UP Board कक्षा 10 विज्ञान के 18th जीवन की प्रक्रियाएँ (activities of life or processes) के 10th पार्ट का स्टडी नोट्स यहाँ उपलब्ध है| हम इस चैप्टर नोट्स में जिन टॉपिक्स को कवर कर रहें हैं उसे काफी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और जहाँ भी उदाहरण की आवश्यकता है वहाँ उदहारण के साथ टॉपिक को परिभाषित किया गया है| इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:
1. ए०टी०पी०
2. लसीका तन्त्र के कार्य
3. धमनी तथा शिरा में अन्तर
4. रुधिर तथा लसीका में भिन्नता
5. हीमोग्लोबिन
6. रक्त परिसंचरण के प्रकार
ए०टी०पी० को उपापचय जगत का सिक्का क्यों कहतें हैं:
जैविक क्रियाओं के लिए उर्जा भोज्य पदार्थों के जैव रासायनिक आक्सीकरण से प्राप्त होती है। मुक्त गतिज ऊर्जा उच्च ऊर्जा बन्धों के रूप में ATP में संचित हो जाती। जब ATP का उच्च उर्जा बन्ध टूटता है तो यह ADP में बदल जाता है और जो ऊर्जा मुक्त होती है, वह जैविक क्रियाओं मे प्रयुक्त होती है। ADP पुन: ऊर्जा तथा फॉस्फेट मूलक (PO-4) ग्रहण करके ATP में बदल जाता हैं। ये क्रियाएँ निरन्तर चलती रहती हैं। ATP को उपापचय जगत का सिक्का या ऊर्जा का दलाल कहते हैं। ATP, से प्राप्त ऊर्जा कोशिकीय कार्यों स्त्रावण, गति तथा संश्लेषण आदि क्रियाओं में प्रयुक्त होती हैं।
लसीका तन्त्र के कार्य (Functions of Lymphatic System) :
रुधिर केशिकाओ से रक्त प्लाज्मा तथा श्वेत रुधिर कणिकाएँ छनकर ऊतकों में पहुँच जाती है । यह
छना हुआ तरल लसीका कहलाता है। लसीका तन्त्र द्वारा यह तरल वापस रुधिर में पहुँचाया जाता है।
(1) लसीका अंगों व गांठों में लिम्फोसाइट्स का परिपक्वन होता है।
(2) लसीका के श्वेत रुधिराणु जीवाणुओं या रोगाणुओं को नष्ट करते हैं।
(3) लसीका आन्तरिक कोमल अंगों की सुरक्षा में सहायता करता हैं।
(4) लसीका अंगों व लसीका गाँठों में एंटीबाडीज या प्रतिरक्षी (antibodies) का निर्माण होता है, जो प्रतिरक्षा तन्त्र का मुख्य भाग हैं व प्रतिरक्षण में भाग लेते हैं।
(5) आँत्र में वसीय अम्ल तथा गिल्सराल का अवशोषण आक्षीर वाहिनियों (lacteals) द्वारा होता है।
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : जीवन की प्रक्रियाएँ, पार्ट-VI
धमनी तथा शिरा में अन्तर (Differences between Arteries and Veins):
क्र.सं. | धमनी (artery) | शिरा (vein) |
1. 2.
3.
4.
5. 6.
| इनमें रुधिर हृदय से अगो की ओर बहता है। हदय स्पन्दन के कारण इसमें रुधिर शिराओं में रुधिर रुक-रुककर तथा अधिक दबाव के साथ बहता है| इनकी दीवारे अत्यधिक मोटी, पेशीय तथा लचीली होती हैं। पल्मोनरी धमनी को छोड़कर धमनियों में शुद्ध (आँक्सीज़नयुक्त) रुधिर होता है। धमनियों में कपाट नहीं होते हैं| ये प्राय: त्वचा से दूर गहराई में स्थित होती हैं| | इनमें रुधिर अंगों से ह्रदय की ओर बहता हैं। शिराओं में रुधिर के बहाव की गति धीमी व एक-सी रहती हैं।
इनकी दीवारे पतली व कम लचीली होती हैं।
पल्मोनरी शिरा को छोड़कर सभी शिराओं में अशुद्ध (आक्सीजनरहित) रुधिर होता है। शिराओं में स्थान - स्थान पर कपाट होते हैं|
ये प्राय: त्वचा के समीप स्थित होती हैं। |
रुधिर तथा लसीका में भिन्नता (Differences between Blood and Lymph) :
क्र. सं. | रुधिर (Blood) | लसीका (Lymph) |
1. 2. 3.
4.
5. | रुधिर का रग लाल होता है रूधिर में लाल रधिराणु पाए जाते है। रुधिर द्वारा अक्तिजिन तथा कार्बन लसीका आंक्सोजन व कार्बन डाइआक्साइड का परिवहन होता है| विलेय प्लाज्मा प्रोटीन अधिक होती है| न्युट्रोफिल्स की संख्या अधिक होती है| आक्सीजन तथा पोषक पदार्थ अधिक मात्रा में पाए जाते हैं| | लसीका का रग श्वेत होता है। लसीका में लाल कुंथिराणु नहीं पाए जाते हैं। लसीका आक्सीजन व कार्बन डाइआक्साइड का परिवहन नहीं करता| अविलेय प्लाज्मा प्रोटीन अधिक होती है| लिम्फोसाइट्स की संख्या अधिक होती है|
उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है| |
हीमोग्लोबिन (haemoglobin) :
हीमोग्लोबिन (haemoglobin) एक प्रकार का लौहयुक्त प्रोटीन है| इसका निर्माण लौहयुक्त वर्णक ‘हीम’ (haem) तथा ग्लोबिन (globin) प्रोटीन से होता है|
कुछ अप्रिष्ठवंशी जन्तुओं के रुधिर प्लाज्मा में हीमोग्लोबिन घुला रहता है; जैसे – केंचुए (earthworm) में| सभी पृष्ठवंशियों (vertebrates) में यह लाल रुधिर कणिकाओं में ही पाया जाता है|
हीमोग्लोबिन वायु की आक्सीजन से मिलकर एकक अस्थायी यौगिक आक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) बनाता हैं| आक्सीहीमोग्लोबिन रक्त द्वारा शरीर के उतकों में पहुचता है ऊतक में आक्सीहीमोग्लोबिन विखण्डित होकर आक्सीजन को मुक्त कर देता है| यह क्रिया निरन्तर चलती रहती हैं; अत: हीमोग्लोबिन शवसन में सहायता करता है|
रक्त परिसंचरण के प्रकार :
1. बन्द प्रकार का रक्त परिसंचरण (Closed type Blood circulation) : इसमें रक्त ‘रक्त वाहिनियों’ (blood vesseles) में बहता है| रक्त वाहिनियों के अन्तर्गत धमनियाँ, शिराएँ तथा रक्त केशिकाएँ आती हैं| पदार्थों का आदान प्रदान रक्त केशिकाओं द्वारा होता है| जैसे मत्स्य, उभयचर, सरीसृप, पक्षी तह स्तनियों में|
2. खुला प्रकार का रक्त परिसंचरण (Open type Blood circulation) : इसमें रक्त ‘रक्त पात्रों (blood sinuses) में भरा होता है| अंग रक्त में डूबे रहते है; जैसे आथ्रोपोडा तथा मोल्सका संघ के सदस्यों में|
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