अब सार्वजनिक बैंकों के लिए एक परीक्षा
बैंक क्षेत्र में बढ़े अवसरों के बीच बैंक कॉमन रिटन टेस्ट का आयोजन करने जा रहे हैं, जिसके तहत अब छात्रों को बैंकिंग क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए एकीकृत परीक्षा में भाग लेना होगा। जिसका आयोजन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सेलेक्शन द्वारा किया जाएगा।
कॉमन रिटेन एग्जामिनेशन (Common Written Exam)
बैंक की नौकरी हमेशा से ही युवाओं को आकर्षित करती रही है। यह ठीक है कि आज युवाओंं के पास कॅरियर की राह में और भी विकल्प हैं, लेकिन सरकारी जॉब की सेक्योरिटी, बेहतर सेलरी, वर्क एटमोस्फियर जैसी कुछ चीजें आज भी इस सेक्टर को कॅरियर के लिहाज से हॉट बनाती है। खैर इन दिनों तो वैसे भी बैंकि क सेक्टर में जॉब्स की बूम भी आई हुई है। अवसरों की ऐसी ही भरमार के बीच देश का बैंकिं गक्षेत्र भी प्रबंधन, मेडिकल, इंजीनियरिंग की राह पर है। जहां इन अलग-अलग सेक्टर्स में आयोजित होने वाली एकीकृत परीक्षाओं की तर्ज पर अब बैंकें भी एकीकृत परीक्षा या कॉमन रिटन टेस्ट का आयोजन करेंगे। कहने का अर्थ यह कि अब छात्र एक ही एग्जाम के जरिए देश के पब्लिक सेक्टर बैंक में अपने लिए अवसर तलाश सकते हैं। इसके कई फायदे भी हैं मसलन इसमें कैंडीडेट्स को न तो बैंकों कीपृथक-पृथक परीक्षाओं में भाग लेने की जरूरत होगी, न ही बैंकों को इन परीक्षाओं के विस्तृत आयोजन, खर्च, प्रबंधन की ही समस्या से जूझना पड़ेगा।
क्या होगा सीडब्ल्यूई का प्रावधान
पब्लिक सेक्टर की 19 बैंक अब प्रोबेशनरी ऑफिसर और मैनेजमेंट ट्रेनी की पोस्ट के लिए कॉमन रिटेन एग्जामिनेशन का आयोजन करने जा रही हैं। इस तरह से अब बैंक की नौकरी करने के इच्छुक कैडीडेट को 19 बैंकों का एक साथ प्लेटफॉर्म उपलब्ध हो जाएगा और उन्हें इनके लिए अलग-अलग परीक्षाएं नहीं देनी होंगी। कॉमन रिटेन एग्जामिनेशन का आयोजन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सेलेक्शन (आईबीपीएस) द्वारा किया जाएगा।
शैक्षिक योग्यता
यह परीक्षा इस समय सिर्फ सार्वजनिक बैंकों में पीओ और मैनेजमेंट ट्रेनी के लिए हो रही है। इस परीक्षा के पहले हर बैंक में अलग-अलग शैक्षिक योग्यता मांगी जाती थी। बैंक में पीओ और मैनेजमेंट ट्रेनी के लिए ग्रेजुएट होना आवश्यक है। कहने का आशय यह है कि यदि आप किसी भी विषय से ग्रेजुएट हैं, तो आप इस परीक्षा के लिए आवेदन कर सकते हैं। क्लर्क पद के लिए इंटरमीडिएट पास होना जरूरी है। इसके साथ ही कैंडीडेट को किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से कम्प्यूटर लिटरेसी का सर्टीफिकेट लेना जरूरी है। अन्य प्रकार के प्रोफेशनल्स के लिए संबंधित क्षेत्र में डिग्री या डिप्लोमा होना जरूरी है।
शैक्षिक योग्यता
यदि आप पीओ और मैनेजमेंट ट्रेनी पद के लिए आवेदन करना चाहते हैं, तो इस परीक्षा के लिए उम्र सीमा भी निर्धारित है। अगर आप जनरल केटेगरी में आते हैं, तो अधिकतम उम्र सीमा 30 वर्ष और न्यूनतम उम्र सीमा 21 वर्ष निर्धारित है। ओबीसी के लिए अधिकतम उम्र सीमा में तीन वर्ष, एससी, एसटी के लिए 5 वर्ष और समाज के विकलांग व्यक्तियों के लिए दस वर्ष तक की छूट का प्रावधान है। क्लर्क पदों के लिए उम्र सीमा जनरल कैंडिडेट के लिए 18 से 28 वर्ष निर्धारित है। ओबीसी के लिए तीन वर्ष, एससी, एसटी अभ्यर्थियों के लिए अधिकतम उम्र सीमा में सरकारी नियमानुसार छूट का प्रावधान है।
क्या है चयन प्रक्रिया
पब्लिक सेक्टर के बैंकों में प्राय: प्रोबेशनरी ऑफिसर और क्लर्क पदों के लिए दो स्तरीय परीक्षाएं होती हैं। पहले चरण में लिखित परीक्षा तथा दूसरे चरण में ग्रुप डिस्कशन व इंटरव्यू होता है। पहले चरण में क्वालिफाइंग माक्र्स हासिल करने वाले कैैंडीडेट को ही दूसरे चरण यानि ग्रुप डिस्कशन व इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है। दोनों चरणों में प्राप्त माक्र्स के आधार पर ही अंतिम मेरिट लिस्ट तैयार की जाती है। लिखित परीक्षा के पहले चरण में वस्तुनिष्ठ अर्थात ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न पूछे जाते हैं। अंग्रेजी भाषा, तर्कशक्ति परीक्षण, डाटा एनालिसिस व इंटरप्रेटेशन और सामान्य जानकारी से संबंंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। लिखित परीक्षा के दूसरे चरण में एक घंटे के प्रश्नपत्र में वर्णनात्मक प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं। इसमें क्वलीफाई करने वाले कैडीडेट को ही ग्रुप डिस्कशन व इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है।
सीडब्ल्यूई परीक्षा पैटर्न
इसकी परीक्षा भी वस्तुनिष्ठ प्रकार की होगी, जिसमें पांच क्षेत्रों से संबंधित प्रश्न होंगे। कुल 250 अंकों की परीक्षा होगी, जिसके अंतर्गत रीजनिंग, इंग्लिश लैंग्वेज, क्वांटेटिव एप्टीट्यूड और कम्प्यूटर नॉलेज से संबंधित प्रश्न होंगे। इसके अतिरिक्त डिसक्रिप्टिव पेपर होंगे। डिसक्रिप्टिव पेपर के अंतर्गत एस्से, प्रेसिस, लेटर राइटिंग से प्रश्न पूछे जाएंगे।
सिलेबस स्कैन
