विभिन्न प्रकार के ज्वालामुखियों के विस्फोट के समय एवं प्रक्रिया में काफी अंतर पाया जाता है. कुछ ज्वालामुखी शांत रूप से दरारी उद्गार द्वारा प्रकट होते हैं और कुछ अन्य तीव्र विस्फोट के साथ प्रकट होते हैं. कुछ ज्वालामुखी एक बार फटने के बाद शांत हो जाते हैं, कुछ लम्बी अवधि के बाद लावा उगलते हैं और कुछ लम्बी अवधि तक लावा उगलते हैं. अतः ज्वालामुखियों को उनके लक्षणों के अनुसार विभिन्न आधारों पर अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है:
ज्वालामुखियों का वर्गीकरण
क्रियाशीलता के आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण
क्रियाशीलता के आधार पर ज्वालामुखियों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बांटा जाता है:
1. सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcanoes): इस प्रकार के ज्वालामुखी में समय-समय पर विस्फोट तथा उदभेदन होता ही रहता है और लावा, धुँआ तथा अन्य पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं तथा शंकु का निर्माण होता रहता है. इटली का एटना ज्वालामुखी सक्रिय ज्वालामुखी का बेहतरीन उदाहरण है, जोकि 2500 वर्षों से सक्रिय है. सिसली द्वीप का स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी प्रत्येक 15 मिनट के बाद फटता है और भूमध्यसागर का प्रकाश स्तंभ कहलाता है. संयुक्त राज्य अमेरिका का सेंट हेलेना तथा फिलिपींस का पिनाट्बो सक्रिय ज्वालामुखी के अन्य उदाहरण हैं. विश्व का सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी कोटोपैक्सी (5897 मी.) है, जो इक्वेडोर के दक्षिणी भाग में स्थित है और चमकती चोटी (Shining Peak) के नाम से विख्यात है.
2. प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dorment Volcanoes): इस प्रकार के ज्वालामुखी में लम्बे समय से विस्फोट नहीं हुआ होता है किन्तु इसकी संभावनाएं बनी रहती है. ये ज्वालामुखी जब कभी भी क्रियाशील होते हैं तो जन-धन की अपार क्षति होती है. जापान का फ्यूजियामा, इटली का विसूवियस तथा इंडोनेशिया का क्राकाताओं प्रसुप्त ज्वालामुखी के उदाहरण हैं.
3. विलुप्त ज्वालामुखी (Extinct Volcanoes): इस प्रकार के ज्वालामुखी में विस्फोट प्रायः बन्द हो जाते हैं और भविष्य में भी कोई विस्फोट होने की सम्भावना नहीं होती है. ऐसे ज्वालामुखी के मुख का गहरा क्षेत्र धीरे-धीरे क्रेटर झील के रूप में बदल जाता है, जिसके ऊपर पेड़-पौधे उग आते हैं. म्यांमार का पोपा ज्वालामुखी, एडिनबर्ग का आर्थर सीट तथा ईरान के देवमन्द एवं कोह-ए-सुल्तान विलुप्त ज्वालामुखियों के उदाहरण हैं.
विभिन्न आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण
उद्गार के आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण
लोक्रोई के अनुसार उद्गार के आधार पर ज्वालामुखियों को निम्नलिखित दो मुख्य वर्गों में बांटा जाता है:
1. केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी: ऐसे ज्वालामुखियों में उद्गार एक संकरी नली अथवा द्रोणी के माध्यम से होता है. ऐसे ज्वालामुखियों में लावा के साथ गैस की मात्रा अधिक होने तथा ऊपरी दबाव के कम होने के कारण लावा तथा गैसें बड़े जोर से ऊपर की ओर अग्रसर होती हैं और जहां भी इन्हें कमजोर भूपटल मिलता है वहां उसे तोड़कर भयंकर ध्वनि के साथ तेजी से धरातल पर फूट पड़ती है. इसके परिणामस्वरूप ज्वालामुखी से निकला हुआ लावा तथा अन्य पदार्थ आकाश में अधिक ऊंचाई पर चले जाते हैं और गहरे बादल छा जाते हैं. कुछ समय के बाद ये पदार्थ आकाश से भूतल पर ऐसे गिरते हैं जैसे कि इनकी वर्षा हो रही हो. शक्तिशाली विस्फोट के कारण ऐसे ज्वालामुखी काफी विनाशकारी होते हैं. केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखियों को निम्नलिखित छः वर्गों में बांटा जाता है:
(i) हवाई तुल्य ज्वालामुखी उद्गार: इन ज्वालामुखियों के उद्गार में तरल लावा की प्रधानता होती है और गैस की तीव्रता कम होती है. अतः ऐसे ज्वालामुखियों में भीषण विस्फोट कम ही होते हैं. तरल लावा ज्वालामुखी विवर अथवा गौण निकासी से तेजी से निकलता है और दूर-दूर तक फैल जाता है. इस प्रकार के उद्गार मुख्यतः हवाई द्वीप में होते हैं जिस कारण से इन्हें हवाई तुल्य ज्वालामुखी उद्गार कहा जाता है. हवाई द्वीप के मोनालोआ और किलुआ इनके मुख्य उदाहरण हैं. इसके अलावा कोलम्बिया पठार तथा आइसलैंड इसके अन्य उदाहरण हैं.
