जानें भारत के 'डीप ओशन मिशन' के बारे में

Nov 26, 2020, 13:35 IST

MoES अधिकारी के अनुसार, भारत 3-4 महीनों में 'डीप ओशन मिशन' की शुरुआत करेगा. आइए मिशन के बारे में विस्तार से अध्ययन करते हैं.

India's Deep Ocean Mission
India's Deep Ocean Mission

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार भारत जल्द ही एक महत्वाकांक्षी 'डीप ओशन मिशन' की शुरुआत करने वाला है, जो सागरों, महासागरों के जल के नीचे की दुनिया के खनिज, ऊर्जा और समुद्री विविधता की खोज करेगा या जानकारी प्राप्त करेगा, जिसका एक बड़ा भाग अभी भी अस्पष्टीकृत है और इसके बारे में व्यापक शोध और अध्ययन किया जाना अभी बाकी है.

इस मिशन की लागत, 4,000 करोड़ से अधिक है. यह मिशन भारत के विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) और महाद्वीपीय शेल्फ (Continental Shelf) का पता लगाने के प्रयासों को बढ़ावा देगा.

मंत्रालय के सचिव एम राजीवन (M Rajeevan) ने कहा कि "भविष्यवादी और खेल-परिवर्तन" (F uturistic and Game-Changing) मिशन के लिए आवश्यक अनुमोदन प्राप्त किए जा रहे हैं, और यह अगले 3-4 महीनों में शुरू होने की संभावना है.

श्री राजीवन ने यह भी कहा कि मिशन में विभिन्न गहरे समुद्र की पहलों के लिए विकासशील तकनीकों को भी शामिल किया जाएगा.

'डीप ओशन मिशन' के बारे में 

नोडल एजेंसी: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES)

इस मिशन के प्रमुख घटक अंडरवाटर रोबोटिक्स (Underwater robotics) और 'मानवयुक्त' सबमर्सिबलस' (manned submersibles) हैं. ये विभिन्न संसाधनों जैसे जल, खनिज और ऊर्जा का सीबेड और गहरे पानी से दोहन में भारत की मदद करेंगे.

मिशन में किये जाने वाले कार्यों में गहरे समुद्र में खनन (deep-sea mining), सर्वेक्षण, ऊर्जा स्रोतों की खोज इत्यादि शामिल हैं.

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हितधारकों के रूप में अन्य विभाग

MoES  इस मिशन की गतिविधि को बढ़ावा देगा. यह मिशन वास्तव में एक बहु-अनुशासनात्मक अभ्यास है और इसमें अन्य सरकारी विभागों जैसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) शामिल होंगे. यह एक गहन वैज्ञानिक गतिविधि है और इसमें शामिल कुछ प्रौद्योगिकियां ISRO और DRDO जैसे संगठनों द्वारा विकसित किये जाएंगी.

मिशन का उद्देश्य 

ऐसा माना जाता है कि यह खोजपूर्ण अभ्यास:

- भारत के विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र और महाद्वीपीय शेल्फ का पता लगाने के प्रयासों को बढ़ावा देगा.

- मानव सबमर्सिबल (Human Submersibles) के डिजाइन, विकास और प्रदर्शन को बढ़ावा मिलेगा.

- गहरे समुद्र में खनन और आवश्यक प्रौद्योगिकियों के विकास की संभावना का पता लगाने में मदद करेगा.

- हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति बढ़ाएगा.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चीन, कोरिया और जर्मनी जैसे अन्य देश भी इस गतिविधि में हिंद महासागर क्षेत्र में सक्रिय हैं. पिछले हफ्ते, चीन ने मारियाना ट्रेंच के तल पर खड़ी अपनी नई मानव-निर्मित सबमर्सिबल की फुटेज को लाइव-स्ट्रीम किया था. यह ग्रह पर सबसे गहरी पानी के नीचे घाटी में इस मिशन का हिस्सा था.

भारत इस मिशन से किस भौगोलिक क्षेत्र का पता लगा सकता है?