अधिकारी से लेकर क्लर्क ग्रेड की परीक्षाओं में सिलेबस निर्धारित होता है। प्राय: सभी बैंकों में एक ही तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं, लेकिन स्टैंडर्ड अलग होता है। पीओ के लिए ग्रेजुएट लेवल और क्लर्क ग्रेड के लिए इंटरमीडिएट स्टैंडर्ड होता है। अगर स्टूडेंट कुछ चीजों पर विशेष ध्यान दें, तो बोझिल और मुश्किल लगने वाली यह तैयारी कहीं आसान हो जाती है साथ ही साथ सेलेक्शन की उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं।
रीजनिंग
इसके माध्यम से अभ्यर्थी की सोचने-समझने की काबिलियत की परीक्षा की जाती है। रीजनिंग व्यक्तिगत पसंद का विषय है। यह कई लोगों के लिए बहुत बोझिल विषय है, कई लोगों के लिए मनोरंजक है। बैंकिंग परीक्षा में रीजनिंग को किसी भी सूरत में मैथ से कमजोर नहीं कहा जा सकता है। दोनों में अच्छी पकड़ रखनेवाले स्टूडेंट्स शत-प्रतिशत अंक ला सकते हैं। नियमित अभ्यास से इसे कहीं आसान बनाया जा सकता है। इसमें वर्बल और नॉन वर्बल दोनों तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं। वर्बल में नंबर सीरीज, अल्फाबेट सीरीज, डायरेक्शन टेस्ट, कोडिंग-डिकोडिंग, नंबर रैंकिंग, अर्थमैटिकल रीजनिंग, ब्लड रिलेशन, एनॉलाजी, डीसीजन मेकिंग आदि के प्रश्न पूछे जाते हैं। नॉनवर्बल में ग्रुपिंग, फिगर रिलेशनशिप और सीरीज के प्रश्न होते हैं। वर्बल रीजनिंग में अच्छे अंक नियमों की जानकारी और अभ्यास के द्वारा हासिल किए जाते हैं, वहीं नॉनवर्बल में अभ्यास ही सफलता का असली आधार होता है।
मैथ्स
रीजनिंग की तरह ही गणित भी पूरी तरह स्कोरिंग सब्जेक्ट है। इसकी तैयारी के लिए अगर स्पीड को ध्यान में न रखकर सवाल लगाए जाएं तो ठीक रहता है। इसमें सभी प्रश्न कांसेप्ट पर आधारित होते हैं। इस कारण कांसेप्ट क्लियर होने के बाद आप किसी भी तरह के प्रश्नों को आसानी से हल कर सकते हैं। बैंक में प्रश्नों का रीपिटेशन बहुत कम होता है, लेकिन उसके आधार पर प्रश्न काफी पूछे जाते हैं। इस स्थिति में यदि आपको कांसेप्ट क्लियर नहीं है, तो अभ्यास के बावजूद इसमें बेहतर स्कोर नहीं ला सकते हैं। इसमें शॉर्ट ट्रिक और सूत्रों को जाने बिना सफल होना नामुमकिन है। इन ट्रिकों को कोचिंगों एवं बाजार में उपलब्ध पुस्तकों से सीखा जा सकता है।
अंग्रेजी भाषा
अंग्रेजी भाषा में वही सब पूछा जाता है, जो निर्धारित योग्यता रखने वाले पहले पढ़ चुके होते हैं। अंग्रेजी में सफलता के लिए तीन चीजों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है वे हैं- ग्रामर की जानकारी और शब्दों का सही प्रयोग, स्पेलिंग की सटीक जानकारी और सेंटेंस फॉर्मेशन में निपुणता। इसके लिए जरूरी है कि आप एक राष्टï्रीय अंग्रेजी अखबार का नियमित अध्ययन करें और शब्द भंडार बढ़ाने की कोशिश करें।
सामान्य सचेतना
रीजनिंग, मैथ्स और अंग्रेजी में अच्छे अंक लाकर मेरिट में स्थान बना लेने वाले स्टूडेंट्स में असली कंपटीशन इसी विषय में होता है। इसमें कहीं से भी कुछ पूछा जा सकता है। इस खंड में तैयारी के लिए जरूरी है कि पिछले 6 महीनों में घटित देश-विदेश की प्रमुख घटनाओं, खेलों, संधियों से अपडेट रहें। इसमें इकोनॉमिक्स और बैंक से संबंधित प्रश्नों की तैयारी के लिए अधिक समय दें। यदि आप आंख कान खुला रखकर कंपटीशन की नियमित आने वाली मंथली मैग्जीन्स और डेली समाचार पत्र पढ़ते हैं, तो विशेष परेशानी नहीं होगी। महत्वपूर्ण चीजों का एक नोटबुक बनाना उपयोगी हो सकता है।
डिसक्रिप्टिव टेस्ट
इसमें सिर्फ क्वालीफांइग माक्र्स लाना जरूरी होता है। इसकी तैयारी के लिए यदि आप करेंट से पूरी तरह अवगत रहते हैं और उसे अच्छी तरह लिखने का अभ्यास करते हैं, तो विशेष परेशानी नहीं होगी। यदि आप अंग्रेजी और हिंदी अखबार का संपादकीय पेज नियमित पढ़ते हैं, तो आपको इसमें विशेष परेशानी नहीं होगी।
ग्रुप डिस्कशन व इंटरव्यू
ग्रुप डिस्कशन में कैडीडेट के कॉन्फिडेंस लेवल और नेतृत्व क्षमता को परखा जाता है। इंटरव्यू में कैैंडीडेट का पर्सनैल्टी टेस्ट लिया जाता है। इसके द्वारा यह देखा जाता है कि कैैंडीडेट के सामान्य ज्ञान का क्या स्तर है, उसकी कम्युनिकेशन स्किल्स ठीक हैं? उसका व्यक्तित्व कैसा है? सबसे अहम कि कैंडीडेट दबाव में काम करने में सक्षम है कि नहीं? अधिकतर स्टूडेंट्स ग्रुप डिस्कशन से डरते हैं। ग्रुप डिस्कशन आठ-दस लोगों का ऐसा समूह होता है, जिसमें कोई लीडर नहीं होता है और इसके सभी सदस्य विशेष परिस्थिति में किसी विषय पर दिए गए समय में अपने आकलन और विचार प्रस्तुत करते हैं। ग्रुप डिस्कशन में भाग लेने वाले सदस्यों की संख्या और इसके लिए निर्धारित समय परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं। ग्रुप डिस्कशन के दौरान मोडेरेटर पेनल प्रतिभागी पर जिन बिंदुओं के तहत ध्यान देते हैं, वे इस प्रकार हैं :
1. लीडरशिप एबिलिटी- मोडेरेटर पेनल आब्सर्व करता है कि कैंडीडेट इनिशेटिव लेता है या नहीं, उसमें दिशा देने की कितनी क्षमता है? क्या वह आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेता है? ग्रुप में लोगों से उसका कॉर्डिनेशन कैसा है? वह लक्ष्य के प्रति कितना सजग है?
