्रवर्धन कहा जाता है।

वैसे तो तापमान, जल वाष्प और बादलों से जुड़े मूल्यांकन प्रभावों को ध्रुवीय क्षेत्र में वार्मिंग के लिए योगदान माना जाता है लेकिन सतह अल्बेडो मूल्यांकन में हिमनद का पिगलना और सौर विकिरण की सतह अवशोषण में वृद्धि को अहम् कारण माना जाता है।

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ध्रुवीय क्षेत्र प्रवर्धन (Polar region amplification) के आधार

1. बादल कवर में परिवर्तन

2. वायुमंडलीय जल वाष्प में वृद्धि

3. निम्न अक्षांशों से वायुमंडलीय गर्मी का परिवहन

4. समुद्री बर्फ का घटना

ध्रुवीय प्रवर्धन एकमात्र जलवायु मॉडल है जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक संकोचन के मुद्दे पर वैश्विक जागरूकता लाने का कार्य करती है। प्रक्षेपण के अनुसार, सन 2060 और 2080 के बीच आर्कटिक ग्रीष्मकालीन बर्फ कम हो सकती है। इसलिए, ध्रुवीय क्षेत्र को अक्सर जलवायु परिवर्तन के उच्च संवेदनशीलता संकेतक के रूप में देखा जाता है। सबसे सरल और महत्वपूर्ण जलवायु मॉडल जो दोनों ध्रुवों पर वार्मिंग की भविष्यवाणी करता हैं, लेकिन यह उल्लेखनीय है कि अंटार्कटिका अभी आर्कटिक जितना गर्म नहीं हुआ है।

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Education Desk

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