वायुमंडल का ऊर्जा चक्र

Nov 17, 2015, 14:58 IST

पारिस्थितिक तंत्र ऊर्जा चक्र और बाहरी स्रोतों से प्राप्त पोषक तत्वों द्वारा खुद को बनाए रखता है । पहले पौष्टिकता स्तर पर, प्राथमिक उत्पादक(पौधों, शैवाल, और कुछ बैक्टीरिया) संश्लेषण के माध्यम से जैविक संयंत्र सामग्री के उत्पादन के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करते हैं । शाकाहारी जानवर जो सिर्फ पौधे खाते हैं, द्वितीय पौष्टिक स्तर को बनाते हैं । शिकारी जानवर जो शाकाहारी जानवरों को खाते हैं  तीसरा पौष्टिकता स्तर बनाते हैं ।

चूंकि पौधे सूर्य की ऊर्जा को सीधे उत्तकों में परिवर्तित कर बढ़ते हैं, इसलिए इन्हें पारिस्थितिकी तंत्र में उत्पादक के रूप में जाना जाता है। पौधों को शाकाहारी जानवरों द्वारा भोजन के रूप में खाया जाता है जो उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है । इस ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा इन जानवरों द्वारा इनके दैनिक कार्य के लिए उपयोग किया जाता है जैसे श्वास लेना, भोजन को पचाना, उत्तकों के विकास में मदद करना, , रक्त प्रवाह और शरीर का तापमान बनाए रखना | ऊर्जा का प्रयोग अन्य गतिविधियों के लिए भी किया जाता है जैसे भोजन की तलाश करना, आश्रय खोजना, प्रजनन करना व छोटे बच्चों को बड़ा करना |इसके बदले   मांसाहारी जानवर शाकाहारी जानवरों पर निर्भर करते हैं जिन्हें वे खाते हैं । अतः इस प्रकार विभिन्न पौधे और जीवों की  प्रजातियों खाद्य श्रृंखला के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक खाद्य श्रृंखला में तीन या चार संबंध होते  हैं। हालांकि प्रत्येक पौधा  या जानवर कई अलग अलग कड़ियों  के माध्यम से कई अन्य पौधों या जानवरों से जुड़ा हुआ है इन आपस में जुड़ी हुई कड़ियों को एक जटिल खाद्य जाल के रूप में दर्शाया जा सकता है | अतः इसे “जीवन का जाल” कहा जाता है जिससे  प्रकृति में हज़ारों अंतर्संबंधों के बारे में पता चलता है |

पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा को एक खाद्य पिरामिड या ऊर्जा पिरामिड के रूप में दर्शाया जा सकता है। खाद्य पिरामिड  में पौधों का बड़ा आधार होता है जिन्हे “उत्पादक” कहा जाता है| इस पिरामिड में संकरा माध्यम वर्ग होता है जोकि शाकाहारी जानवरों की संख्या व जैव भार को दर्शाती है, जिन्हें प्रथम क्रम का उपभोक्ता कहा जाता है | सबसे ऊपर छोटे जैवभार के मांसाहारी जानवर को दर्शाता है जिसे द्वितीय क्रम का उपभोक्ता कहा जाता है |  आदमी भी पिरामिड के सबसे ऊपर एक जानवर के रूप में दर्शाया गया है| अतः मानवजाति के जीने के लिये शाकाहारी जानवरों का एक बड़ा आधार और यहाँ तक कि बड़ी तादाद में वनस्पति सामाग्री की आवश्यकता होगी | जब पौधे और जानवर मर जाते हैं, ये अपघटन करने वाले जैसे कीट, कीड़े, जीवाणु और कवक के द्वारा सरल पदार्थों में टूट जाने के बाद वापिस मिट्टी में मिल जाते हैं ताकि पौधे  ऊर्जा चक्र द्वारा अपनी जड़ों के माध्यम से पोषक तत्वों को अवशोषित कर सकें |

प्राथमिक उपभोक्ता कुल सौर ऊर्जा का केवल एक अंश ही प्राप्त कर पाते हैं –लगभग 10% - उत्पादकों द्वारा ग्रहण कर पाते हैं जिसे वे खाते हैं | अन्य 90% विकास, प्रजनन, और अस्तित्व के लिए अस्तित्व  द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, या यह गर्मी के रूप में खो दिया जाता है। आप संभवतः देख सकते हैं कि यह कहाँ  जा रहा है । प्राथमिक उपभोक्ताओं  को माध्यमिक उपभोक्ताओं द्वारा खाया जाता है। एक उदाहरण के तौर पर पक्षी कीड़े को खाता है जो कीड़ा पत्ता खाता है | माध्यमिक उपभोक्ताओं  को तृतीयक उपभोक्ताओं द्वारा खाया जाता है।

प्रत्येक स्तर पर, जिसे पौष्टिक स्तर कहा जाता है, लगभग ऊर्जा का 90% खो जाता है |यह शर्म की बात है। अतः यदि  एक पौधा  सौर ऊर्जा के 1000 कैलोरी को ग्रहण पाता है, और एक कीड़ा जो पत्ते खाता है  केवल ऊर्जा का  100 कैलोरी ही प्राप्त करता है |एक मुर्गा  जो कीड़े को खाता  है केवल 10 कैलोरी ही प्राप्त कर पाता है  और मनुष्य जब इस मुर्गे  को खाता है तो पौधों द्वारा  ग्रहण केवल सौर ऊर्जा के मूल 1000 कैलोरी में से 1 कैलोरी  ही प्राप्त कर पाता है |जब आप इस तरह से सोचते हैं, तो यह 100 1000 कैलोरी पौधों- तक ले जाएगा- वैसे  वे काफी बड़े पौधे होंगे,100 कैलोरी टुकड़े के विमुक्त श्रेणी के मुर्गे | अब आप सभी पौधों को याद करेंगे जिन्हें आप अपने जीवन में पानी देना भूल गए थे तथा काफी डरा  हुआ महसूस करेंगे, क्या आप नहीं कर रहे हैं ?

उत्पादकों, प्राथमिक उपभोक्ताओं, माध्यमिक उपभोक्ताओं, और तृतीयक उपभोक्ताओं के बीच के रिश्तों को आमतौर पर पिरामिड के रूप में तैयार करते हैं जिसमें निचले भाग पर उत्पादक और सबसे ऊपर  तृतीयक उपभोक्ता होते हैं |  आप ऊपर दिये गए उदहारण से देख सकते हैं कि क्यों पिरामिड में उत्पादक सबसे नीचे होते हैं | उच्च पौष्टिक स्तर के उपभोक्ताओं  जैसे मनुष्य को ऊर्जा प्राप्त करने के लिए उत्पादकों की आवश्यकता होती है जिससे वे प्रजनन कर सकें व बढ़ सकें | 

यह इस महान रहस्य का जवाब है कि क्यों पृथ्वी पर इतने सारे पौधे हैं | हम आपको विस्तार से भी समझाएँगे क्योंकि  इसे समझना बहुत ज़रूरी है : पृथ्वी  पर बहुत सारे पौधे हैं क्योंकि पारिस्थितिक तंत्र के माध्यम से प्रवाहित ऊर्जा  की कमी  है ।  ऊर्जा का केवल 10% अगले पौष्टिक स्तर तक पारित हो पाता है |

Jagran Josh
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Education Desk

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