भारत की प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली

प्रायद्वीपीय जल निकासी व्यवस्था हिमालय की जल निकासी व्यवस्था से पुरानी है । इस व्यापक, मोटे तौर पर वर्गीकृत उथली घाटियों और नदियों की परिपक्वता से स्पष्ट है।पश्चमी घाट जो की पश्चमी तट के पास है , प्रायद्वीपीय नदियों के पानी को बांटने का कार्य करती हैं जिससे यह पानी एक ओर तो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बंट जाता है| नर्मदा और तापी को छोडकर अधिकांश प्रमुख प्रायद्वीपीय नदिया पश्चिम से पूर्व की और प्रवाह करती है।

Aug 1, 2016, 12:28 IST

प्रायद्वीपीय जल निकासी व्यवस्था हिमालय की जल निकासी व्यवस्था से पुरानी है । इस व्यापक, मोटे तौर पर वर्गीकृत उथली घाटियों और नदियों की परिपक्वता से स्पष्ट है। पश्चमी घाट जो की पश्चमी तट के पास है , प्रायद्वीपीय नदियों के पानी को बांटने का कार्य करती हैं जिससे यह पानी एक ओर तो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बंट जाता है| नर्मदा और तापी को छोडकर अधिकांश प्रमुख प्रायद्वीपीय नदिया पश्चिम से पूर्व की और प्रवाह करती है। चंबल, सिंध, बेतवा, केन, सोन प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से निकलती है जो गंगा नदी प्रणाली से सम्बंधित है ।

प्रायद्वीपीय जल वयवस्था की अन्य प्रमुख नदी प्रणालिया हैं - महानदी गोदावरी, कृष्णा, कावेरी। प्रायद्वीपीय नदियो की विशेषताए है - निश्चित जलमार्ग ,बल का अभाव और पानी का गैर बारहमासी प्रवाह। नर्मदा और तापी जो दरार घाटी के माध्यम से प्रवाह करती है वो आक्षेप है।

प्रायद्वीपीय जल- निकासी व्यवस्था का विकास

अतीत में हुई तीन प्रमुख भूगर्भीय घटनाओ ने प्रायद्वीपीय भारत की वर्तमान जल निकासी व्यवस्था को आकार दिया है :

• शुरआती तृत्य अवधिं के दौरान प्रायद्वीप के पश्चिमी दिशा में घटाव के कारण समुद्र का अपनी जलमग्नता के नीचे चले जाना । आम तौर पर इससे नदी के दोनों तरफ की सममित योजना के मूल जलविभाजन को भांग किया है।

• हिमालय में उभार आना जब प्रायद्वीपीय खंड का उत्तरी दिशा में घटाव हुआ और जिसके फलस्वरूप गर्त दोषयुक्त हो गया । नर्मदा और तापी गर्त के दोष प्रवाह में बहती है और अपने अवसादों से मूल दरारें भरने का काम करती है। इसलिए इन दो नदियों में जलोढ़ और डेल्टा अवसादों की कमी है।

• इसी अवधि के दौरान प्रायद्वीपीय ब्लॉक का उत्तर-पश्चिम से दक्षिण -पूर्वी दिशा की ओर थोड़ा सा झुकने के कारण ही सम्पूर्ण जल निकासी व्यवस्थाका बंगाल की खाड़ी की ओर अभिसंस्करण हुआ है।

प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ

प्रायद्वीपीय जल निकासी की प्रमुख नदी प्रणालिया हैं - महानदी गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, तापी और लूनी जिनकी नीचे चर्चा की जा रही है:

गोदावरी: यह सबसे बडी प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली है इस के कारण इसे दक्षिण गंगा भी कहा जाता है । यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में उगती है और बंगाल की खाड़ी में अपने पानी का निर्वहन करती है । इसकी सहायक नदियां महाराष्ट्र के राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के माध्यम से निकलती हैं। पेनगंगा, इंद्रावती, प्रन्हिता और मंजरा इसकी प्रमुख सहायक नदिया रही हैं। गोदावरी अपने निचले इलाकों में भारी बाढ़ के अधीन है जहां ये दक्षिण में पोलावरम में एक सुरम्य कण्ठ के के रूप में निकती है। यह केवल डेल्टा खंड में जहाज़ों के चलने योग्य है। इसकी कई शाखाओ में विभाजित है, जिनमे में से नदी राजमुंदरी ही सबसे बड़ी डेल्टा बनती हैं|

कृष्णा: यह दूसरी सबसे बडी पूवी प्रायद्वीपीय नदी है जो सहयाद्रि में महाबलेश्वर के निकट से निकल कर बहती है। इसकी कुल लंबाई 1,401 किलोमीटर है। कोयना, तुंगभद्रा और भीम इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ है।

महानदी: यह छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिहावा के पास निकलती है और बंगाल की खाड़ी में अपने पानी का निर्वहन करने के लिए उड़ीसा के माध्यम से चलती है। यह 851 किमी लंबी है और इसका जलग्रहण क्षेत्र 1.42 लाख वर्ग किमी तक फैलता है। कुछ नौकानयन इस नदी के निचले जलमार्ग में किया जाता है। इस नदी का 53 प्रतिशत जल निकासी घाट मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में निहित है और 47 प्रतिशत उड़ीसा में निहित है।

कावेरी: यह कर्नाटक में कोगदु जिले के ब्रह्मगिरि पहाड़ियो (1,341m) से निकलती है। इसकी लंबाई 800 किमी है और यह 81,155 वर्ग किमी के क्षेत्र में बहती है । इस नदी में अन्य प्रायद्वीपीय नदियों की तुलना में अपेक्षाकृत कम अस्थिरता के साथ साल भर पानी रहता है क्यूंकि ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में पूर्वोत्तर मानसून के मौसम (सर्दियों) के दौरान और निचले भाग में दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम (गर्मी) के दौरान बारिश होती है। इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदिया काबिनी, भवानी और अमरावती हैं।

नर्मदा: यह अमरकंटक पठार के पश्चिमी दिशा में लगभग 1,057 मीटर की ऊंचाई पर दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में विंध्य श्रंखला के बीच दरार घाटी में से निकलती है। यह संगमरमर की चट्टानों में एक सुरम्य कण्ठ बनाती है और जबलपुर के पास धुरन्धर झरने के रूप में बहती है । लगभग 1,312 किलोमीटर की दूरी बहने के बाद ये एक व्यापक 27 किलोमीटर लम्बे नदीमुख के गठन करके भरूच के दक्षिण में अरब सागर में मिलती है । इसका जलग्रहण क्षेत्र 98,796 वर्ग किलोमीटर है। सरदार सरोवर परियोजना इस नदी पर बनाया गया है।

तापी : पश्चिम की ओर बहने वाली यह अन्य महत्वपूर्ण नदी है । यह मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुलताई से निकलती है। यह 724 किमी लंबी है और 65,145 वर्ग किमी के क्षेत्र में बहती है । इसके लगभग 79 प्रतिशत घाट महाराष्ट्र में , मध्य प्रदेश में 15 फीसदी और गुजरात में शेष 6 प्रतिशत निहित है।

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