पर्यावरण और उसके घटक

हमारा वातावरण हमें रोजमर्रा के जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की एक किस्म प्रदान करता है। इन प्राकृतिक संसाधनों में हवा, पानी, मिट्टी, खनिज के साथ-साथ जलवायु और सौर ऊर्जा शामिल हैं जो प्रकृति के निर्जीव या "अजैविक" भाग का निर्माण करते हैं। 'जैविक' या प्रकृति के सजीव भाग पौधों, जानवरों और रोगाणुओं से मिलकर बनते हैं। भौतिक भूगोल की दृष्टि से, पृथ्वी चार प्रमुख घटकों से बनती है: वायुमंडल, जीवमंडल, स्थलमंडल, और जलमण्डल।

Dec 9, 2015, 11:53 IST

हमारा वातावरण हमें रोजमर्रा के जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की एक किस्म प्रदान करता है। इन प्राकृतिक संसाधनों में हवा, पानी, मिट्टी, खनिज के साथ-साथ जलवायु और सौर ऊर्जा शामिल हैं जो प्रकृति के निर्जीव या "अजैविक" भाग का निर्माण करते हैं। 'जैविक' या प्रकृति के सजीव भाग पौधों, जानवरों और रोगाणुओं से मिलकर बनते हैं। भौतिक भूगोल की दृष्टि से, पृथ्वी चार प्रमुख घटकों से बनती है: वायुमंडल, जीवमंडल, स्थलमंडल, और जलमण्डल।

पृथ्वी के संसाधन

विभिन्न स्रोतों या 'क्षेत्रों' द्वारा प्रदत्त संसाधन

1) वायुमंडल: वायुमंडल पृथ्वी पर एक सुरक्षा कवच का निर्माण करता है। सबसे निम्नतम परत, क्षोभमंडल है। क्षोभमंडल  हमारे जीवित रहने के लिए एकमात्र जरूरी गरम हिस्सा है जो केवल 12 किलोमीटर घना है। समताप मंडल 50 किलोमीटर घना है और सल्फेट की एक परत इसमें शामिल है जो बारिश होने के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें ओजोन की परत भी शामिल है, जो पराबैंगनी (अल्ट्रा वायलेट) प्रकाश को अवशोषित करती है जिसके कारण पृथ्वी पर कैंसर रोग फैलता है,  इसके बगैर पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है। यह एक जटिल गतिशील प्रणाली है। यदि इसकी प्रणाली बाधित होती है तो यह पूरी मानव जाति को प्रभावित करती है। हवा के प्रमुख प्रदूषक औद्योगिक इकाइयों द्वारा निर्मित होते हैं जो हवा में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और जहरीले धुएं के रूप में विभिन्न प्रकार की गैसें छोड़ते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड का बिलडिप (buildup) जिसे वायुमंडल में 'ग्रीनहाउस प्रभाव' के रूप में जाना जाता है, वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग में अग्रणी भूमिका निभाता है।

धुंध (स्मॉग): जीवाश्म ईंधन के दहन से भी हवा में छोड़े गये कणों की मात्रा बढ़ जाती है। इन सभी प्रदूषकों के उच्च स्तर की उपस्थिति दृश्यता में कमी का कारण बनती है विशेषकर ठंड के मौसम में जब पानी जम जाता है। इसे धुंध के रूप में जाना जाता है और यह वायु प्रदूषण का जीता जागता संकेत है।

2) जलमण्डल: जलमंडल पृथ्वी की दो तिहाई हिस्से को कवर करता है। जलमंडल का एक प्रमुख हिस्सा, सागर का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र है। जबकि केवल एक छोटे से हिस्से में ताजा पानी होता है। नदियों, झीलों और ग्लेशियरों में ताजा पानी हमेशा वाष्पीकरण और वर्षा की एक प्रक्रिया से नवीकृत हो जाता है। इसमें से कुछ ताजा पानी भूमिगत जलवाही स्तर में निहित होता है। वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियां जलमंडल में गंभीर परिवर्तन अथवा संकट पैदा करती हैं। जब एक बार वनस्पति की भूमि परत निकल जाती है तो बारिस के कारण मिट्टीसमुद्र में  बह कर चली जाती है / इसी प्रकार उद्योग और सीवेज से रसायन नदियों और समुद्र में बहने या फैलने लगते हैं।

