मुगल काल के दौरान सांस्कृतिक विकास

Nov 6, 2015, 16:28 IST

बाबर, हुमायूँ, अकबर और जहांगीर जैसे मुगल शासक हमारे देश मे सांस्कृतिक विकास का प्रसार करने के लिए जाने जाते थे। इस क्षेत्र मे अधिक से अधिक कार्य मुगल शासन के दौरान किया गया था। मुगल शासक संस्कृति के शौकीन थे; इसलिए सभी शासक शिक्षा के प्रसार के समर्थन मे थे। मुगल परम्पराओ ने कई क्षेत्रीय और स्थानीय राज्यो की महलों एवं किलों को अत्यधिक प्रभावित किया।

बाबर, हुमायूँ, अकबर और जहांगीर जैसे मुगल शासक हमारे देश मे सांस्कृतिक विकास का प्रसार करने के लिए जाने जाते थे। इस क्षेत्र मे अधिक से अधिक कार्य मुगल शासन के दौरान किया गया था। मुगल शासक संस्कृति के शौकीन थे; इसलिए सभी शासक शिक्षा के प्रसार के समर्थन मे थे। मुगल परम्पराओ ने कई क्षेत्रीय और स्थानीय राज्यो की महलों एवं किलों को अत्यधिक प्रभावित किया।

मुगल सम्राटों के कार्य:

बाबर: वह एक महान विद्वान था उसने अपने साम्राज्य मे स्कूलों और कलेजों के निर्माण की ज़िम्मेदारी ली थी । इसे उद्यानों से बहुत प्यार था; इसलिए उसने आगरा और लाहौर के क्षेत्र मे कई उद्यानों का निर्माण करवाया। कश्मीर मे निशल बाग़, लाहौर मे शालीमार एवं पंजाब मे पिंजौर उद्यान बाबर के शासन काल के दौरान विकसित किए गए उद्यानों के कुछ उदाहरण थे और ये उद्यान वर्तमान मे अब भी उपस्थित है ।

हुमायूँ:  इसे सितारों और प्राकृतिक विशेषताओं से संबन्धित विषयों की किताबों से अत्यधिक प्रेम था; इसने दिल्ली के समीप कई मदरसों का भी निर्माण करवाया, ताकि लोग वहाँ जाये और सीखे ।  

अकबर: इसने आगरा और फतेहपुर सीकरी मे उच्च शिक्षा के लिए बड़ी संख्या मे स्कूलों और कॉलेजो का निर्माण किया, वह चाहता था कि उसके साम्राज्य का प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा प्राप्त कर सके। अकबर प्रथम मुगल शासक था जिसके शासन काल मे विशाल पैमाने पर निर्माण कार्य किया गया। उसके निर्माण कि श्रेणी मे आगरा का सबसे प्रसिद्ध किला और विशाल लाल किला जिसमे कई भव्य द्वार है, शामिल है।

उसके शासन काल के दौरान मुगल वास्तुकला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची थी और पूरे भवन मे संगमरमर लगाना और दीवारों को फूल की आकृति के अर्ध कीमती पत्थरो से सजाने की प्रथा प्रसिद्ध हो गयी। सजावट का यह तरीका पेट्राड्यूरा कहा जाता है, जो शाहजहाँ के सानिध्य मे अधिक लोकप्रिय हुआ, ताजमहल के निर्माण के समय उसने इसका बड़े पैमाने पर प्रयोग किया, जिसे निर्माण कला के गहना के रूप मे माना गया।

जहाँगीर: वह तुर्की और फ़ारसी जैसी भाषाओं का महान शोधकर्ता था और वह अपनी स्मृतियों को व्यक्त करते हुये एक तूज़ुक-ए-जहांगीरी नाम की किताब भी लिख चुका था।

शाहजहाँ: मुगलो के द्वारा विकसित की गयी वास्तु की सभी विधियाँ ताजमहल के निर्माण के दौरान मनोहर तरीके से सामने आए। हुमायूँ के मकबरे पर एक विशालकाय संगमरमर का गुंबद था जिसे अकबर के शासन काल प्रारम्भ होने के शुरुआत मे दिल्ली मे बनवाया गया था और इसे ताज महल के पूर्वज के रूप मे माना जा सकता है। दोहरा गुंबद इस भवन की एक अन्य विशेषता थी।

औरंगजेब: औरंगजेब एक लालची प्रवृत्ति का शासक था, इसलिए उसके शासन काल मे अधिक भवनों का निर्माण नही हुआ। अट्ठारहवीं शताब्दी एवं उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ मे हिन्दू और तुर्क ईरानी प्रवृत्ति और सजावटी प्रारूप के मिश्रण पर आधारित मुगल वास्तु परंपरा थी।