2. नॉलेज- इसके अंतर्गत यह देखा जाता है कि कैंडीडेट की सब्जेक्ट पर पकड़ कितनी है। इसके अलावा वह अपने खुद के विचार कैसे समाहित करता है।
3. एनालिटिकल एबिलिटी- यह बहुत मायने रखता है कि आप एनालिटिकली कितने सक्षम हैं। आप आर्गुमेंट को कैसे इस्तेमाल करते हैं और आपके लॉजिक में कितना दम है।
4. कम्युनिकेशन- यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें आपकी फ्लुएंसी, विचारों में स्पष्टता, प्रजेंटेशन स्किल्स, लिसनिंग एबिलिटी, आपका दृष्टिकोण और बॉडी लेंग्वेज देखी जाती है।
5. ग्रुप बिहेवियर- मोडेरेटर पेनल यह भी ऑब्जर्व करता है कि ग्रुप में आपका बिहेव कैसा है। कहीं आप ओवर एग्रेसिव तो नहीं हैं? दूसरों पर बिना वजह हावी होने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? सेंसेटिव टॉपिक पर आपकी भाषा कैसी है?
कैसे पाएं सफलता
ग्रुप डिस्कशन में सफल होने के लिए जरूरी है कि आप ग्रुप में एक टीम प्लेयर की तरह रहें। खुद को साबित करने की कोशिश में आप दूसरों की अवहेलना न करें।
आप खुद को कैसे आंकते हैं, यह बात मायने नहीं रखती, बल्कि मायने इस बात के हैं कि मोडेरेटर पेनल आपको कैसे रेट करता है। अगर आप यह बात अपने दिमाग में रखें तो ग्रुप डिस्कशन में आपकी परफार्मेंस आश्चर्यजनक रूप से सुधर जाएगी।
कैसे करें शुरुआत
1. अगर आप जीडी में पहल करते हैं तो उसका फायदा यह है कि आपकी इमेज मोडेरेटर पेनल के समक्ष इनिशेटिव लेने वाले केंडिडेट की बनेगी। इसके अलावा दूसरी बार बोलने के लिए आपको पर्याप्त समय मिलेगा, जिसका आप बखूबी इस्तेमाल कर सकते हैं।
2. डिस्कशन शुरू करके आप ग्रुप को दिशा देंगे, जबकि ग्रुप के शेष लोग डिस्कशन के टॉपिक को ही टटोलते रहेंगे।
3. डिस्कशन की शुरुआत तभी करें जब आप दिए गए टॉपिक पर कुछ सेंसिबल बोल सकें, अन्यथा खामोश रहना ही उचित होगा।
4. जितना बोलें टू द प्वाइंट बोलें और डिस्कशन को तभी समाप्त करें जब मोडेरेटर ऐसा करने को कहें।
5. डिस्कशन को समराइज करने में एक ही बात को न दोहराएं, बल्कि अपनी बात प्रभावशाली अंदाज में कहें।
6. अगर ग्रुप डिस्कशन के अंत तक डिस्कशन का कोई नतीजा निकल सके तो उसे मेंशन जरूर करें।
इंट्री स्ट्रेटजी- कभी-कभी ग्रुप में अपनी बात शुरू करना मुश्किल होता है। आप तय नहीं कर पाते हैं कि कब बोलने की शुरुआत करें। जीडी में ऐसी सिचुएशन का सामना कैसे करें, इसके लिए कुछ टिप्स नीचे दिए गए हैं।
1. जीडी पर लगातार ध्यान बनाए रखें। हर जीडी में उतार-चढ़ाव आते हैं। आप उतार का इंतजार करें और जैसे ही लगे डिसक्शन कमजोर पड़ रही है, फौरन अपनी बात शुरू कर दें। इससे मोडेरेटर पेनल पर अच्छा असर पड़ेगा।
2. किसी की बात काटकर बीच में न बोलें। तभी बोलना शुरू करें जब आपका साथी अपनी बात कह चुका हो, लेकिन ज्यादा इंतजार भी न करें, वरना आप मौका खो देंगे।
3. ग्रुप डिस्कशन में आप किसी प्वाइंट का समर्थन करते हुए अपनी बात शुरू कर सकते हैं। यह सबसे सुरक्षित तरीका माना जाता है। लोग आपको बोलने देंगे अगर आप उनके विचारों की सराहना करेंगे।
4. अगर आप धीरे बोलेंगे तो हो सकता है कि लोग आपको हलके में लें। परिस्थिति के अनुसार अगर आप थोड़ा लाउड बोले रहे हैं तो यह समय की माँग है।
रखें इन बातों का ध्यान
* जीतने की भावना रखें
* मोडेरेटर पेनल के निर्देश ध्यानपूर्वक सुनें
* दूसरों को सुनना भी एक आर्ट है
* अपनी बात को घुमाने के बजाय सरल तरीके से कहें
* अपनी डिस्कशन में वेल्यू एड जरूर करें
* जीडी को सही दिशा में आगे बढ़ाएँ
* पूरे समय विनम्र बने रहें।
* अगर किसी बात से सहमत नहीं हैं तो उसके पक्ष में तथ्य पेश करें
* ग्रुप से आई कॉन्टेक्ट बनाए रखें
क्या न करें
* जीडी में व्यवधान न डालें
* खुद को मोनोपोलाइस करने की कोशिश न करें
* पेनल को एड्रेस करने की भूल न करें
* हाथों को बाँधकर न रखें
* अपनी बारी आने से पहले न बोलें
* तेज आवाज में बोलने से बचें
* किसी की ज्यादा तारीफ करने से बचें
* उत्तेजित न हों
इस प्रकार कहा जा सकता है कि यदि आप पहले से बेहतर तैयारी करके इंटरव्यू या ग्रुप डिस्कशन के लिए जाते हैं, तो आप अपनी दावेदारी मजबूती से पेश कर सकते हैं।
बढ़ा स्कोप, बढ़ी ऑपर्चुनिटी
हाल के वर्र्षों में बैंकिंग जॉब्स का दायरा काफी ज्यादा बढ़ गया है। इसमें फाइनेंस, मैनेजमेंट, बिजिनेस, पर्सनल, मार्केटिंग, ऑपरेशन, इलेक्ट्रॉनिक सर्विस, कार्ड सर्विस, क्रेडिट एंड रिस्क आदि से जुड़े कार्य होते हैं। साथ ही कई स्तर पर अन्य एम्पलॉइज भी
कार्य करते हैं, जैसे चीफ एग्जीक्यूटिव, जनरल एंड ऑपरेशन मैनेजर, मार्केटिंग एंड सेल्स, कम्प्यूटर एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम मैनेजर, फाइनेंशियल मैनेजर, ह्यïूमन रिसोर्स, ट्रेनिंग एंड लेबर रिलेशन स्पेशलिस्ट, मैनेजमेंट एनालिस्ट, अकाउंट एंड ऑडिट, क्रेडिट एनालिस्ट, पर्सनल फाइनेंशिलय एडवाइजर, लोन काउंसलर, लोन ऑफिसर्स, कम्प्यूटर स्पेशलिस्ट, क्लर्क आदि। हालांकि इस फील्ड में लोग अलग-अलग एरिया से जुड़े होते हैं, लेकिन कुछ कॉमन स्किल्स होती हैं, जिनकी जरूरत सभी बैंक एम्प्लाइज को होती है। आने वाले समय में मोबाइल व इंटरनेट बैंकिंग के भी काफी तेजी से बढऩे की संभावना व्यक्त की जा रही है। इस कार्य के लिए तकनीकी रूप से दक्ष लोगों की जरूरत होगी।
उदारीकरण ने बदली तस्वीर
1991 में आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए भारतीय नीति निर्माताओं ने आर्थिक उदारीकरण का रास्ता चुना जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूप को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। आर्थिक उदारीकरण के पूर्व के दौर में प्राइवेट सेक्टर का दायरा काफी सीमित था और वहां सीमित संख्या में ही नौकरियां मौजूद थीं। लेकिन आर्थिक उदारीकरण ने इस परिदृश्य को पूरी तरह से उलट दिया, और प्राइवेट सेक्टर में मोटी तनख्वाह वाली नौकरियों की बहार सी आ गई। बेहतर अवसर मिलने की वजह से युवा वर्ग काफी हद तक प्राइवेट सेक्टर की ओर आकर्षित होने लगा और सरकारी नौकरियों में अच्छे लोगों की कमी महसूस की जाने लगी।