कॉलिफोर्म मानव आंतों में पाया जाने वाला एक बैक्टीरिया का समूह है जिसकी पानी में उपस्थिति, सूक्ष्मजीवों रोगों को जन्म देने के कारण बनता है।

गंगा एक्शन प्लान:  गंगा में पानी की बहुत खराब गुणवत्ता के कारण यह करोड़ों रुपये के परियोजना की शुरूआत 1985 में की गयी थी।

3) स्थलमंडल: स्थलमंडल का गठन एक गर्म पदार्थ के रूप में लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पहले हुआ था। लगभग 3.2 अरब साल पहले पृथ्वी काफी ठंडी हो गयी और अदभुत घटना घटित हुई- कि हमारे नक्षत्र पर जीवन की शुरूआत हुई। पृथ्वी की पपड़ी 6 या 7 किलोमीटर घनी या मोटी है और महाद्वीपों में बंटी हुई है। स्थलमंडल के 92 तत्वों में केवल आठ क्रस्टल चट्टाने ही आम घटक हैं। इन घटकों में होती हैं:

  • 47%, ऑक्सीजन होती है
  • 28% सिलिकॉन होती है,
  • 8%, अल्युमिनियम होती है
  • 5%, आयरन होती है
  • जबकि सोडियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और कैल्शियम प्रत्येक 4% निहित होती है।

ये तत्व एक साथ लगभग 200 आम खनिज यौगिकों का निर्माण करते हैं। जब चट्टानें टूटती हैं तो उस मिट्टी का गठन करते हैं जिस पर मनुष्य खेती के लिए निर्भर रहता है। उनका खनिज भी कच्चा माल होता हैं जिसे विभिन्न उद्योगों में प्रयोग किया जाता हैं।

 मिट्टी एक मिश्रण है। इसमें चट्टान के छोटे कण (विभिन्न आकार के) शामिल होते हैं। इसमें जीवीत जीवों के सड़े हुए टुक़डे (मल) भी शामिल होते हैं। जिसे खाद कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, मिट्टी की गुणवत्ता का निर्णय इसमें पाये जाने वाले कणों के आकार से किया जाता है। मिट्टी की गुणवत्ता का निर्णय खाद और इसमें पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवों की मात्रा से लिया जाता है। खाद मिट्टी की संरचना तय करने में एक प्रमुख कारक है क्योंकि इस कारण मिट्टी और अधिक छिद्रपूर्ण हो जाती है और पानी तथा हवा को भीतर तक भूमिगत होने में मदद करती है। खनिज पोषक तत्व जो विशेष मिट्टी में पाये जाते हैं वो उन चट्टानों पर निर्भर रहते हैं जिनसे उनका निर्माण होता है। एक मिट्टी की पोषक तत्व सामग्री, खाद में मौजूद इसकी मात्रा और मिट्टी की गहराई के कुछ कारक यह निर्णय करते हैं कि धरती पर कौन से पौधे पनप सकते हैं।

जीवमंडल: यह पृथ्वी पर अपेक्षाकृत पतली परत है जिसमें जिंदगी मौजूद हो सकती है। इसमें हवा, पानी, चट्टानें और मिट्टी जो संरचनात्मक और कार्यात्मक पारिस्थितिक इकाइयों का गठन करती हैं जिसे एक साथ विशाल वैश्विक जीवित रहने वाले प्रणाली के रूप में जाना जा सकता है और इसे हमारी पृथ्वी के रूप में जाना जाता है। इस ढांचे के भीतर, मोटे तौर पर इसी तरह के भूगोल और जलवायु की विशेषता के साथ-साथ पौधों और पशु जीवन के समुदायों के विभिन्न जैव भौगोलिक स्थानों को सुविधानुसार विभाजित किया जा सकता है। ये अलग-अलग महाद्वीपों में होते हैं। इन के भीतर, छोटी-छोटी जैव-भौगोलिक इकाइयां संरचनात्मक अंतर के आधार पर पहचानी जा सकती हैं और विशिष्ट जानने योग्य पारिस्थितिक तंत्र के कार्यात्मक पहलुओं के एक परिदृश्य को एक विशिष्ट गुण प्रदान करते हैं। इस पारिस्थितिक तंत्र को समझने के लिए एक सरलतम उदाहरण एक तालाब है। यह किसी भी अन्य पारिस्थितिकी तंत्र की प्रकृति को समझने के लिए एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और मूल्यांकन करने के लिए समय परिवर्तन के साथ इसे किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में देखा जा सकता है।

Jagran Josh
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Education Desk

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