(ii) स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी उद्गार: इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार में हवाई तुल्य की अपेक्षा बैसाल्ट लावा अधिक तेजी से प्रवाहित होता है और जब कभी लावा या गैसों के मार्ग में अवरोध होता है तो भयानक विस्फोट होता है. जिसके कारण तरल लावा के साथ-साथ कुछ विखंडित पदार्थ जैसे स्कोरिया, झमक (pumic), ज्वाला बम एवं धूल निकलते हैं. इस तरह के ज्वालामुखी भूमध्य सागर के उत्तर में स्थित हैं. इन ज्वालामुखियों में उद्गार के कारण प्रज्जवलित गैसें ऊपर की ओर उठती है और यह रात के समय लाल दीप्ति दिखाई देती है. इसी कारण इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ कहा जाता है.
(iii) वल्केनियन तुल्य ज्वालामुखी उद्गार: वल्केनियन तुल्य ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा चिपचिपा और लेसदार होता है जो शीघ्र ही ज्वालामुखी के द्वार पर जमकर मार्ग को अवरुद्ध कर देता है. जब नीचे अधिक मात्रा में गैस एकत्रित होती है तो वह अत्यधिक शक्ति के साथ ऊपर के अवरोध को हटा देती है. परिणामस्वरूप ऐसे ज्वालामुखियों में भयंकर विस्फोट होता है और राख एवं धूल युक्त गैसों का बादल ऊपर को उठता है जो दूर से फूलगोभी के समान दिखाई देता है. इंडोनेशिया में स्थित क्राकाताओं ज्वालामुखी में 1833 में इसी प्रकार का उद्गार हुआ था.
(iv) विसूवियस तुल्य ज्वालामुखी उद्गार: इस प्रकार के उद्गार में लावा अधिक गैसयुक्त होता है जिससे भयानक विस्फोट होता है. लावा के साथ गैस तीव्र गति से बाहर निकलती है और आकाश में अधिक ऊंचाई तक बादलों की भांति छा जाती है. ये बादल इतने घने होते हैं कि इनमें कोई वस्तु दिखाई नहीं देती है. सर्वप्रथम इस प्रकार का ज्वालामुखी उद्गार विसूवियस में वर्ष 1872 में हुआ था, जिसके कारण ऐसे ज्वालामुखी को विसूवियस तुल्य ज्वालामुखी कहते हैं.
भूकंपों का वर्गीकरण
(v) पिलियन तुल्य ज्वालामुखी उद्गार: ये सबसे अधिक विनाशकारी ज्वालामुखी होते हैं क्योंकि इनका उद्गार सबसे अधिक भयंकर तथा भीषण होता है. इससे निकलने वाला लावा अधिक चिपचिपा एवं लेसदार होता है और विवर पर लावा की मोटी एवं कठोर परत जम जाती है. अगले उद्गार के समय गैसों की तेज गति के कारण यह परत टूट जाती है और ज्वालामुखी से लावा तथा अन्य पदार्थ भयंकर ध्वनि के साथ धरातल पर आ जाते हैं. गैसों के कारण ज्वालामुखी द्वारा निर्मित बादल प्रकाशयुक्त हो जाता है. इस तरह का ज्वालामुखी उद्गार सर्वप्रथम 8 जुलाई, 1902 को पश्चिमी द्वीप समूह के मार्टिनिक द्वीप पर स्थित माउंट पीली ज्वालामुखी में हुआ था, जिस कारण ऐसे ज्वालामुखी उद्गार को पिलियन तुल्य ज्वालामुखी उद्गार कहते हैं.
(vi) प्लीनियन तुल्य ज्वालामुखी उद्गार: इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार में वाष्प युक्त गैस गोलाकार रूप में कई किलोमीटर की ऊंचाई तक छा जाती है. ऐसे उद्गार में निकलने वाले पदार्थों में धूल की अपेक्षा विखंडित पदार्थों की मात्रा अधिक होती है. इस प्रकार का उद्गार प्लीनी महोदय ने 1879 में विसूवियस ज्वालामुखी उद्गार के समय देखा था, जिस कारण इसे प्लीनियन तुल्य ज्वालामुखी कहते हैं.
2. दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखी: इस प्रकार के उद्गार में लावा एक छिद्र से नहीं निकलता है बल्कि किसी दरार या कई दरारों से होकर निकलता है. इसमें लावा अथवा गैस की मात्रा कम होती है और निष्कासित पदार्थ धीरे-धीरे निकलते हैं. दरारी उद्गार से निकलने वाला लावा पतला होता है और विस्तृत क्षेत्र में फैल जाता है. अतः दरारी उद्गार से शंकुओं एवं पहाड़ों के बजाय ज्वालामुखी पठार का निर्माण होता है. भारत का प्रायद्वीपीय पठार, संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलम्बिया पठार तथा ब्राजील का पठार दरारी उद्गार से ही बने हैं.
3. पंक ज्वालामुखी: इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस उत्पादक क्षेत्रों में पाए जाते हैं. इनमें गैस के साथ-साथ रेट एवं मृत्तिका भी निकलती है जो जल में घुलकर पंक का निर्माण करती है. कैस्पियन सागर के निकट बाकू तेल क्षेत्र में स्थित बोग-बोगा (Bog-Boga) पंक ज्वालामुखी का उत्तम उदाहरण है.
ज्वालामुखी विस्फोट के कारण
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