लेकिन 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी इस परिदृश्य में बदलाव लाई। यह वह दौर था, जब प्राइवेट सेक्टर की छोटी ही नहीं, नामी गिरामी कंपनियां भी अपने एग्जीक्यूटिव्स को तेजी से हटा रही थीं। तब सरकारी क्षेत्र इस उथल-पुथल से पूरी तरह से महफूज था। वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान भी सरकारी बैंकिंग सेक्टर में लोगों की नौकरियां पूरी तरह सुरक्षित रहींशायद यही कारण है कि आज का युवा एक बार फिर से बैंकिंग सेक्टर की ओर फिर से आकर्षित हो रहा है।
भारतीय आर्थिक परिदृश्य
जहां भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2007-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण आई मंदी का सफलतापूर्वक मुकाबला किया और जल्दी ही अर्थव्यवस्था इसके बदतर प्रभावों से बाहर आने में कामयाब हो गई। सन 2010 के दौरान यह स्थिति विशेष रूप से देखी गई। 31 जनवरी, 2011 को जारी त्वरित अनुमानों द्वारा 2009-10 की अब 8.0 प्रतिशत पर अनुमानित वृद्धि तथा 7 फरवरी, 2011 को जारी केेंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के अग्रिम अनुमानों के अनुसार 2010-11 में अनुमानित 8.6 प्रतिशत की वृद्धि से अर्थव्यवस्था काफी तेजी से मजबूती के साथ उभरी है।
सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product)
केेंद्रीय सांख्यिकीय संगठन ने 7 फरवरी, 2011 को वर्ष 2010-11 के लिए अग्रिम अनुमान जारी किए हैं। वर्तमान वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूत वृद्धि हुई और अब इसके दीर्घावधि तक रहने की संभावना है। वर्ष 2010-11 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में आंकी गई 8.6 प्रतिशत की वृद्धि, जो वर्ष 2009-10 में 8.0 प्रतिशत की संशोधित वृद्धि तथा वर्ष 2008-09 में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि के बाद हुई थी, अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक संकट के पूर्व के स्तर पर पहुँच गई है। वर्ष 2010-11 के दौरान कृषि, उद्योग, सेवाओं जैसे सेक्टर में अपेक्षित वृद्धि हुई।
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
वित्त वर्ष 2010-11 के आम बजट ने आर्थिक मंदी के दौरान दिए गए राहत पैकेजों को वापस लेते हुए वित्तीय समेकन (Financial consolidation) की रहा पुन: पकड़ी। सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में राजकोषीय घाटा 2010-11 के बजट में सकल घरेलू उत्पाद के 5.5 प्रतिशत पर अनुमानित था और मध्यावधि राजकोषीय नीति विवरण में 2011-12 और 2012-13 के दौरान 4.8 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत तक और गिरावट निर्दिष्ट की गई। वित्त वर्ष 2010-11 के नौ महीनों के दौरान राजकोषीय स्थिति बजट द्वारा निर्मित समेकन पथ पर मोटे तौर पर बनी रही।
2010-11 के बजट ने सकल घरेलू उत्पाद के प्रति सम्मिलित सार्वजनिक ऋण के अनुपात को 2014-15 तक 68 प्रतिशत तक सीमित करने संबंधी तेरहवें वित्त आयोग की सिफारिश पर अनुवर्तन प्रास्थिति दस्तावेज में मामलों का विश्लेषण करने के वायदे से किया जिसमें ऐसी कटौती संबंधी कार्य योजना का खुलासा भी होगा।
सेक्टर जो बन रहे हैं
इकनामी का आधार
यहां कई ऐसे सेक्टर्स के बारे में बताया जा रहा हैं जो देश के साथ साथ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिहाज से भी महत्वपूर्ण समझे जाते हैं। दरअसल देश की इकनॉमी से जुड़े ये वे क्षेत्र हैं जो आम आदमी की सेहत पर सीधा असर डालते हैं ऐसे में इनसे संबधित प्रश्रों को नजरंदाज करना ख्ुाद आप पर ही भारी पड़ सकता है।
कृषि
भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों का योगदान 2007-08 और 2008-09 के दौरान क्रमश: 17.8 और 17.1 प्रतिशत रहा। हालांकि कृषि उत्पादन मानसून पर निर्भर करता है, क्योंकि लगभग 55.7 प्रतिशत कृषि क्षेत्र वर्षा पर निर्भर है।
कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के समग्र निष्पादन में एक महत्वपूर्ण कारक बनी हुई है। यह स्मरणीय तथ्य है कि इस क्षेत्र में 2007-08 को समाप्त हुए त्रयवर्ष में औसत वार्षिक आधार पर 5.0 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई थी, जब सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 9 फीसदी से ज्यादा थी। यह क्षेत्र 2010-11 की पहली छमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के 12.7 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। 1972 के बाद से सबसे कम दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की वर्षा होने और 2009-10 में खरीफ खाद्यान्न उत्पादन के स्तरों में महत्वपूर्ण गिरावट के बावजूद, कृषि में मुख्यतया अच्छी रबी फसल के कारण 0.4 प्रतिशत का साधारण सुधार हुआ। रबी की फसल के के उत्पादन के बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा पहले की किए गए अनेक उपायों का अच्छा प्रभाव हुआ। कृषि का क्षेत्र भी पहले ऋणों को माफ करने और किए गए अन्य उपायों से और अधिक लाभकारी मूल्य समर्थन द्वारा व्यापक रूप से समर्थित हुआ। सामान्य से अधिक वर्षा होने से, वित्त वर्ष 2010-11 में इस क्षेत्र की संभावनाएं काफी अच्छी आंकी गईं। इस दौरान 2009-10 की पहली छमाही के दौरान 1.0 प्रतिशत की तुलना में 2010-11 की पहली छमाही के दौरान 3.8 प्रतिशत हो गई। केेंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के अग्रिम अनुमानों में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की वृद्धि दर को 5.4 प्रतिशत के स्तर पर रखा गया है।