सितंबर 2016 में, भारत ने हिंद महासागर में पॉली-मेटैलिक सल्फाइड (Poly-Metallic Sulphides, PMS) की खोज के लिए अंतर्राष्ट्रीय सीबेड अथॉरिटी (International Seabed Authority, ISA) के साथ 15 साल का अनुबंध किया था.

ISA एक स्वायत्त अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र के अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea) के तहत स्थापित किया गया था. यह संगठन गहरे समुद्र में खनन के लिये 'क्षेत्रों' को आवंटित करता है.

हिंद महासागर में आवंटित क्षेत्र में PMS की खोज के लिए, 15 साल के अनुबंध ने भारत के विशेष अधिकारों को औपचारिक रूप दिया.

ISA ने पहले भारतीय महासागर के मध्य भारतीय रिज (Central Indian Ridge, CIR) और दक्षिण-पश्चिम भारतीय रिज (Southwest Indian Ridge, SWIR) क्षेत्र के  15 साल के PMS अन्वेषण योजना के साथ भारत के लिए 10,000 वर्ग किमी को मंजूरी दी थी.

पॉलीमेटालिक सल्फाइड्स (Polymetallic  Sulphides - PMS) के बारे में 

इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य पॉलीमेटालिक नोड्यूल्स (PMN) का अन्वेषण और निष्कर्षण (Extraction) करना है. 

समुद्र तली में लोहा, तांबा, जस्ता, चांदी, सोना, प्लेटिनम युक्त यह बहुधात्विक सल्फाइड (PMS) समुद्री क्रस्ट की चिमनी के माध्यम से गहराई में गर्म मेग्मा उमड़ने से तरल पदार्थ से बना अवक्षेप है. PMS के दीर्घकालिक वाणिज्यिक एवं सामरिक लाभ ने दुनिया भर का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है.

ऐसा बताया जाता है कि पॉलीमेटालिक नोड्यूल्स (PMN) हिंद महासागर में लगभग 6000 मीटर की गहराई पर बिखरे हुए हैं और इनका आकार कुछ मिमी. से कुछ सेमी. तक का हो सकता है. PMN से प्राप्त धातुओं का प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, स्मार्टफोन, बैटरी और सौर पैनलों में भी किया जाता है.

आखिर यह अन्वेषण क्यों किया जा रहा है?

वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्रतल का केवल 20% और पृथ्वी पर केवल 70% भूमि की सतह वास्तव में मनुष्य द्वारा खोजी गई है. इस नियोजित गतिविधि का उद्देश्य तब तैयार किया जाना है जब इस क्षेत्र में नियमों को औपचारिक रूप दिया जाता है. गहरे महासागरीय सीमांत का पता लगाया जाना अभी शेष है. अधिकारी ने कहा कि हम इस पर काम कर रहे हैं, लेकिन अब ज़ोर से मिशन मोड पर काम  करना है. मिशन में अन्वेषण के लिए अधिक उन्नत गहरे समुद्र के जहाजों की खरीद भी शामिल होगी. मौजूदा पोत सागर कन्या (Sagar Kanya) लगभग साढ़े तीन दशक पुराना है.

अंत में खनन का पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में जानते हैं

प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) के अनुसार, ये गहरे दूरस्थ स्थान कई विशेष समुद्री प्रजातियों के घर भी हो सकते हैं.  इन प्रजातियों ने स्वयं को कम ऑक्सीजन, कम प्रकाश, उच्च दबाव और बेहद कम तापमान जैसी स्थितियों के लिये अनुकूलित किया है. इसलिए हो सकता है कि इस प्रकार के खनन कार्यों से उनकी प्रजाति और उनके निवास स्थान पर खतरा उत्पन्न हो. साथ ही ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस प्रकार  के खनन अभियान उनकी खोज के पहले ही उन्हें विलुप्त कर सकते हैं. 

अभी तक गहरे समुद्र की जैव-विविधता और पारिस्थितिकी की काफी कम समझ है, इसलिये इनके पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना और पर्याप्त दिशा-निर्देशों को तैयार करना भी कठिन हो जाता है.

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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