भारत में EVM कहाँ बनायी जाती है और इसमें कितनी लागत आती है?

May 8, 2019, 11:07 IST

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) को चुनाव आयोग के तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टीईसी) द्वारा दो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों यानी इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बैंगलोर के सहयोग से डिजाइन किया और बनाया जाता है. वर्तमान में एक M3 ईवीएम की लागत लगभग 17,000 रु. प्रति यूनिट है.

भारत में EVM का इतिहास
भारत में पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक हुआ था. भारत के पहले आम चुनाव बैलेट पेपर के जरिए हुए थे. भारत के पहले आम चुनाव में लगभग 173 मिलियन लोगों ने वोट डाले थे जो कि 17 वीं लोकसभा में बढ़कर 900 मिलियन हो गये हैं. वोटों की संख्या के आधार पर भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है.

अतः इतनी बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए करोड़ों बैलट पेपर की जरुरत होगी जिसके लिए लाखों पेड़ काटने पड़ेंगे और और फिर चुनाव के बाद वोटों की गिनती के लिए हजारों लोगों को काम पर लगाना पड़ेगा साथ ही परिणाम घोषित होने में बहुत समय लगेगा इसलिए समय की जरुरत को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने देश के चुनावों में EVM लगाने का निर्णय लिया था.

पहली भारतीय EVM का आविष्कार 1980 में "एमबी हनीफा" द्वारा किया गया था, जिसे 15 अक्टूबर 1980 को "इलेक्ट्रॉनिक वाइब्रेटेड काउंटिंग मशीन" के रूप में पंजीकृत किया गया था.

भारत में सर्वप्रथम EVM का प्रयोग 1982 में केरल के नॉर्थ परवूर विधानसभा क्षेत्र के लिए हुए उपचुनाव में कुछ मतदान केन्द्रों पर किया गया था. वर्ष 2004 से सभी लोक सभा और विधान सभा चुनावों में EVM का प्रयोग किया जाने लगा था.

चुनाव में ईवीएम के प्रयोग के क्या फायदे हैं?

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) क्या है;

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) वोटों की रिकॉर्डिंग के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है.

एक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में दो यूनिट होते हैं;
1. नियंत्रण इकाई

2. बैलेटिंग यूनिट

नियंत्रण इकाई को पीठासीन अधिकारी या एक मतदान अधिकारी के पास रखा जाता है और मतदान इकाई को मतदान डिब्बे के अंदर रखा जाता है, जिसका उपयोग वोट डालने के लिए किया जाता है.

नियंत्रण इकाई का प्रभारी मतदान अधिकारी, नियंत्रण इकाई पर बैलट बटन दबाकर एक मतपत्र जारी करता है. इसके बाद ही वोट डालने वाला मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार और उसकी पार्टी के चुनाव चिन्ह के सामने वाला बटन दबाकर वोट डाल सकता है. ध्यान रहे कि एक EVM अधिकतम 2,000 वोट रिकॉर्ड कर सकती है.

EVM को चलाने के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इसमें एक बैटरी लगी होती है जिसकी मदद से यह चलती है.

EVM को कौन डिजाइन करता है (Who designs the EVMs)

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को चुनाव आयोग के तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टीईसी) द्वारा दो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों यानी;

1. इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद और

2. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बैंगलोर के सहयोग से डिजाइन किया और बनाया जाता है.

ईवीएम की लागत (Cost of the EVMs);

वर्तमान में भारत में EVM के दो संस्करण हैं एक M2 ईवीएम है और दूसरा M3 ईवीएम है.
M2 ईवीएम (जो कि 2006 और 2010 के बीच निर्मित होती थी) की लागत रु.8670/ - प्रति ईवीएम (बैलटिंग यूनिट और कंट्रोल यूनिट सहित) थी. M3 ईवीएम की लागत लगभग रु. 17,000 प्रति यूनिट तय की गयी है.

कुछ लोग शिकायत कर सकते हैं कि EVM मशीन महँगी है लेकिन यह सच नहीं है क्योंकि यदि बैलट पेपर पर होने वाले खर्चों जैसे उसकी छपाई, परिवहन, मतगणना कर्मचारियों को वेतन और मतपत्रों के भंडारण इत्यादि को जोड़ा जाये तो EVM की कीमत बहुत ही कम हो जाती है.

EVM का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने वाली मशीन है. तो यह थी भारत में ईवीएम के निर्माण की लागत और उसका निर्माण करने वाली सरकारी कंपनियों के बारे में.

मुझे उम्मीद है कि चुनाव आयोग भारत की विभिन्न पार्टियों की EVM से जुडी आशंकाओं को दूर करने का हर संभव प्रयास करेगा जिससे देश में लोकतंत्र के त्यौहार को मनाने में किसी के मन में कोई भ्रम ना रहे.

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम): इतिहास और कार्यप्रणाली

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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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