देश में 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक चावल, गेहूँ और दालों का उत्पादन क्रमश: 10, 8 और 2 लाख टन बढ़ाने के लिए केद्र प्रायोजित योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन आरंभ की गई। मिशन में 17 राज्यों के 312 जिलों को शामिल किया गया है और यह योजना वर्ष 2007-08 के रबी सत्र से लागू हो गई। परीक्षा में कृषि से जुड़ी सरकारी नीतियां,कृषि का विकास,उत्पादन से जुड़े प्रमुख तथ्यों के बारे में प्रश्र पूछे जाते हैं। ऐसे में इन तथ्यों के बारे में अध्ययन काफी फायदेमंद हो सकता है।
उद्योग
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र में वृद्धि दर में वित्त वर्ष 2010-11 की पहली दो तिमाहियों के दौरान काफी उतार-चढ़ाव रहा। विनिर्माण क्षेत्र ने विशेष रूप से मजबूती का प्रदर्शन किया व इन दो तिमाहियों के दौरान इसमें क्रमश: 12.6 प्रतिशत और 9.7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई। मासिक आधार पर आईआईपी आंकड़े निर्दिष्ट करते हैं कि आईआईपी में संवृद्धि नवंबर 2009 में 11.3 प्रतिशत से तीव्र रूप से गिरकर नवंबर 2010 में 2.7 प्रतिशत के स्तर पर आ गई। वित्त वर्ष 2010-11 (अप्रैल-नवंबर) के लिए आईआईपी में संवृद्धि पिछले वर्ष की तुलना में हासिल 7.4 प्रतिशत की संवृद्धि के स्तर की तुलना में 9.5 प्रतिशत आंकलित की गई है। केेंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के दिसंबर 2010 के आंकड़ों के अनुसार वृद्धि दर 1.6 प्रतिशत व अप्रैल-दिसंबर 2010 के दौरान 8.6 प्रतिशत की दर्ज हुई।
आईआईपी के अनुसार वित्त वर्ष 2010-11 की दूसरी छमाही में विनिर्माण वृद्धि दर गिरकर 9.7 प्रतिशत रह गई।
आर्थिक स्थिति में सुधार के पश्चात औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर अधिकांशत: कुछेक क्षेत्रों द्वारा चालित हैं जैसे कपास, वस्त्र, चमड़ा, खाद्य उत्पादों और धातु उत्पाद, आटोमोटिव क्षेत्र आदि। इन व इनसे संबधित आंकड़े आज बैकिंग परीक्षाओं में बड़ी संख्या में पूछे जा रहे हैं।
छह मूल उद्योगों में वृद्धि
छह मूल उद्योगों, जिन पर देश के इंफ्रास्ट्रक्चर की निर्भरता काफी ज्यादा रहती है। जिनकी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 26.7 प्रतिशत की संयुक्त भारिता है, के दिसंबर 2009 में 6.2 प्रतिशत की तुलना में दिसबंर 2010 में 6.6 प्रतिशत (अंतिम) की वृद्धि दर्ज की गई। अप्रैल-दिसंबर, 2010-11 के दौरान, इन मूल उद्योगों ने पिछले वर्ष की तद्नुरूपी अवधि के दौरान 4.7 प्रतिशत की तुलना में 5.3 प्रतिशत ( अनंंतिम) की वृद्धि दर्ज की।
विद्युत उत्पादन:
2010-11 के दौरान विद्युत उपयोगिताओं द्वारा बिजली उत्पादन का लक्ष्य 7.7 प्रतिशत बढ़कर 830.757 बिलियन किलोवाट घंटा पर पहुंचने का था। अप्रैल-दिसंबर, 2010 के दौरान नाभिकीय, जल-विद्युत और तापीय विद्युत यूनिटों द्वारा उत्पादन में क्रमश: 33 प्रतिशत, 8 प्रतिशत और 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
कच्चा तेल:
वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान कच्चे तेल का उत्पादन 37.96 बिलियन मीट्रिक टन होना अनुमानित था जो 2009-10 के दौरान 33.69 मिलियन मीट्रिक टन कच्चे तेल के उत्पादन से लगभग 12.67 प्रतिशत अधिक है।
इंफ्रास्ट्रक्चर:
समग्र रूप से, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में क ी परफॉर्मेंस मिली जुली रही। कुछ क्षेत्रों ने जैसे कि दूरसंचार ने काफी अच्छा निष्पादन किया है जबकि कुछ सेक्टरों में उपलब्धियां लक्ष्य से पीछे रहीं। 2007-09 से 2009-10 के दौरान क्षमता वद्र्धन विद्युत, सड़कों, नई रेल लाइनों और रेलने लाइनों को दोहरा करने में लक्ष्य, की तुलना में कम रहा।
नेशनल हाइवे:
नेशनल हाइवे की कुल लंबाई का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा सिंगल लेन व मीडियम लेन वाला है, लगभग 52 प्रतिशत हिस्सा दो लेन के स्तर का है और बाकी 23 प्रतिशत हिस्सा फोर लेन स्तर अथवा उससे अधिक का है। वर्ष 2010-11 में, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के विभिन्न चरणों के अंतर्गत नवंबर 2010 तक की कुल उपलब्धि लगभग 1007 किमी. रही है। 2010-11 के दौरान एनएचडीपी के अंतर्गत नवंबर 2010 तक लगभग 3780 किमी. की कुल लंबाई की परियोजनाएं पूरी की गई।
सिविल एविएशन:
सिविल एविएशन सेक्टर में अनुसूचित अंतर्देशीय यात्री यातायात जनवरी-दिसंबर 2010 के दौरान 2009 की समान अवधि में 43.3 मिलियन के यातायात के स्तर की तुलना में 19 प्रतिशत की संवृद्धि दर के साथ बढ़कर 51.53 मिलियन हो गया। दिसंबर 2010 में अनुसूचित ऑपेरटरों की संख्या 121 हो गई थी, जिनके बेड़े में 360 हवाई जहाज थे।
दूरसंचार:
निजी क्षेत्र की बढ़ती हुई भागीदारी के चलते, कुल टेलीफोन कनेक्शनों में निजी क्षेत्र का हिस्सा, 1999 में मात्र 5 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर नवंबर 2010 में 84.5 प्रतिशत हो गया। टेलीघनत्व जो टेलीकॉम पेनीट्रेशन का एक महत्वपूर्ण संकेतक है, मार्च 2004 में 7.02 प्रतिशत से बढ़कर नवंबर 2010 में 64.34 प्रतिशत हो गया। ग्रामीण टेलीघनत्व जो मार्च 2004 में 1.57 प्रतिशत से अधिक था, नवंबर 2010 के अंत तक बढ़कर 30.18 प्रतिशत हो गया। शहरी टेलीघनत्व मार्च 2004 में 20.74 प्रतिशत से बढ़कर नवंबर 2010 के अंत में 143.95 प्रतिशत हो गया।
सेवा क्षेत्र
सेवा क्षेत्र की भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में कुल 57.3 प्रतिशत का योगदान है। इसमें 2009-10 के दौरान कुल 10.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसमें 2010-11 की पहली छमाही में 27.4 प्रतिशत निर्यात संवृद्धि के साथ कुल निर्यातों में 35 प्रतिशत की हिस्सेदारी रही। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सेवा क्षेत्र की भारतीय अर्थव्यवस्था में एक प्रबल भूमिका है। विभिन्न राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र के हिस्सों की तुलना दर्शाती है कि भारत के अधिकांश राज्यों में भी सेवा क्षेत्र एक प्रबल क्षेत्र है।
