अपनी ईमान्दारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बेबाक टिप्पणी करने वाले IAS अफसर, अशोक खेमका फिर से सुर्खियों में हैं। इस बार वो अपने 51वें तबादले को लेकर चर्चा में हैं। 1993 में हुई पहली नियुक्ति के बाद यह उनका 51वां तबादला है और अब उन्हें सामाजिक न्याय एवं अधिकारिकता विभाग से हटाकर खेल और युवा मामलों के विभाग के प्रिंसिपल सेक्रटरी के रुप में स्थानांतरित कर दिया गया है।
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अपनी कठोर कार्यशैली के कारण अशोक खेमका हमेशा सत्ताप के निशाने पर रहे हैं तथा इनका नाम देश के सबसे ज्यारदा तबादलों की मार झेलने वाले अधिकारियों में गिना जाता है। इनकी गिनती ऐसे नौकरशाहों में होती है जो नेताओं की कठपुतली नहीं हैं। जो नियम कानून के आगे किसी की नहीं चलने देते।
हर बार की तरह इस बार भी उनकी लड़ाई सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग में हो रहे गड़बड़ियों और अनियमितताओं के खिलाफ थी। खेमका इस विभाग में सचिव के पद पर कार्यरत थे और उन्होंने 3.22 लाख लोगों के दस्तावेज न होने तथा अप्रयाप्त होने की वजह से उनकी पेंशन बंद कर दी थी। गड़बड़ियों और अनियमितताओं के उजागर करने के क्रम में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, हरियाणा सरकार के मंत्री कृष्ण कुमार बेदी तथा दो अन्य मंत्रियों, शिक्षा मंत्री रामविलसा शर्मा और लोक निर्माण मंत्री नरबीर सिंह के साथ उनका टकराव हो चुका है। जिसके फलस्वरुप उन्हें तबादला का सामना करना पड़ रहा है।
इसके अलावा खेमका ने दीवाली के मौके पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के निजी स्टाफ को नकद तोहफे दिए जाने का भी विरोध किया था और फिर इस मामले को लेकर उन्होंने मुख्य सचिव को पत्र भी लिखा था।
अपने 51वें तबादले को लेकर ट्वीटर पर ट्वीट कर अपना दुख जाहिर किया। उन्होंने ट्वीट किया कि कि कई सारे कामों की तैयारियां की थीं। अचानक एक और तबादले की ख़बर मिल गई। एक बार फिर आपातकालीन लैंडिंग हो गई है। निहित स्वार्थों की जीत हो गई, लेकिन यह अस्थायी है और काम नए उत्साह और ऊर्जा के साथ जारी रहेगा।
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खेमका 1991 बैच, हरियाणा केडर के IAS अधिकारी हैं। उनका का जन्म भारत के पूर्वोत्तर राज्य बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ था। उन्होंने 1988 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर से स्नातक और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान,मुंबई से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी और एमबीए किया हुआ है। उन्होंने इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वबविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए भी की है।
'भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध' के लिए - '2011 एसआर जिंदल पुरस्कार' से सम्मानित किया। उच्च पदों पर भ्रष्टाचार को उजागर करने में उनकी निडर प्रयासों के लिए श्री संजीव चतुर्वेदी के साथ 10 लाख रुपये का नकद पुरस्कार मिला।
अशोक खेमका कैसे चर्चित हुए ?
खेमका का नाम साल 2012 में उस समय चर्चा में आया था, जब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा की कंपनी और रियल्टी कंपनी डीएलएफ के बीच हुए 57 करोड़ रुपयों के भूमि सौदे में हुए अनियमितताओं के आधार पर रद्द कर दिया था। इस मामले के बाद हरियाणा में कांग्रेस सरकार ने अशोक खेमका का तबादला हरियाणा बीज विकास निगम के महानिदेशक पद पर कर दिया था। इस मामले के बाद उन्हें मौत की धमकी भी मिली है।
एक नजर उन IAS अफसरों पर जिनके सबसे ज्यादा बार ट्रांसफर हुए -
इस लिस्ट में सबसे पहला नाम आता है कि विनीत चौधरी का। हिमाचल प्रदेश के 1982 आईएएस बैच के अफसर विनीत चौधरी का 31 साल के करियर में 52 बार ट्रांसफर किया गया और इस तरह सबसे ज्यादा ट्रांसफर पाने वाले आईएएस अफसर की लिस्ट में विनीत चौधरी का नाम सबसे ऊपर आता है।
- असम-मेघालय कैडर के विंस्टन मार्क सिम्सन को 36 साल के करियर में 50 बार ट्रांसफर किया गया।
- पंजाब कैडर के कुसुमजीत सिंधू का 46 बार ट्रांसफर किया जा चुका है।
- हरियाणा के अशोक खेमका की ही तरह उनके कॉलीग केशनी आनंद अरोड़ा का भी 45व बार ट्रांसफर किया जा चुका है।
अशोक खेमका देश के भावी प्रशासनिक अफसरों के लिए प्रेरणा श्रोत हैं। हालांकि इनकी जीवनी ऐसे अफसरों एवं अधिकारियों के लिए भयावाह हो सकती है जो अपने कार्याकाल के दौरान ईमान्दारी एवं पारदर्शिता को महत्व न देते हों। लेकिन अशोक खेमका मौत जैसी धमकियों से तथा सरकारी दबावों को दरकिनार करते हुए कभी भ्रष्टाचारियों के सामने घुटने न टेके। इसी का नतीजा है कि उन्हें तीन दशकों के कार्यकाल में 50 से अधिक तबादलाओं का सामना करना पड़ा। कई बार तो ऐसा पाया गया कि इनका तबादला एक ऐसे विभाग कर दी गई जहां सामान्य तौर पर वरिष्ट IAS अफसरों की जरुरत नहीं होती। अपनी हार न मानते हुए खेमका हर एक तबादला के बाद नई उर्जा-स्फूर्ति के साथ अपने नए कार्यालय तथा नई कार्यों में जुट जाते हैं। वो जिस भी कार्यालय में कार्यरत होते हैं वहां के भ्रष्ट कर्मचारियों में डर तथा भय का माहौल बना रहता है।
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