भारत के 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब और क्यों हुआ था?

Feb 6, 2019, 18:45 IST

इंदिरा गाँधी सरकार ने 19 जुलाई, 1969 को एक आर्डिनेंस जारी करके देश के 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. जिस आर्डिनेंस के ज़रिये ऐसा किया गया वह ‘बैंकिंग कम्पनीज आर्डिनेंस’ कहलाया था. इस राष्ट्रीयकरण के पीछे सबसे बड़ा कारण बैंकों को केवल कुछ अमीरों के चंगुल से बाहर निकालना था ताकि आम आदमी को भी बैंकिंग क्षेत्र से जोड़ा जाए.

Nationalisation of Banks-1969
Nationalisation of Banks-1969

सन 1947 में जब देश आजाद हुआ तो देश के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे. देश के ऊपर अग्रेजों द्वारा की गयी आर्थिक लूट के निशान साफ देखे जा सकते थे. देश में कुछ लोगों के पास बहुत अधिक धन था और एक बड़ा तबका गरीबी में जकड़ा हुआ था.

ताशकंद समझौते के दौरान लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत हो गयी थी और 1967 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो पार्टी पर उनकी पकड़ मज़बूत नहीं थी. लोग उन्हें कांग्रेस सिंडिकेट की ‘गूंगी गुड़िया’ कहते थे. ऐसे समय में इंदिरा गाँधी को अपनी छवि बदलनी थी और कड़े फैसले लेने थे.

देश के आर्थिक हालात:

देश की आर्थिक शक्ति का संकेन्द्रण केवल कुछ हाथों में हो रहा था. कमर्शियल बैंक सामाजिक उत्थान की प्रक्रिया में सहायक नहीं हो रहे थे. इस समय देश के 14 बड़े बैंकों के पास देश की लगभग 80% पूंजी थी. इन बैंकों पर केवल कुछ धनी घरानों का ही कब्ज़ा था और आम आदमी को बैंकों से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिलती थी. बैंकों में जमा पैसा उन्हीं सेक्टरों में निवेश किया जा रहा था, जहां लाभ की ज्यादा संभावनाएं थीं.

वर्ष 1967 में इंदिरा ने कांग्रेस पार्टी में ‘दस सूत्रीय कार्यक्रम’पेश किया गया. इसके मुख्य बिंदु बैंकों पर सरकार का नियंत्रण करना, 400 पूर्व राजे-महाराजों को मिलने वाले वित्तीय लाभ बंद करना, न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण करना और आधारभूत संरचना के विकास, कृषि, लघु उद्योग और निर्यात में निवेश बढ़ाना इसके मुख्य बिंदु थे.

इंदिरा सरकार ने 19 जुलाई,1969 को एक आर्डिनेंस जारी करके देश के 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया. जिस आर्डिनेंस के ज़रिये ऐसा किया गया वह ‘बैंकिंग कम्पनीज आर्डिनेंस’ कहलाया. बाद में इसी नाम से विधेयक भी पारित हुआ और कानून बन गया.

nationalised banks 1969

बताते चलें कि इस राष्ट्रीयकरण से पहले देश में केवल स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ही सरकारी बैंक था जिसका राष्ट्रीयकरण 1955 में किया गया था.

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बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का कारण:

राष्ट्रीयकरण की मुख्य वजह बड़े व्यवसायिक बैंकों द्वारा अपनायी जाने वाली “क्लास बैंकिंग” नीति थीं. बैंक केवल धनपतियों को ही ऋण व अन्य बैंकिंग सुविधा उपलब्ध करवाते थे. राष्ट्रीयकरण के पश्चात क्लास बैंकिंग; “मास बैंकिंग”मे बदल गयी. ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाओं का अभूतपूर्व विस्तार हुआ.

कुछ अन्य कारण इस प्रकार हैं;

1. बैंकों से केवल कुछ अमीर घरानों का प्रभुत्व हटाना

2. कृषि, लघु व मध्यम उधोगों, छोटे व्यापारियों को सरल शर्तों पर वित्तीय सुविधा देने व आम जन को बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराना

3. बैंक प्रबंधन को पेशेवर बनाना

4. देश में आर्थिक शक्ति का संकेन्द्रण रोकने के लिए उद्यमियों के नए वर्गों को प्रोत्साहन देना

बैंकों के राष्ट्रीयकरण के परिणाम

1. राष्ट्रीयकरण का एक और फायदा यह हुआ कि बैंकों के पास काफी मात्रा में पैसा इकट्टा हुआ और आगे विभिन्न जरूरी क्षेत्रों में बांटा गया जिनमें प्राथमिक सेक्टर, जिसमें छोटे उद्योग, कृषि और छोटे ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स शामिल थे.

2. सरकार ने राष्ट्रीय बैंकों को दिशा निर्देश देकर उनके लोन पोर्टफ़ोलियो में 40% कृषि लोन को जरूरी बनाया इसके अलावा प्राथमिकता प्राप्त अन्य क्षेत्रों में भी लोन बांटा गया जिससे बड़ी मात्रा में रोजगार पैदा हुआ.

3. किसान छोटे कारोबारी और निर्यात के संसाधन बढ़े और उन्हें उचित वित्तीय सेवा मिली.

3. राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की शाखाओं में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई. बैंकों ने अपना बिज़नेस शहर से आगे बढ़ाकर बैंक गांव-देहात की तरफ कर दिया. आंकड़ों के मुताबिक़ जुलाई 1969 को देश में बैंकों की सिर्फ 8322 शाखाएं थीं और 1994 के आते-आते यह आंकड़ा 60 हज़ार को पार गया था.

प्रथम चरण के राष्ट्रीयकरण में मिले उत्साहजनक के कारण सरकार ने 1980 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का दूसरा दौर शुरू किया जिसमें और 6 और निजी बैंकों को सरकारी कब्ज़े में लिया गया था.

सारांशतः यह कहना ठीक होगा कि इंदिरा गाँधी की सरकार के द्वारा 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना देशहित के लिए उठाया गया बहुत अच्छा कदम था. बैंकों के राष्ट्रीयकरण से देश का चहुमुंखी विकास संभव हुआ था.

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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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