भारत और अमेरिका ने ख़ुफ़िया मिशन “नंदा देवी” कब और क्यों चलाया था?

Nov 13, 2018, 18:42 IST

चीन ने 1964 में सिंजियान प्रान्त में परमाणु परीक्षण किया था जिसके बाद अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी CIA और भारत के ख़ुफ़िया विभाग ने चीन की परमाणु गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक निगरानी यंत्र भारत के नंदा देवी पर्वत पर लगाने के फैसला किया था. वर्ष 1965 में शुरू हुए मिशन नंदा देवी में नंदा देवी पर्वत पर 56 किलो वजन के यन्त्र लगाने थे जिनमें लगभग 10 फीट ऊंचा एंटीना और सबसे अहम् परमाणु शक्ति जनरेटर (SMEP सिस्टम) प्लूटोनियम कैप्सूल, जेनरेटर, दो ट्रांसमीटर सेट और रेडियो वेब्स को पकड़ने वाले एंटीना शामिल थे.

Nanda Devi Mountain
Nanda Devi Mountain

यह घटना उस समय की हैं जब पूरी दुनिया में रूस और अमेरिका के बीच शीत युद्ध जोरों पर था. इसी बीच 1964 में चीन ने सिंजियान प्रान्त में परमाणु परीक्षण किया था जिसके बाद अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी CIA और भारत के ख़ुफ़िया विभाग ने चीन की परमाणु गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक निगरानी यंत्र भारत के नंदा देवी पर्वत पर लगाने के फैसला किया था. नंदा देवी पर्वत भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है और इस पर्वत की ऊँचाई 25643 फीट है.

न्यूक्लियर डिवाइस के बारे में;

अक्टूबर, 1965 को शुरू हुए “मिशन नंदा देवी” में नंदा देवी पर्वत पर 56 किलो वजन के ख़ुफ़िया यन्त्र लगाने थे जिनमें लगभग 10 फीट ऊंचा एंटीना, रिसीवर सेट और सबसे अहम् परमाणु शक्ति जनरेटर (SMEP सिस्टम) प्लूटोनियम कैप्सूल, जेनरेटर, दो ट्रांसमीटर सेट और रेडियो वेब्स को पकड़ने वाले एंटीना शामिल थे. यह डिवाइस एक्टिव नहीं थी. टीम के साथ रहे शेरपाओं ने परमाणु शक्ति जनरेटर को “गुरु रिम पोचे” नाम दिया था.

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कब और किसने शुरू किय था अभियान?

इस अभियान में करीब 200 लोगों ने भाग लिया था, भारत की ओर से इस टीम के लीडर कैप्टन मनमोहन सिंह कोहली थे. मनमोहन सिंह बताते हैं कि जब 18 अक्टूबर को जब टीम 24 हजार फीट की ऊँचाई पर थी तो एक बहुत बड़ा ब्लिजार्ड आ गया था जिसमें बर्फवारी और तूफ़ान दोनों होते हैं. सभी लोगों की जान खतरे में पड़ गयी अब टीम के सामने सिर्फ एक ही विकल्प था या तो खुद को बचा लें या फिर डिवाइस को, अंततः इस विपत्ति के कारण इस ऑपरेशन को बीच में ही रोकना पड़ा और सभी लोग वापस लौट आये इस प्रकार प्लूटोनियम कैप्सूल कैंप 4 में ही छोडनी पड़ी थी. 

camp nanda devi

सीआईए के व्यक्ति के साथ मनमोहन सिंह की टीम दुबारा 1 मई 1966 को इस अभियान को दुबारा शुरू किया गया, इस बार टीम का इरादा इस डिवाइस को सिर्फ 6000 फीट की ऊँचाई पर लगाने का था. टीम 1 जून,1966 को कैंप 4 पर पहुंची लेकिन टीम को न्यूक्लियर डिवाइस नहीं मिली और इसके बारे में अभी तक कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है.

इस अभियान के बारे में अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के माध्यम से सबसे पहले खुलासा 1977 में हुआ था जिसका खुलासा तत्कालीन प्रधानमन्त्री मोरार जी देसाई को संसद में करना पड़ा था.

न्यूक्लियर डिवाइस के खतरे

वर्ष 1966 से लेकर अब तक कई बार इसकी खोज के अभियान चलाये गए हैं, चट्टानों और बर्फ के नमूने भी लैब में भेजे गये हैं लेकिन परीक्षण में रेडियोधर्मी पदार्थों की उपलब्धता का कोई प्रमाण नहीं मिला है. लेकिन इस डिवाइस के यहाँ रहने से पर्यावरण और पानी के स्रोतों को खतरा बना हुआ है क्योंकि इस क्षेत्र से गंगा,ऋषि गंगा और अलकनंदा नदियाँ गुजरतीं हैं.

कैप्टन कोहली ने एक इंटरव्यू में बताया कि नंदा देवी पर खोए नाभकीय डिवाइस की उम्र 100 वर्ष थी, इसलिए अब भी उसका खतरा करीब 40 वर्षों तक रहेगा. ज्ञातव्य है कि खोने के समय यह डिवाइस एक्टिव नहीं थी. अगर डिवाइस गंगा नदी में में मिल जाती है तो पानी जहरीला हो सकता है और लाखों लोगों की मौत हो सकती है इसके अलावा इस क्षेत्र में रेडियोएक्टिव पदार्थों के एक्टिव होने की संभावना अभी भी बरक़रार है.
आकलन के मुताबिक यह डिवाइस काफी गर्म है और अगर इसने एक बार ग्लेशियर को टच कर दिया तो यह तबतक नीचे बैठता जाएगा जबतक बर्फ गलकर पत्थर न आ जाए. इसके बाद यह आगे नहीं बढ़ेगा.

captain manhohan singh

(कैप्टन मनमोहन सिंह कोहली)

स्टीफन आल्टर ने एक किताब लिखी है "Becoming a Mountain" जिसमें यह दावा किया गया है कि जो शेरपा इस डिवाइस को ढोकर ले गये थे उनकी मौत रेडियोएक्टिव विकिरण से हुए कैंसर से हुई थी.

book BECOMING A MOUNTAIN

लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि हॉलिवुड प्रॉड्यूसर स्कॉट रॉजनफेल्ट इस सत्य घटना पर फिल्म बना रहे हैं. स्क्रिप्ट तैयार है, निर्देशक ग्रेग मैक्लेन हैं और हो सकता है कि रणबीर कपूर भूमिका निभाएं और 2020 से शूटिंग शुरू होने की संभावना है.

अन्य में यह कहना ठीक होगा कि सरकार को सेटेलाइट के माध्यम से इस डिवाइस को खोजने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि जब सेटेलाइट के माध्यम से अंडर ग्राउंड सुरंग के पता लगा लिया जाता है तो इस प्लूटोनियम कैप्सूल को खोजना भी मुमकिन जान पड़ता है.

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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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