उच्च संवृद्धि वाली सेवा श्रेणियां हैं- वित्तपोषण, बीमा, रियल इस्टेट और कॉमर्सियल सर्विसेज तथा परिवहन भंडारण और कम्युनिकेशन। व्यापार होटल तथा रेस्त्रां में वृद्धि जो 2008-09 में धीमी हो रही थी, में 2009-10 में संतुलित सुधार हुआ। उपश्रेणियों में वर्ष 2008-09 में संचार (25.7 प्रतिशत), लोक प्रशासन तथा रक्षा (22.1 प्रतिशत), बैंकिंग तथा बीमा (13.9 प्रतिशत) तथा भंडारण (11.6 प्रतिशत) द्वारा दो अंकों में वृद्धि दर्ज की गई। कॉमर्सियल सेवाओं में सबसे महत्वपूर्ण श्रेणी है कम्प्यूटर सेवाओं की। कम्प्यूटर संबंधित सेवाओं ने जिनमें वर्ष 2008-09 में 21.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, वैश्विक संकट के कारण वर्ष 2009-10 में 5.2 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्ज की गई। सेवा क्षेत्र में आरबीआई व सरकार के अमूल चूल निर्णयों के बारे में तथ्य आधारित प्रश्र पूछे जाते हैं।
वाणिज्य व व्यापार
भारत के आर्थिक विकास में विदेश व्यापार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारत के विदेश व्यापार की संरचना और दिशा में विशेष रूप से 1990 के दशक के शुरू से उदारीकरण प्रक्रिया प्रारंभ होने के बाद बहुत बदलाव आया है। अब हमारे प्रमुख निर्यात माल में तैयार माल जैसे- इंजीनियरिंग एवं पेट्रोलियम उत्पाद, रासायनिक एवं संबद्ध उत्पाद, रत्न एवं आभूषण, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स सामान आदि शामिल हैं। जिनका कुल निर्यात में योगदान 80 प्रतिशत से अधिक का होता है। दूसरी ओर बड़ी आयात वस्तुओं में पूंजीगत और बीच के माल शामिल हैं, जिनमें निर्माण क्षेत्र को सहायता ही नहींमिलती बल्कि आयातोन्मुखी यूनिटों को कच्चा माल भी पास होता है। पिछले वर्र्षों में एशिया व आसियान देशों और अफ्रीका को निर्यात काफी ज्यादा बढ़ा है। साथ ही, भारत अब विदेश व्यापार में बड़ी भूमिका वाला देश बन गया है और देश की अर्थव्यवस्था के सभी प्रमुख क्षेत्र बाहरी दुनिया से व्यापार द्वारा जुड़ गए हैं।
देश का कुल विदेशी व्यापार 1991-92 में (आयात और निर्यात जिसमें पुनर्निर्यात भी शामिल था) 91,893 करोड़ रु. था। तबसे इसमें कभी-कभार आई कमी को छोड़कर निरंतर वृद्धि होती रही है। वर्ष 2008-09 में भारत का विदेश व्यापार 20,72,438 करोड़ रु. तक पहुँच गया।
देश का आयात-निर्र्यात व्यापार-
भारत का निर्यात 2008-09 के दौरान 16.9 प्रतिशत बढ़कर रु. 7,66,935 करोड़ रु. हो गया। अमेरिकी डॉलर में यह आंकड़ा साढ़े तीन प्रतिशत की वृद्धि के साथ 168.7 अरब अमेरिकी डॉलर पहुँच गया। जबकि पिछले साल यह बढ़त 29.1 प्रतिशत आंकी गई थी। सितंबर 2008 के बाद निर्यात में भारी गिरावट दर्ज की गई। वित्तीय वर्ष की पहली छमाही अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान लगभग सभी कमोडिटी क्षेत्रों के निर्यात में 31.3 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
वर्ष 2008-09 में आयात 2007-08 के रुपए 10,12,312 करोड़ रु. के स्तर से बढ़कर रुपए 13,05,503 करोड़ रु. हो गया जो 29 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। जबकि अमेरिकी डॉलर में 2008-09 के दौरान आयात 14.4 प्रतिशत बढ़कर 287.8 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँच गया। इस अवधि के दौरान भारत का तेल आयात 16.9 प्रतिशत बढ़कर 93.2 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुँच गया। गैर तेल आयात भी बढ़कर 194.6 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया।
सकल घाटा
वर्ष 2008-09 के दौरान व्यापार घाटा बढ़ा। वर्ष 2007-08 के 356449 करोड़ की तुलना में यह 538568 करोड़ रु. तक पहुँच गया। अमेरिकी डॉलर में यह घाटा 119 अरब अमेरिकी डॉलर को पार कर गया जबकि इसके पूर्व वर्ष में यह घाटा 88.5 अरब अमेरिकी डॉलर था।
भारत के व्यापारिक संबंध सभी बड़े व्यापारिक समूहों और भौगोलिक क्षेत्रों से हैं। अप्रैल-जनवरी 2008-09 में एशिया और आसियान (दक्षिणी एशिया, मध्यपूर्व, खाड़ी देश को) 51.4 प्रतिशत निर्यात किया गया। भारत के निर्यात में यूरोप और अमेरिका की हिस्सेदारी क्रमश: 32.8 और 16.5 प्रतिशत रही। यूरोपीय देशों के 27 देशों का कुल भारतीय निर्यात में 22.3 प्रतिशत हिस्सा रहा। इस अवधि के दौरान अमेरिका को सबसे अधिक (12 प्रतिशत) निर्यात किया गया, इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात (10.8 प्रतिशत), चीन (5.1 प्रतिशत) आदि का स्थान रहा।
देशों के साथ भारत के व्यापारिक संबध-
आयात के मामले में एशिया और आसियान देशों का भारत के साथ सबसे ज्यादा व्यापार हुआ। इसके बाद यूरोप और अमेरिका का नंबर आता है। आयात के मामले में चीन (10.7 प्रतिशत) सबसे आगे हैं। सऊदी अरब (7.1 प्रतिशत), संयुक्त अरब अमीरात (6.4 प्रतिशत) आदि का नंबर इसके बाद आता है।
आम बजट (2011-12)
परीक्षा के द्रष्टिकोण से करेंट अफेयर्स सेक्शन में आम बजट से संबधित प्रश्नों की अच्छी खासी संख्या रहती हैं। जिन पर ध्यान देना महत्वपूर्ण होगा।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 28 फरवरी, 2011 को आम बजट पेश किया। यह उनके द्वारा पेश किया गया छठवां नियमित बजट था। इसके पूर्व 1982-83, 1983-84, व 1984-85 के अलावा 2009-10 व 2010-11 के भी आम बजट उन्होंने पेश किए।
सरकार का आर्थिक लेखा-जोखा
