अब तक के प्रमुख सौर मिशनों का एक संक्षिप्त परिचय

Aug 26, 2016, 15:24 IST

सूर्य एक चमकीला खगोलीय पिण्ड है जिसके चारों तरफ पृथ्वी और अन्य ग्रह परिक्रमा करते हैं। यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। सूर्य के उच्च रेजलूशन और करीबी– दृश्य एवं उसके आंतरिक हेलिओस्फियर (हमारी सौर प्रणाली के सबसे भीतर का क्षेत्र) का अध्ययन करने एवं इस विशालकाय तारे जिस पर हमारा जीवन निर्भर है, के अशांत व्यवहार को और अधिक अच्छे से समझने के लिए वेधशालाओं द्वारा कई सौर मिशन शुरु किए गए।

सूर्य एक चमकीला खगोलीय पिण्ड है जिसके चारों तरफ पृथ्वी और अन्य ग्रह परिक्रमा करते हैं। सूर्य से इन ग्रहों को ताप और प्रकाश मिलती है। इसलिए, यह सौर प्रणाली का केंद्रीय तारा है। यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। पृथ्वी से इसकी दूरी करीब 93,000,000 मील या 150,000,000 किमी है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान की तुलना में 332,000 गुना अधिक है। सूर्य के उच्च रेजलूशन और करीबी– दृश्य एवं उसके आंतरिक हेलिओस्फियर (हमारी सौर प्रणाली के सबसे भीतर का क्षेत्र) का अध्ययन करने एवं इस विशालकाय तारे जिस पर हमारा जीवन निर्भर है, के अशांत व्यवहार को और अधिक अच्छे से समझने के लिए वेधशालाओं द्वारा कई सौर मिशन शुरु किए गए।

Source: www.nasa.gov

अब तक के विभिन्न सौर मिशन इस प्रकार हैं:

1. वर्ष 1959 और 1968 के बीच सूर्य पर अध्ययन करने के लिए नासा द्वारा पायनीयर 5,6,7,8 और 9 उपग्रह भेजा गया था। इन उपग्रहों ने सौर पवन और सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की पहली विस्तृत माप दी थी। इस बात की जांच के लिए ये उपग्रह सूर्य से उतनी ही दूरी पर परिक्रमा कर रहे थे जितनी दूरी पर पृथ्वी सूर्य की  परिक्रमा करती है।

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पायनीर 9 काफी लंबे समय तक काम करता रहा और उसने मई 1983 तक आंकड़े भेजे।

मिशन: सौर पवन और सौर चुंबकीय क्षेत्र को मापना।

समस्याः वर्ष 1983 में अंतरिक्ष यान संकेत भेजने में असफल रहा।

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1970 के दशक में दो हेलिओस अंतरिक्ष यान और स्काईलैब अपोलो टेलिस्कोप माउंट ने वैज्ञानिकों को सौर पवन एवं सौर कोरोना के नए आंकड़े उपलब्ध करवाए ।

हेलिओस 1 और 2 का प्रक्षेपण अमेरिका एवं जर्मनी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था ।

मिशनः किसी अन्य कक्षा से बुध ग्रह की कक्षा के अंदर अंतरिक्ष यान को ले जाने के लिए सौर पवन का अध्ययन करना।

समस्याः पिछले अंतरिक्षयानों ने उड़ान संख्याओं के रिकॉर्ड को तोड़ने में सफलता हासिल की थी लेकिन हेलिओस ऐसा नहीं कर सका और करीब 30 मिनटों के उड़ान के बाद वह शक्तिशाली पवन से टकराया और प्रशांत महासागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

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वर्ष 1973 में नासा ने स्काईलैब स्पेस स्टेशन की शुरुआत की जिसमें एक सौर वेधशाला मॉड्यूल था। इस वेधशाला का नाम अपोलो टेलिस्कोप माउंट था | पहली बार स्काईलैब ने सौर संक्रमण क्षेत्र एवं सौर कोरोना से उत्सर्जित होने वाले पराबैंगनी किरणों का पर्यवेक्षण किया। इन पर्यवेक्षणों में कोरोना से बड़े पैमाने पर होने वाले उत्सर्जन यानि 'क्षणिक प्रभामंडल’ (coronal transients) और सौर पवन से संबद्ध कोरोनल छिद्रों का पहली बार निरीक्षण भी शामिल है।

