नदी के पानी की उपयोगिता

भारत की नदियों  में प्रति वर्ष भारी मात्रा में पानी आता है लेकिन यह असामान्य तौर पर दोनों, समय और विस्तार में वितरित किया जाता है । कुछ बारहमासी नदिय साल भर पानी ले जाती है जबकि कुछ गैर - बारहमासी नदियों में शुष्क मौसम के दौरान बहुत कम पानी होता है। बरसात के मौसम के दौरान पानी बाढ़ में बर्बाद हो जात है और समुद्र में नीचे बह जाता है। इसी तरह जब देश के एक हिस्से में एक बाढ़ आती है तो अन्य क्षेत्रो में  सूखा पड जाता है।

Aug 10, 2016, 17:23 IST

भारत की नदियों में प्रति वर्ष भारी मात्रा में पानी आता है लेकिन यह असामान्य तौर पर दोनों, समय और विस्तार में वितरित किया जाता है । कुछ  बारहमासी नदिय साल भर पानी ले जाती है जबकि कुछ गैर - बारहमासी नदियों में शुष्क मौसम के दौरान बहुत कम पानी होता है। बरसात के मौसम के दौरान पानी बाढ़ में बर्बाद हो जाता है और समुद्र में  नीचे बह जाता है।  इसी तरह जब देश के एक हिस्से में एक बाढ़ आती है तो अन्य क्षेत्रो में सूखा पड जाता है।

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नदी व्यवस्था

नदी व्यवस्था  मौसम के हिसाब से बदलती  रहती  है। एक वर्ष में  एक नदी के चैनल में पानी के प्रवाह के स्वरूप को  नदी व्यवस्था के रूप में जाना जाता है। उत्तर भारत के हिमालय से निकलने वाली नदियों बारहमासी हैं क्योंकि वे ग्लेशियरों से  बर्फ पिघलने  के माध्यम से भर जाती हैं और इनमे  बरसात के मौसम के दौरान बारिश के पानी की वजह से भर जाता है| दक्षिण भारत की नदियों ग्लेशियरों से नहीं नकलती  और इसी वजह से उनके प्रवाह के स्वरूप में उतार-चढ़ाव  उत्पन्न होता  है। मानसून की बारिश के दौरान इन नदियों में  प्रवाह काफी बढ़ जाता है। इस प्रकार दक्षिण भारत की नदियों की  व्यवस्था को वर्षा द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो  प्रायद्वीपीय पठार के एक भाग में  दूसरे भाग से  भिन्न होता है|

बहाव का मतलब एक समय पर मापे  गए  नदी में बह रहे  पानी की मात्रा है। यह या तो क्यूसेक (क्यूबिक फीट प्रति सेकंड) या क्यूमेक्स (क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड) में मापा जाता है। गंगा नदी जनवरी से जून की अवधि के दौरान  पानी का स्टार अपने न्यूनतम प्रवाह पर होता है। अधिकतम प्रवाह या तो अगस्त या सितंबर में उपलब्ध हो जाता है। सितंबर के बाद  प्रवाह में लगातार गिरावट आने लगती  है। इस प्रकार बरसात के मौसम के दौरान इस  नदी में  मानसून वयवस्था रहती  है। गंगा घाटी के पूर्वी हिस्से और पश्चिमी हिस्से में नदी वयवस्था में विचित्र मतभेद  हैं। गर्मी के शुरुआती हिस्से में मानसून की बारिश शुरू होने से पहले  बर्फ पिघलने  के कारण गंगा अपने में एक बडे प्रवाह को बनाए रखती  है। फरक्का में गंगा का अधिकतम बहाव 55,000 क्यूसेक है जबकि औसत न्यूनतम केवल 1,300 क्यूसेक है।

हिमालयी नदियों की तुलना में दो प्रायद्वीपीय नदियों की वयवस्था में दिलचस्प मतभेद प्रदर्शित होता  हैं। नर्मदा में  जनवरी से जुलाई बहुत कम बहाव होता है  लेकिन जब अधिकतम प्रवाह उपलब्ध हो जाता है तो अचानक अगस्त मेंये बहाव  बढ़ जाता है। अक्टूबर में गिरावट उतनी ही शानदार है जितनी  की अगस्त में वृद्धि है। नर्मदा में पानी का प्रवाह, जो गुरूदेश्वर में दर्ज किया गया है इससे  पता चलता है कि अधिकतम प्रवाह 2300 क्यूसेक है  जबकि न्यूनतम प्रवाह केवल 15 क्यूसेक है। गोदावरी में मई में कम से कम बहाव होता है  और जुलाई-अगस्त में अधिकतम होता है। अगस्त के बाद वहाँ पानी के प्रवाह में तेजी से गिरावट है हालांकि अक्टूबर और नवंबर में प्रवाह की मात्रा जनवरी से मई महीने के मुकाबले की  तुलना में अधिक है।  गोदावरी में पोलावरम में अधिकतम बहाव  3200 क्यूसेक है जबकि औसत न्यूनतम प्रवाह केवल 50 क्यूसेक है। ये आंकड़े नदी की वयवस्था पर  एक विचार धारा प्रस्तुत करते है। नदी के पानी का उपयोग करने में समस्याएं-

  • अपर्याप्त मात्रा में  उपलब्धता
  • नदी जल प्रदूषण
  • नदी के पानी में गाद का खेप
  • पानी के असामान्य  मौसमी प्रवाह
  • राज्यों के बीच नदी जल विवाद
  • बस्तियों के थलवेग की ओर विस्तार की वजह से चैनलों के सिकुड़ने की आशंका ।

अधिकांश श्मशान नदियों के किनारे पर हैं और कभी कभी  मृत शरीरो को  नदियों में फेंक दिया जाता है  कुछ त्योहारों के अवसर पर फूल और मूर्तियों को  नदियों में डुबोया जाता  हैं। बड़े पैमाने पर स्नान और कपडो  की धुलाई भी नदी के पानी को प्रदूषित करती है ।

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