2011-12 के बजट में सरकार का कुल व्यय 12,57,729 करोड़ रुपए अनुमानित था। इसमें 4,41,547 करोड़ रुपए योजना व्यय व शेष 8,16,182 करोड़ रुपए योजना भिन्न व्यय है। 2011-12 के लिए केद्रीय योजना का आकार 5,92,457 करोड़ रुपए का निर्धारित किया गया है जो 2010-11 की 5,02,250 रुपए की संशोधित योजना से 90,207 करोड़ रुपए अधिक है।
आर्थिक सुधारों पर टालमटोल
आर्थिक सुधारों के मामले में इस बजट में वित्त मंत्री ने टालमटोल वाला रवैया ही अपनाया। रिटेल के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने के मामले में बजट में चुप्पी थामी गई है। पेंशन व श्रम सुधारों को लेकर भी बजट में किसी तरह की चर्चा नहीं की गई है। इस बार ऐसी आशा की जा रही थी कि बीमा क्षेत्र में विदेशी
प्रत्यक्ष निवेश की सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी कर दी जाएगी, लेकिन यह आशा पूरी नहीं हो सकी।
बजट में वित्त मंत्री ने वित्तीय क्षेत्र से संबंधित आठ कानूनों में बदलाव करने की योजना की घोषणा की जिसमें बीमा कानून (संशोधन) विधेयक-2008, जीवन बीमा निगम (संशोधन) विधेयक-2009, पेंशन का पीएफआरडीए विधेयक-2005, एसबीआई (सब्सिडियरी बैंक) संशोधन विधेयक-2009, आरडीबीएफआई कानून-1993 व एसएआरएफएईएसआर-2002 और बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक-2011 शामिल हैं।
राजकोषीय प्रबंधन में होगी मुश्किल
राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने के लिए वित्त मंत्री ने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम-2003 में संशोधन करने का प्रस्ताव रखा। अगले तीन वर्र्षों में वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे को साढ़े तीन प्रतिशत के स्तर पर लाने का घोषणा की गई,लेकिन इस मुश्किल लक्ष्य को किस तरह से प्राप्त किया जाएगा इस पर ज्यादा प्रकाश नहीं डाला गया। वित्त वर्ष 2010-11 में राजकोषीय घाटा 5.1 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है, लेकिन इसके पीछे बहुत बड़ा 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से हुई प्राप्त धनराशि रहा था। 2011-12 के लक्ष्य को प्राप्त करना निश्चित रूप से मुश्किल काम होगा। 2011-12 के दौरान जिन कंपनियों का विनिवेश किया जाना है उनमें कोई बड़ा नाम नहीं है, इसके बावजूद वित्त वर्ष 2011-12 के लिए भी विनिवेश का लक्ष्य 40,000 करोड़ रुपए ही रखा गया।
सीधी सब्सिडी का प्रस्ताव
सब्सिडी के मामले में बजट में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है और केरोसिन, एलपीजी और फर्टीलाइजर क्षेत्रों में ग्राहकों को प्रत्यक्ष सब्सिडी देने का ऐलान किया जिसे 2012 तक लागू किये जाने की योजना है। सब्सिडी को लेकर अभी तक लोगों की आम शिकायत यह रही है कि यह लक्षित समूहों तक नहीं पहुँच पाती है इससे निश्चित रूप से सरकारी सब्सिडी बिल में कमी आएगी। हालांकि इस निर्णय को लागू कराना सरकार के लिए टेढ़ी खीर होगी।
टैक्स सुधार
वस्तु व सेवाकर (जीएसटी) को लेकर केेंद्र व राज्य सरकारों के बीच अभी भी मतभेद कायम हैं। यह बात अलग है कि बजट में 130 वस्तुओं पर एक प्रतिशत उत्पाद शुल्क लगाकर जीएसटी की दिशा में एक कदम उठाया गया है। शेष 240 वस्तुओं पर जीएसटी लागू होने के बाद उत्पाद शुल्क पर मिलने वाली छूट समाप्त हो जाएगी। वित्त मंत्री ने जीएसटी को लागू करने के लिए 1 अप्रैल, 2012 का ऐलान किया।
बजट भाषण में वित्त मंत्री ने प्रणब मुखर्जी ने प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) समय पर लागू करने की बात कही। इस पर सरकार की रफ्तार ठीक भी दिखाई दे रही है। इसके भी 1 अप्रैल, 2012 तक लागू किए जाने की संभावना है। जीएसटी के रास्ते में कोई रुकावट भी नहीं है।
वेतनभोगियों को खास रियायत
आम बजट में जनता को राहत देने वाले कई प्रावधान भी शामिल हैं। बजट में एक महत्वपूर्ण कदम यह उठाया गया कि अब ऐसे वेतनभोगियों को आयकर रिटर्न भरने की जरूरत नहीं होगी, जिनका सालाना वेतन पांच लाख रुपए तक है। यह प्रस्ताव 1 जून, 2011 से लागू कर दिया गया।
इसके अलावा सरकार ने छोटे करदाताओं के लिए वित्त वर्ष 2011-12 से टैक्स रिटर्न भरना और आसान कर दिया है। ऐसे करदाताओं के लिए मौजूदा सरल फार्म की जगह सुगम फार्म ने लिया। इस फार्म ने कागजी कार्रवाई को काफी आसान कर दिया।
बजट में आयकर छूट की सीमा 1.60 लाख रुपए से बढ़ाकर 1.80 लाख रुपए कर दी है जिसे महंगाई को देखते हुए पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है। जनता को अधिक टैक्स सीमा की उम्मीद थी। महिलाओं के आयकर छूट की सीमा नहीं बढ़ाई गई है जबकि 80 साल से अधिक श्रेणी बनाई गई है। अब उन्हें पांच लाख तक की आमदनी पर आयकर छूट मिलेगी।
ग्रामीण क्षेत्र के विकास को तवज्जो नहीं
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का शुरुआत से ही दावा रहा है कि वह गांवों के विकास पर विशेष रूप से जोर दे रहे हैं जिससे गरीबी कम की जा सके। लेकिन बजट का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय के बजट में पिछले वर्ष की अपेक्षा कटौती की गई है। यहां तक की गरीबी हटाने में महत्वपूर्ण माने जाने वाले स्वरोजगार कार्यक्रमों के आवंटन में भी इस साल किसी तरह की वृद्धि नहीं की गई है। यहां तक ग्रामीण आवास व पेयजल जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी बजट में उदासीनता का ही रवैया अपनाया गया है। कुल मिला कर ग्रामीण विकास के बजट में लगभग 2000 करोड़ रुपए की कटौती की गई। शहरी विकास के नाम पर मात्र मेट्रोपोलिटन शहरों पर ही नजरे इनायत की गई हैं। छोटे शहरों की ओर उदासीनता का रवैया ही अपनाया गया है।
इंफ्रास्ट्रक्चर को मिलेगी बांड से मजबूती
केद्र सरकार ने हाल के कुछ वर्र्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट के क्षेत्र में काफी काम कामयाबी के साथ किया है। इस बजट में भी इस सेक्टर पर विशेष ध्यान दिया गया है। कार्पोरेट बांड में विदेशी संस्थागत निवेश की सीमा 5 साल की मेच्योरिटी के साथ 20 अरब डॉलर से बढ़ाकर 25 अरब डॉलर कर दी गई।
