बीआर गवई ने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने उन्हें पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई है। खास बात यह है कि उनके परिवार का राजनीति से गहरा नाता रहा है। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई हैं, जो दिग्गज नेता रहे हैं।
भारत की राजनीति में उन्हें दादासाहेब नाम से जाना जाता है। जस्टिस गवई नया नाम नहीं है, बल्कि भारत में लिए गए महत्त्वपूर्ण फैसलों से उनका नाम जुड़ा हुआ है। इस लेख में हम बीआर गवई द्वारा भारत से जुड़े 5 बड़े फैसलों के बारे में जानेंगे।
कौन हैं बीआर गवई
बीआर गवई का पूरा नाम भूषण रामकृष्ण गवई है। वह देश के पहले बौद्ध और दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश बने हैं। उनसे पहले केजी बालकृष्णन ने साल 2007 में मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला था।
जम्मू-कश्मीर का मुद्दा
केंद्र सरकार द्वारा जब 2019 में जम्मू-कश्मीर को लेकर अनुच्छेद 370 और 35ए के तहत मिले विशेष प्रावधान को हटाने का निर्णय लिया, तो सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं पहुंची। इन पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा सुनवाई की गई, जो पांच सदस्यी बेंच का नेतृत्व कर रहे थे। इस बेंच में बीआर गवई भी शामिल थे।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के मामले में भी जस्टिस गवई जुड़े रहे हैं। इस प्रोजेक्ट के खिलाफ जब लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं डाल इसे अनुच्छेद का उल्लंघन वाला बताया, तो इसे तीन जजों द्वारा मंजूरी देनी वाली पीठ में गवई भी शामिल थे।
नोटबंदी पर सुनवाई
साल 2016 में पीएम द्वारा नोटबंद की गई थी, जिसके तहत 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था। ऐसे में कई लोगों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसकी सुनवाई पांच जजों की पीठ द्वारा की गई थी, जिसमें गवई भी शामिल थे।
बुलडोजर पर रोक
साल 2024 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बुलडोजर से अपराधियों के घर तोड़ने पर रोक लगाई गई थी। कोर्ट द्वारा इसे कानून का उल्लंघन बताया गया था। यह आदेश जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन द्वारा दिया गया था।
महाराष्ट्र की राजनीति पर फैसला
महाराष्ट्र में जब उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के बीच बवाल हुआ, तो राज्यपाल द्वारा फ्लोर टेस्ट के लिए बोला गया था। इस पर उद्धव ठाकरे द्वारा पहले ही इस्तीफा दे दिया गया था। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं पहुंची थी, जिनकी सुनवाई वाली पीठ में गवई भी शामिल थे।
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