भूमि संसाधन

भूमि एक सीमित संसाधन है जिस पे शहरीकरण, बुनियादी सुविधाओं, भोजन में वृद्धि, दूध, फाइबर और ईंधन के उत्पादन और पारिस्थितिकी तंत्र के प्रवाधान से प्रतिस्पर्धा दबाव के अधीन है। लेकिन यह भी एक कम होता हुआ स्रोत है। यह एक वैश्विक समस्या है। रहने, भोजन और बायोमास बढ़ने के लिए दुनिया भर में क्षेत्रों की मांगे बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन के कारन भूमि की मांग, उपलब्धता और गिरावट पर असर होने की संभावना है।

Aug 26, 2016, 13:18 IST

भूमि एक सीमित संसाधन है जिस पर शहरीकरण, बुनियादी सुविधाओं, भोजन में वृद्धि, दूध, फाइबर और ईंधन के उत्पादन और पारिस्थितिकी तंत्र के प्रवाधानों के कारण हमेशा दबाव बना रहता है। लेकिन यह भी एक घटता हुआ स्रोत है। वास्तव में यह एक वैश्विक समस्या है। दुनिया भर में निवास स्थान, भोजन और जैव-ईंधन के लिए भू-क्षेत्र की मांग बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि की मांग, उपलब्धता और गिरावट पर असर होने की संभावना है।

Source: www.gcca.eu

वर्ष 2012 में सतत विकास पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन या रियो +20 सम्मेलन में इस बात को सर्वसम्मति से माना गया कि भूमि और मिट्टी का क्षरण एक वैश्विक समस्या है और पूरी दुनिया में सतत विकास के संदर्भ में भूमि क्षरण को रोकने हेतु प्रयास करने के लिए एक प्रस्ताव पास किया गया था । अर्थशास्त्र के अनुसार, प्राकृतिक रूप से उत्पन्न सभी संसाधन जिसकी आपूर्ति सहज रूप से संभव हैं, भूमि संसाधन के अंतर्गत आते हैं । उदाहरण के तौर पर भौगोलिक स्थान, खनिज भंडार और यहां तक कि भू-स्थिर कक्षीय क्षेत्र और विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के अंश। प्राकृतिक संसाधन  पूंजीगत वस्तुओं सहित सभी वस्तुओं के उत्पादन के लिए आधारभूत तत्व हैं। स्थानीय मूल्यों को निश्चित पूंजीगत सुधार के कारण निर्धारित मूल्यों से भ्रमित नहीं होना चाहिए । पारम्परिक अर्थशास्त्र में, भूमि को पूंजी और श्रम के साथ उत्पादन के तीन कारकों में से एक माना जाता है |

Source: www.scientificworld.in

भारत में प्राकृतिक वनस्पति

भूमि संसाधनों से संबंधित समस्याएं

भू–क्षरण (Land Degradation): वर्तमान समय में अधिक तीव्र गति से उपयोग होने के कारण कृषि योग्य भूमि खतरे में है| प्रत्येक वर्ष वैश्विक स्तर पर  तक़रीबन 5 से 7 लाख हेक्टेयर भूमि, निम्नीकृत कृषि भूमि में बदल रही है । जब खेती के लिये मिट्टी का अधिक इस्तेमाल किया जाता है, तब वह हवा और बारिश से अधिक तेजी से नष्ट हो जाती है। खेतों की अधिक सिंचाई से लवणन (salinity) की क्रिया होती है और पानी के वाष्पीकरण के कारण मिट्टी की सतह पर नमक आ जाता है जिस कारण फसलें पैदा नहीं हो पाती है। अधिक सिंचाई से मिट्टी की ऊपरी परत पर जल जमाव होता है जिससे फसलों की  जड़ें प्रभावित होती है और फसलें कमजोर हो जाती है। अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी जहरीली हो जाती है अंततः भूमि अनुपजाऊ हो जाती है।

Source: www.thegef.org

मिट्टी का कटाव (Soil Erosion): प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की विशेषतायें जैसे कि जंगल और घास के मैदान मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करते हैं । विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ फसलों की व्यापक विविधता को उपजने में सहायता प्रदान करती है । पारिस्थितिकी तंत्र के दुरुपयोग के कारण मानसून की बारिश में अपक्षरण से और कुछ हद तक हवा के कारण भी मूल्यवान मिट्टी का नुकसान होता है। जंगलों में पेड़ों की जड़ें मिट्टी को पकड़कर रखती हैं लेकिन वनों की कटाई से मिट्टी का कटाव तेजी से होता है।

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