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2. वर्ष 1980 में नासा ने सौर मैक्सिमम मिशन की शुरुआत की।   

मिशनः इस अंतरिक्ष यान को उच्च सौर गतिविधि और सौर प्रकाश के दौरान सौर विकिरण से निकलने वाली गामा किरणों, एक्स– रे और पराबैंगनी विकिरणों की जांच के लिए बनाया गया था।  

समस्याः प्रक्षेपण के कुछ महीनों के बाद इलेक्ट्रॉनिक विफलताओं की वजह से अंतरिक्ष यान स्टैंडबाई मोड में चला गया और अगले तीन वर्षों तक यह निष्क्रिय पड़ा रहा।

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लेकिन 1984 में अंतरिक्ष यान चैलेंजर मिशन STS-41C ने उपग्रह को खोज निकाला और जून 1989 में पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने से पहले इसने सौर कोरोना की हजारों तस्वीरें लीं।              

3. वर्ष 1991 में, जापान का योहकोह ( सूरज– Sunbeam) उपग्रह प्रक्षेपित किया गया था।  

मिशन: एक्स– रे तरंगदैर्ध्य पर सूर्य की रौशनी का निरीक्षण करना।

समस्या: इसने पूरे सौर चक्र का निरीक्षण किया लेकिन  2001 के वार्षिक ग्रहण के बाद स्टैंडबाई मोड में चला गया और इसके कारण 2005 में वायुमंडल में पुनः–प्रवेश करने पर पूरी तरह से नष्ट हो गया।

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हिनोडे (Hinode) याहकोह (सौर– ए) ( Yohkoh (Solar-A)) मिशन का  अनुवर्ती है और 22 सितंबर 2006 को इसे एम–वी–7 रॉकेट की अंतिम उड़ान के माध्यम से यूचीनोरा अंतरिक्ष केंद्र, जापान से प्रक्षेपित किया गया था। इसका उद्देश्य सबसे करीबी तारे सूर्य का अध्ययन करना और उसका चुंबकीय क्षेत्रों का पता लगाना था इसमें तीन वैज्ञानिक उपकरण– सौर ऑप्टिकल टेलिस्कोप, एक्स– रे टेलिस्कोप और एक्ट्रीम पराबैंगनी इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर लगे थे। ये तीनों उपकरण मिलकर कोरोना के फोटोस्फिअर से निकलने वाले चुंबकीय ऊर्जा के पैदा होने, उसके परिवहन और अपव्यय का अध्ययन करेंगे और सूर्य के बाहरी वातावरण में जैसे– जैसे ये क्षेत्र उपर की ओर बढ़ते हैं उस स्थिति में सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र में संचित ऊर्जा कैसे जारी होती है, चाहे वह धीरे– धीरे हो या तेजी से, उसे भी दर्ज करेंगे।  

4. सोलर एंड हेलिस्फेरिक ऑब्जरवेट्री (एसओएचओ), जिसका निर्माण यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा ने मिल कर किया था, इस सबसे महत्वपूर्ण सौर मिशन को 2 दिसंबर 1995 को प्रक्षेपित किया गया था।

मिशनः इसे सूर्य की आंतरिक संरचना, उसके व्यापक बाहरी वातावरण और सौर पवन की उत्पत्ति के अध्ययन के लिए डिजाइन किया गया था।

यह काफी सफल रहा और सोलर डायनमिक्स ऑब्जरवेट्री (एसडीओ) नाम से अनुवर्ती मिशन को फरवरी 2010 में प्रक्षेपित किया गया। यह पृथ्वी और सूर्य के बीच लैंग्रेगियन बिन्दु पर स्थित है जहां दोनों का गुरुत्वीय खींचाव समान है।

