दुनिया में जब भी सबसे बड़े लोकतंत्र की बात होती है, तो भारत का नाम सबसे ऊपर आता है। दुनिया का सबसे बड़ा संविधान भारत के पास है और इसी संविधान का अनुच्छेद 164 मुख्यमंत्री से संबंधित है, जो कि यह प्रावधान करता है कि राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी।
आपको बता दें कि राज्यपाल के पास सिर्फ नाम का कार्यकारी अधिकार होता है, जबकि वास्तविक अधिकार मुख्यमंत्री के पास होता है। भारत में यदि महिला मुख्यमंत्रियों की बात करें, तो इनकी संख्या 16 रही हैं, जिन्होंने अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की मुख्यमंत्री के तौर पर जिम्मेदारी भी निभाई है।
आप भी इनमें से कुछ नामों से अच्छी तरह वाकिफ होंगे, हालांकि क्या आपको भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री के बारे में पता है। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री के बारे में जानते हैं।
यह थी भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री
भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी थी, जिनके नाम पर दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस में एक बड़े सरकारी अस्पताल का नाम भी रखा गया है। वह स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ राजनीति में भी सक्रिय रही।
अंबाला की रहने वाली थी कृपलानी
सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून, 1908 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था। उस समय अंबाला पंजाब में हुआ करता था। सुचेता कृपलानी के पिता एक मेडिकल अधिकारी थे। ऐसे में नौकरी के दौरान उनका कई बार ट्रांसफर हुआ।
इस वजह से कृपलानी को बार-बार अपना स्कूल बदलना पड़ता था। हालांकि, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से एम.ए. हिस्ट्री किया था।
किस राज्य की बनी थी मुख्यमंत्री
सुचेता कृपलानी उत्तर भारत के प्रमुख राज्य उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी। उन्होंने 1963 से 1967 तक मुख्यमंत्री के रूप में काम किया था।
इस दौरान वह देश की पहली ऐसी महिला थी, जिन्होंने पहली बार किसी राज्य का मुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया था।
इस तरह रहा राजनीतिक सफर
देश को आजादी मिलने के बाद साल 1952 में सुचेता कृपलानी लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली से सीट से लड़ी और मनमोहिनी सहगल को हराया। वह दोबारा से इस सीट पर लड़ी और कांग्रेस की ओर से चुनाव जीत गई।
इस दौरान वह उत्तरप्रदेश में श्रम मंत्री भी रही और साल 1963 में वह उत्तरप्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने के साथ भारत की भी पहली महिला मुख्यमंत्री बन गई थी। वह इस पद पर 1967 तक रही।
साल 1969 में कांग्रेस के बंटवारे के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी और 1971 में फैजाबाद विधानसभा से चुनाव लड़ा, जिसमें वह हार गई थी। इसके बाद से उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।
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