विश्व की जलवायु कई कारकों द्वारा प्रभावित होती है, जिसकी वजह से पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों का अलग–अलग जलवायु का जन्म होता है। इसी तरह भारत की जलवायु को भी अनेक कारक प्रभावित करते हैं,जिनका विस्तृत विवरण निम्नलिखित है:
अक्षांश
कर्क रेखा पश्चिम में कच्छ के रन और पूर्व में मिजोरम तक भारत के मध्य भाग से होकर गुजरती है। भारत का दक्षिणी आधा भाग कर्क रेखा के दक्षिण में पड़ने के कारण उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जबकि उत्तरी आधा भाग कर्क रेखा के उत्तर में पड़ने के कारण उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है। इसलिए भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों जलवायु की विशेषताओं का मिश्रण है।
ऊँचाई
भारत का उत्तरी भाग पर्वतीय (हिमालय) हैं, जिनमें से कई पहाड़ियाँ 6000 मीटर से भी ऊँची हैं। इसके विपरीत भारत के तटीय क्षेत्र की अधिकतम ऊंचाई करीब 30 मीटर ही है। मध्य एशिया से आने वाली ठंडी शीत लहरों को हिमालय की ऊँचाई भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करने से रोकती है। इन पहाड़ियों की वजह से ही इस उपमहाद्वीप में मध्य एशिया की तुलना में सर्दियाँ कम पड़ती है।
वायुदाब एवं पवनें
भारत में जलवायु और संबंधित मौसम की स्थितियाँ निम्नलिखित वायुमंडलीय स्थितियों द्वारा नियंत्रित होती हैं:
- वायुदाब और सतही पवनें,
- ऊपरी वायु परिसंचरण
- पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ और उष्णकटिबंधीय चक्रवात।
भारत उत्तरी गोलार्द्ध के उपोष्णकटिबंधीय उच्च दाब वाले क्षेत्र में पैदा होने उत्तर– पूर्वी व्यापारिक पवनों के क्षेत्र में पड़ता है। ये पवनें भूमध्यरेखीय निम्न दाब वाले क्षेत्र की तरफ बहती है लेकिन कॉरिऑलिस बल के प्रभाव की वजह से अपने दाईं ओर मुड़ जाती हैं| आम तौर पर, ये पवनें बहुत कम नमीयुक्त होती हैं क्योंकि ये स्थल से सागर की ओर चलती हैं | इसलिए, ये बहुत कम या बिल्कुल भी वर्षा नहीं करतीं और यही वजह है कि भारत को बंजर भूमि होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं है।
भारत पर वायुदाब और पवनों की स्थिति अद्वितीय है। सर्दियों में, हिमालय के उत्तर में उच्च दाब पाया जाता है। इस क्षेत्र से ठंडी शुष्क हवाएँ दक्षिण में महासागरों के ऊपर स्थित निम्न दाब के क्षेत्रों की तरफ चलती हैं। गर्मी के मौसम में, एशिया के आंतरिक हिस्सों के साथ–साथ उत्तर–पश्चिम भारत में निम्न दाब का क्षेत्र विकसित होता है। यह गर्मी के मौसम में हवाओं की दिशा को पूरी तरह से मोड़ देता है। पवनें दक्षिणी हिन्द महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण–पूर्व दिशा में चलती है और भूमध्यरेखा को पार करती हुई भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर स्थित निम्न दाब वाले क्षेत्रों की तरफ मुड़ जाती है। ये हवाएँ गर्म महासागरों के ऊपर से बहने के कारण नमीयुक्त होती हैं और भारत की मुख्य भूमि पर मानसूनी बारिश लाती हैं।
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