शून्य आधारित बजट क्या होता है?

Feb 18, 2019, 12:01 IST

शून्य आधारित बजट में गत वर्षों के व्यय सम्बन्धी आंकड़ों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है. इस प्रणाली में कार्य इस आधार पर शुरू किया जाता है कि अगली अवधि के लिए बजट शून्य है जब तक कि प्रत्येक रुपये की मांग का किसी भी कार्य अथवा परियोजना या क्रिया का औचित्य नहीं दिया जाता है. इस शब्द को “पीटर पायर” ने दिया था. सबसे पहले इस बजट को 1970 के दशक में अमेरिका में शुरू किया गया था.

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शून्य आधारित बजट का इतिहास;

शून्य आधारित बजट या जीरो बेस्ड बजटिंग का विचार सबसे पहले अमेरिका में 1970 के दशक में जिम्मी कार्टर के राष्ट्रपति रहते शुरू किया गया था. शून्य आधारित बजट शब्द को “पीटर पायर” ने दिया था.

शून्य आधारित बजट का मतलब

शून्य आधारित बजट में बजट अनुमान शून्य से प्रारंभ किये जाते हैं. शून्य आधारित बजट में गत वर्षों के व्यय सम्बन्धी आंकड़ों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है. इस प्रणाली में कार्य इस आधार पर शुरू किया जाता है कि अगली अवधि के लिए बजट शून्य है.

प्रत्येक प्रबंधक का यह दायित्व होता है कि वह यह बताये कि किसी प्रोजेक्ट या योजना में रुपया खर्च करना क्यों जरूरी है तथा यदि इस प्रोजेक्ट या योजना को शुरू नहीं किया गया तो किस प्रकार की हानि होगी.

अर्थात जब तक कार्य अथवा परियोजना का औचित्य नहीं दिया जाता है तब तक नया पैसा जारी नहीं किया जाता है.

अर्थात इस प्रक्रिया में यह प्रावधान है कि प्रत्येक मैनेजर या मंत्री पर इस बात का सबूत देने का भार डाला गया है कि वह यह बताये कि उसे धन क्यों व्यय करना चाहिए.

शून्य आधारित बजट की विशेषताएं:

1. इसमें प्रत्येक विभाग के लिए उद्येश्यों का निर्धारण कर दिया जाता है.

2. इस व्यवस्था में साधनों के आवंटन और कार्यान्वयन के प्रत्येक के स्तर पर कार्यक्रमों का मूल्यांकन किया जाता है.

3. इस बजट में दिए गए पैकेज का मूल्यांकन तथा योग्यतानुसार प्रबंध के प्रत्येक स्तर को क्रमबद्ध किया जाता है ताकि विभिन्न विभागों को यह पता चल सके कि उन्हें प्रत्येक कार्यक्रम के लिए कितने साधनों की जरूरत है.

शून्य आधारित बजट के लाभ:

1. इस प्रकार के बजट में संसाधनों का आवंटन कुशलता के साथ होता है और फिजूलखर्ची पर नियंत्रण लगता है.

2. पुराने व अकुशल संसाधनों की पहचान हो जाती है और ऐसी योजनाओं को बंद कर दिया जाता है जिनकी उपयोगिता कम हो जाती है.

3. अर्थव्यवस्था की क्रियात्मक कार्य क्षमता में वृद्धि होती है.

4. अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही जरूरी क्षेत्रों के लिए किये जाने वाले खर्चों की पहचान हो जाती है.

5. मैनेजर या अन्य जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही में वृद्धि होती है जिससे पैसों का आवंटन और उसके परिणाम के बीच सामंजस्य बैठता है.

शून्य-आधारित बजट की कमियां

शून्य-आधारित बजट की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह बहुत ही खर्चीली और देरी करने वाली प्रक्रिया है. इसमें पुरानी योजनाओं की समीक्षा करने और नयी योजनाओं को शुरू करने में बहुत समय लग जाता है. कुछ लोग आलोचना करते हुए कहते हैं कि इस बजट से होने वाले लाभ; इस पर आने वाली लागत के बराबर ही होते हैं.

इसके अलावा इस बजट की एक और कमी यह है कि यह शोर्ट टर्म प्लानिंग को बढ़ावा देता है जबकि कुछ निवेश केवल दीर्घकाल में ही परिणाम देते हैं जैसे अनुसंधान और विकास या एम्प्लोयी प्रशिक्षण. इस प्रकार यह बजट प्रक्रिया दूरगामी प्लानिंग के महत्व को नकारती है.

ऊपर दिए गए तर्कों और विवरण को पढ़ने के बाद यह बात स्पष्ट हो जाती है कि शून्य-आधारित बजट के माध्यम से देश में संसाधनों का पूर्ण सदुपयोग होता है जिसके कारण देश का विकास होता है.

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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