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5. अक्टूबर 2006 में, नासा ने सोलर टेरिस्ट्रियल रिलेशंस ऑब्जरवेट्री (एसटीईआरईओ– स्टेरियो) (The Solar Terrestrial Relations Observatory (STEREO) मिशन शुरु किया था।

मिशनः सूर्य की अनदेखी तस्वीरें लेना अर्थात स्टेरियो और बी सूर्य के स्टेरियोस्कोपिक तस्वीरें और कोरोनल मास इजेक्शंस, अंगरग्रहीय स्थान में कणों की तेजी और पृथ्वी के घटनाक्रम की तस्वीरें लेने में सक्षम होंगे।

समस्याः सूर्य के हस्तक्षेप के कारण अक्टूबर 2014 में नासा का संपर्क स्टेरियो बी से टूट गया।  

लेकिन अब नासा बहुत पहले , लगभग दो वर्षों के बाद, संपर्क टूट चुके अंतरिक्ष यान से फिर से संपर्क साध चुका है। लेकिन वैज्ञानिकों को अभी भी यह पता लगाना बाकी है कि अंतरिक्ष में करीब दस वर्ष तक रहने के बाद भी क्या स्टेरियो– बी अपना मिशन जारी रख सकता है।

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6. नासा का इंटरफेस रीजन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ (आईआरआईएस) अंतरिक्षयान 27 जून 2013 को प्रक्षेपित किया गया था।

मिशन: ऑर्बिटल साइंसेस कोऑपरेशन पीगासस एक्सएल रॉकेट द्वारा कक्षा में स्थापित यान के माध्यम से सौर वायुमंडल का अध्ययन करना।

यह मिशन सफल रहा और अभी भी काम कर रहा है।

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7. नासा ने महत्वाकांक्षी सोलर प्रोब प्लस मिशन तैयार करने के लिए जॉन हॉप्किन्स यूनिवर्सिटी अप्लायड फिजिक्स लैबोरेट्री (एपीएल) की मदद ली है।

मिशन: सूर्य के कोरोना–इसका बाहरी वातावरण जिससे सौर पवन पैदा होती है, के भीतर से अंतरिक्ष में आवेशित कणों की धाराओं जिनसे सूर्य टकराता है और हमारी सौर प्रणाली में जो यह सामग्री ले कर आती है, का अध्ययन करना। इसे 31 जुलाई 2018 को प्रक्षेपित किया जाएगा।

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8. सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला मिशन है– आदित्य– एल1

Image Credit: Udaipur Solar Observatory

यह मूल रूप से इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान) का एक सौर कोरोनाग्राफी मिशन है, जिसे भारत सरकार के अंतरिक्ष आयोग ने मंजूरी दी है। यह परियोजना एक राष्ट्रीय प्रयास है और इसमें शामिल हैं– इसरो, आईआईए (भारतीय खगोलभौतकी संस्थान), उदयपुर सौर वेधशाला, एरीज ( आर्यभट्ट प्रेज्ञण विज्ञान शोध संस्थान),  टीआईएफआर ( टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान) और कुछ अन्य भारतीय विश्वविद्यालय।

Source: www.isro.gov.in

संस्कृत में सूर्य को आदित्य कहा जाता है, इसलिए इस मिशन का नाम आदित्य रखा गया है।

मिशन: इसका मुख्य उद्देश्य इसमें लगे क्रोनोग्राफर और यूवी इमेजर समेत कई उपकरणों के माध्यम से क्रोमोस्फिअर की सौर गतिशीलता और कोरोना का अध्ययन करना है। यह एल 1 के चारों ओर कक्षा में किसी भी ग्रहण / प्रच्छादन के बिना सतत सौर पर्यवेक्षण मुहैया कराएगा और यह आने वाले आवेशित कणों की सटीक माप करने के लिए पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के बाहर उचित निगरानी रखेगा |

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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