शिक्षा:

डॉक्टर श्रीवास्तव के अनुसार, “यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक बच्चा स्कूल या कॉलेज जाएगा, मुगल सरकार के पास शिक्षा का कोई विभाग नहीं था। मुगल शासनकाल के दौरान शिक्षा एक व्यक्तिगत मामले की तरह था, जहाँ लोगो ने अपने बच्चो को शिक्षित करने के लिए अपने खुद के प्रबंध कर रखे थे।”

इसके अतिरिक्त, हिंदुओं और मुस्लिमों दोनों के लिए अलग - अलग स्कूल थे और बच्चो को स्कूल भेजने की उनकी भिन्न-भिन्न प्रथाएं थी।

हिन्दू शिक्षा:

हिन्दुओं के प्राथमिक विद्यालयों का रख-रखाव अनुदान या निधियों के द्वारा किया जाता था, जिसके लिए विद्यार्थियों को शुल्क नही देना पड़ता था।   

मुस्लिम शिक्षा:

मुस्लिम अपने बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए मक्तब मे भेजा करते थे, जो मस्जिदों के पास हुआ करते थे एवं इस प्रकार के स्कूल प्रत्येक शहर एवं गाँव मे होते थे। प्राथमिक स्तर पर, प्रत्येक बच्चे को कुरान सीखना पड़ता था।

महिलाओं कि शिक्षा:

समृद्ध लोगो के द्वारा उनकी बेटियों को घर पर ही शिक्षा प्रदान करने के लिए निजी शिक्षकों कि व्यवस्था की जा रही थी, महिलाओं को प्राथमिक स्तर से ऊपर शिक्षा का कोई अधिकार नहीं था।

साहित्य:

फ़ारसी: अकबर फ़ारसी भाषा को राज्य भाषा के स्तर तक लाया, जिसने साहित्य के विकास का नेतृत्व किया।

संस्कृत: मुगलों के शासनकाल के दौरान, संस्कृत मे कार्य का निष्पादन मुगलों की अपेक्षा के स्तर तक, नही किया जा सका।

ललित कला:

भारत मे चित्रकला के विकास के लिए मुगल काल को स्वर्णिम दौर माना गया।

कला सिखाने के लिए भिन्न प्रकार के स्कूल इस प्रकार थे:

प्राचीन परंपरा के विद्यालय: भारत मे चित्रकला की प्राचीन शैली सल्तनत काल से पहले समृद्ध हुई थी । लेकिन आठवीं शताब्दी के बाद इस परंपरा का पतन होने लगा था लेकिन तेरहवीं शताब्दी मे ताड़ के पत्तों पर पांडुलिपियों एवं जैन ग्रन्थों के चित्रण से यह प्रतीत होता है कि परंपरा पूर्णतया समाप्त नही हुई थी।

मुगल चित्रकला: मुगल शासन काल के दौरान अकबर के द्वारा विकसित विद्यालय, उत्पादन के केंद्र की तरह थे।

यूरोपीय चित्रकला: अकबर के दरबार मे पुर्तगाली पादरी ने यूरोपियन चित्रकला का प्रारम्भ किया।

राजस्थान चित्रकला विद्यालय: इस प्रकार के चित्रकला मे वर्तमान विचारों एवं पश्चिमी भारत के पूर्व परम्पराओं एवं मुगल चित्रकला की भिन्न भिन्न शैली के साथ जैन चित्रकला विद्यालय का संयोजन शामिल है।

पहाड़ी चित्रकला विद्यालय: इस विद्यालय ने राजस्थान चित्रकला की शैली को बनाए रखा और इसके विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

संगीत:

यह मुगल शासन काल के दौरान हिन्दू-मुस्लिम एकता का एकमात्र कड़ी सिद्ध हुआ। अकबर ने अपने दरबार मे ग्वालियर के तानसेन को संरक्षण दिया। तानसेन एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे कई नयी धुन और रागो कि रचना का श्रेय दिया गया।

मुगलकाल के दौरान वास्तु विकास:

वास्तुकला के क्षेत्र मे, मुगल काल गौरवपूर्ण समय सिद्ध हुआ, जैसाकि इस समयान्तराल मे बहते हुये पानी के साथ कई औपचारिक उद्यानों का निर्माण किया गया। 

इस प्रकार, कह सकते है कि मुगल परम्पराओं ने कई क्षेत्रीय और स्थानीय राज्यों के महलों और किलों को अत्यधिक प्रभावित किया।

Jagran Josh
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Education Desk

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