अकसर देखा गया है कि छात्रों पर शिक्षा के प्रति सामाजित दबाव उनके तनाव का मुख्य केंद्र बन जाता है तथा यह दबाव कई बार बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों के लिए भी चिंता का कारण बन जाता है. आज इस आर्टिकल में हम बात करेंगे समाज द्वारा होने वाले कुछ खास तनाव के बारे में तथा ये भी जानेंगे की इस तरह की परिस्तिथि या कारण को ख़तम करने के लिए हमें क्या करना चाहिए ताकि छात्रों को शैक्षिक स्तर पर इस तरह के दबाव का सामना न करना पड़े.
1. सबसे पहले हम बात करेंगे अभिभावकों से पूछे जाने वाले सवालों के बारे में......
लगभग इस परिस्तिथि से सभी अभिभावकों को होकर गुज़रना पड़ता है जब उनके दोस्त परिजन या आस-पास के लोग उनसे ये पूछते हैं कि आपके बच्चे की क्लास में परफॉरमेंस कैसी है? इस बार एग्जाम में कितना स्कोर किया?..... परसेंटेज इतनी कम क्यू आई? क्या आपने किसी अच्छे कोचिंग या एक्स्ट्रा क्लासेज के लिए कुछ किया नहीं था?
इस तरह के प्रश्न अभिभावकों को कई बार दुविधा में भी डाल देते हैं जिस कारण अभिभावकों को लगता है कि कहाँ कमी रह गई थी जिस कारण हमारे बच्चों की परसेंटेज कम आई है. क्या हमने अपने बच्चे को अच्छी क्लास में ज्वाइन नहीं करवाया इस कारण उसके स्कोर कम है? या फिर रिजल्ट ख़राब होने का कोई और कारण था जो सही समय पर अभिभावक समझ नहीं सके.
इस तरह सवाल ना केवल अभिभावकों को तनाव के तनाव का कारण बन जाता हैं साथ ही साथ बच्चों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
दरअसल इस तरह की परिस्तिथि में अभिभावकों के लिए सलाह है कि वह अपने बच्चों के परफॉरमेंस को लेकर तनाव में आने की बजाय उनकी पोटेंशियल तथा क्षमता को समझें. उन्हें प्रोत्साहित करें की उन्होंने जितना स्कोर किया वह बुरा नहीं है आगे अपनी गलतियों से सीख कर अभी और अच्छा कर सकते हैं.
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2. अभिभावक अपनी अपेक्षाओं को बच्चों पर हावी न होने दें:
सभी माता-पिता की इच्छा होती है कि उनका बच्चा परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो. यह सोचना कुछ गलत भी नहीं है लेकिन इस बात को लेकर अपने बच्चे पर अनावश्यक दबाव बनाना भी सही नहीं होता है. इससे बच्चों का धैर्य खोने लगता है. इस बात पर ध्यान दें कि यह समय बच्चों का साथ देने का होता है न कि उन पर दबाव डालने का.
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि अगर किसी बच्चे का रिजल्ट अच्छा नहीं आया तो उन्हें परिवार के सदस्यों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ता है. जिसे कभी-कभी बच्चे बर्दाश्त नहीं कर पाते और ऐसी स्थिति उन्हें निराशा, डिप्रेशन, और अन्य गलत चीजों के लिए उकसाती है. ऐसे में पैरेंट्स को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि वह अपने बच्चे को मोटिवेट करें और उसे इमोशनल सहारा दें.
3. दुसरे बच्चों के साथ तुलना करने से बचें:
सबसे पहले यह समझें कि हर बच्चा अपने आप में खास होता है और उसकी क्षमता और टैलेंट भी दूसरे बच्चों से अलग होती है. और यह भी मानना गलत नहीं कि रैंक लाए बिना भी जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है. अंकों के बल पर बच्चे का मूल्यांकन करना कहीं से सही नहीं होता. मार्कशीट का परिणाम जीवन का एक हिस्सा ज़रूर है लेकिन पूरा जीवन नहीं है. बच्चे की क्षमताओं को समझना और उसी के अनुसार संभावनाओं की तलाश करना समझदारी होगी और इससे आपका तनाव भी बहुत हद तक कम होगा.
4. सामाजिक दबाव:
ऊपर हमने आपको बताया की किस प्रकार अभिभावक अपने परिजनों के सवालों, दुसरे बच्चों के साथ तुलना तथा अपने अपेक्षाओं को लेकर खुद भी तनाव में आ जाते हैं तथा बच्चों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है. दरअसल ये सभी कारक सोसाइटी और आस-पास के माहौल से भी विकसित होता है.
लोग क्या कहेंगे? इस विषय पर अभिभावक ज्यादा सोचने लगते हैं यह बिना सोचे की इस कारण बच्चे पर बढ़ते दबाव का क्या प्रभाव पड़ेगा?.....
यहाँ सबसे ज़रूरी सलाह यह है कि माता-पिता और छात्रों को खुद पर विश्वास करना चाहिए. उन्हें यह समझना होगा कि लोग बहुत सी बातें कहेंगे, कई तरह की राय, फीडबैक, सुझाव, निर्णय और अन्य कई तरह की सलाह देंगे लेकिन समाज की संतुष्टि से बढ़ कर यह समझना बहुत ज़रूरी है कि आपको अपने लिए कितना अच्छा करना है, अपनी सफलता क लिए आगे बढ़ने का रास्ता किस प्रकार तय करना है. तथा इसके लिए जितनी मेहनत की आवश्यकता है उससे पीछे कभी न हटें. परन्तु खुद को अन्य कारणों के वजह से तनाव में लाना भी सही नहीं होता हैं.
निष्कर्ष: आशा है कि हमारे द्वारा बताये सुझाव आपको इस तरह के तनाव के कारणों को समझने में काफी हद तक मददगार साबित होंगे.
शुभकामनाएं!!
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