इंफ्रास्ट्रक्चर को मिलेगी बांड से मजबूती
केद्र सरकार ने हाल के कुछ वर्र्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट के क्षेत्र में काफी काम कामयाबी के साथ किया है। इस बजट में भी इस सेक्टर पर विशेष ध्यान दिया गया है। कार्पोरेट बांड में विदेशी संस्थागत निवेश की सीमा 5 साल की मेच्योरिटी के साथ 20 अरब डॉलर से बढ़ाकर 25 अरब डॉलर कर दी गई। इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 30,000 करोड़ रुपए के कर रहित बांड जारी किए जा रहे हैं। साथ ही इस सेक्टर में निवेश पर कर छूट का प्रावधान भी किया गया। वित्त मंत्री के अनुसार वित्त वर्ष 2011-12 में सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर 2.14 लाख करोड़ रुपए खर्च करेग। इसके अतिरिक्त विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर फंड स्थापित करने का प्रस्ताव भी बजट में रखा गया।
आर्थिक समीक्षा (2010-11)
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने देश के स्वास्थ्य का लेखा-जोखा यानि वर्ष 2011-12 की आर्थिक समीक्षा लोकसभा के पटल पर 25 फरवरी, 2011 को पेश की जिसका निष्कर्ष यह था कि देश वैश्विक आर्थिक संकट से पूरी तरह से बाहर निकल आया है और मंदी के पहले की रफ्तार पकड़ चुका है। इसमें बताया गया है कि 2010-11 में वृद्धि दर 8.6 प्रतिशत रही, जबकि 2011-12 में यह लगभग 9 प्रतिशत रहने की संभावना है। कुल मिलाकर आर्थिक समीक्षा में देश की अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर पेश की है।
नए स्तर पर जाएगी आर्थिक वृद्धि दर
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि देश अगले वित्त वर्ष में 9' की वृद्धि हासिल कर लेगा, लेकिन इस रास्ते में पश्चिमी एशियाई देशों में व्याप्त अस्थिरता और कच्चे तेल के बढ़ते दाम आड़े आ सकते हैं।
राजकोषीय घाटे में लगेगी लगाम
आर्थिक समीक्षा में विश्वास व्यक्त किया गया कि राजकोषीय घाटा काबू में रहेगा। वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान इसके सकल घरेलू उत्पाद के 4.8 फीसदी रहने की संभावना व्यक्त की गई। उल्लेखनीय है कि 13वें वित्त आयोग ने भी सरकार से वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करने की बात कही थी और ऐसा अनुमान है कि वित्त मंत्री वित्त मंत्रालय की अनुशंसाओं का पालन करने में कामयाब रहेंगे।
औद्योगिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति
औद्योगिक स्थिति के बारे में आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि 2010-11 में औद्योगिक उत्पादन विकास दर 8.6 प्रतिशत रही, जबकि मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र ने 9.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। इसमें बताया गया कि दूरसंचार क्षेत्र ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया है, जिसके चलते शहरी क्षेत्रों में दूरसंचार घनत्व 2004 में 20.74 प्रतिशत से बढ़कर 2010 में 143.95 प्रतिशत तथा ग्रामीण इलाकों में यह 1.57 प्रतिशत (2004 में) से बढ़कर 2010 में 30.18 प्रतिशत हो गया है।
सेवा क्षेत्र को विकास का इंजन बताते हुए समीक्षा में बताया गया कि आईटी और बीपीओ सेवाओं के अतिरिक्त नए क्षेत्रों जैसे लेखा, कानूनी, पर्यटन, शिक्षा, वित्तीय और अन्य सेवाओं के प्रोत्साहन के लिए नीतियाँ बनाने की जरूरत है।
बढ़ती सब्सिडी चिंता का विषय
आर्थिक समीक्षा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी की वजह से सब्सिडी का बोझ बढऩे की बात कही गई। सब्सिडी और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात भी बढऩे की आशंका भी जताई गई। यद्यपि आम बजट 2011-12 में सरकार ने सब्सिडी को लेकर कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं।
स्कीमों का हो बेहतर क्रियान्वयन
समीक्षा में कहा गया कि हाल के वर्र्षों में सरकार ने गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन के लिए काफी पैसा खर्च किया है। लेकिन अब आवश्यकता इस बात की है कि इसके क्रियान्वयन के लिए बेहतर व्यवस्था की जाए जिससे इन कल्याणकारी योजनाओं के बेहतर परिणाम सामने आएं। साथ ही सरकार को ऐसी व्यवस्था भी करनी चाहिए जिससे देश में फैल रहे क्षेत्रीय व आर्थिक विषमताओं को दूर किया जा सके।
आर्थिक समीक्षा: मुख्य बिंदु
1. वित्तीय वर्ष 2010-11 में 8.6' आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान, जबकि 2011-12 में 9 प्रतिशत वृद्धि दर की आशा।
2. राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 4.8 प्रतिशत।
3. औद्योगिक उत्पादन में 8.6 फीसदी व विनिर्माण क्षेत्र में 9.1 फीसदी की वृद्धि।
4. पर्यावरण संबंधी मंजूरी जल्द हासिल करने के लिए एक फॉरेस्ट लैंड बैंक की स्थापना का प्रस्ताव।
5. 2010-11 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 5.4 फीसदी रहने की आशा। इसके 232.1 मिलियन टन रहने का अनुमान।
6. निर्यात में अप्रैल-दिसंबर 2010 में 29.5 फीसदी वृद्धि, समान अवधि में आयात में 19 फीसदी की वृद्धि। इसी अवधि के दौरान व्यापार घाटा कम होकर 82.01 अरब डॉलर रहा।
7. कृषि क्षेत्र 2010-11 में 5.4 प्रतिशत विकास दर की संभावना, जबकि उद्योग क्षेत्र में 8.1 प्रतिशत व सेवाओं में 9.6 प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित।
8. कार्पोरेट आयकर और सेवाकर में वृद्धि के दम पर सरकार को कर राजस्व में शानदार वृद्धि की उम्मीद।
9. सामाजिक कार्यक्रमों पर खर्च बढ़ा, पिछले पांच वर्र्षों में सकल घरेलू उत्पाद का 5' खर्च सामाजिक कार्यक्रमों पर।
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