सुनामी का अंग्रेजी शब्द (Tsunami) जापानी भाषा के दो शब्दों “tsu” = harbour अर्थात बंदरगाह तथा nami = wave अर्थात तरंग से बना है. अतः सुनामी वे सागरीय तरंगें हैं जो तटीय भागों को प्रभावित करती हैं और बड़े पैमाने पर विनाश करती है. आपदा प्रबंधन पर भारत की उच्चस्तरीय समिति के अनुसार सुनामी वे सागरीय तरंगें हैं जो महासागर में भूकंप, भूस्खलन अथवा ज्वालामुखी उद्गार जैसी घटनाओं से पैदा होती है. वास्तव में सुनामी एक तरंग नहीं बल्कि तरंगों की एक श्रृंखला है.
सुनामी आने के कारण
1. भूकंप: अधिकांश सुनामी भूकंपों से ही पैदा होते हैं और ये सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं. जब महासागरीय नितल पर 7.5 रिक्टर पैमाने से अधिक तीव्रता का भूकंप आता है तो नितल पर बड़े पैमाने पर हलचल मच जाती है और उसके ऊपर के जल का संतुलन बिगड़ जाता है. जैसे ही जल दुबारा अपना संतुलन प्राप्त करने का प्रयास करता है, वैसे ही तरंगें पैदा होती है. ये तरंग भूकंप के अधिकेन्द्र पर जल के ऊपर उठने से बनती है और अधिकेन्द्र से चारों ओर समकेन्द्रीय वृत्तों के रूप में आगे बढती है.
स्मरण रहे कि सभी भूकंप के कारण सुनामी नहीं आती है, बल्कि उसी स्थिति में आती है जब भूकंप के कारण समुद्री जल में उर्ध्वाधर दिशा में हलचल पैदा होती है. यह हलचल महासागरीय तल पर भूकंप, भ्रंश अथवा प्लेटों के खिसकने के कारण पैदा होती है. 26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में आए विनाशकारी सुनामी का कारण भूकंप ही था.
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2. भूस्खलन: भूस्खलन तथा चट्टानों एवं बर्फ के फिसलने से भी सुनामी पैदा होती है. उदाहरण के लिए, 1980 के दशक में दक्षिणी फ्रांस के तट पर हवाई अड्डे के निर्माण कार्य के दौरान जल के नीचे भूस्खलन हुआ था जिससे मिस्र के थीबस बंदरगाह में विनाशकारी सुनामी आया था.
ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बनने वाली भू-आकृतियाँ
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3. ज्वालामुखी उद्गार: जब समुद्र में ज्वालामुखी फटता है तो यह बड़ी मात्रा में समुद्री जल को विस्थापित कर देता है, जिसके कारण सुनामी पैदा होती है. 26 अगस्त, 1883 को इंडोनेशिया के सुंडा जलडमरूमध्य में क्राकाताओ ज्वालामुखी के फटने से 40 मीटर ऊंची लहरें पैदा हुई थी.
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सुनामी का प्रसारण
सुनामी अपनी उत्पत्ति के स्थान से समकेन्द्रीय महासागरीय तरंगों के रूप में चारों ओर प्रसारित होती हैं. इनकी गति शांत जल में पत्थर फेंकने से पैदा होने वाली लहरों के समान होती है. खुले सागर में ये तरंगें बड़ी तेजी से आगे बढ़ती हैं और इनकी गति प्रायः 500-800 किमी. प्रति घंटा होती है. इन तरंगों का तरंग दैर्ध्य 500-700 किमी. से भी अधिक हो सकती है, परंतु इन तरंगों की ऊंचाई प्रायः 1 मीटर से भी कम होती है, जिसके कारण खुले महासागर में इन तरंगों को पहचानना लगभग असंभव होता है.
हालांकि समुद्र तल के नीचे विनाशकारी तरंगें तेजी से आगे बढ़ती है. जैसे ही सुनामी खुले समुद्र के गहरे जलीय भाग से तट के उथले समुद्र की ओर बढ़ती हैं इनकी गति 500-800 किमी. प्रति घंटा से घटकर 50-60 किमी. प्रति घंटा रह जाती है, परंतु इनकी ऊंचाई काफी बढ़ जाती है. तट तक पहुंचते-पहुंचते 30-40 मीटर ऊंची लहरों का उठना सामान्य सी बात है. अपनी उत्पत्ति के स्थान से सुनामी तरंगें बड़ी तेजी से चारों ओर फैलती है और कुछ ही घंटों में पूरे महासागर को प्रभावित कर देती हैं.
सुनामी का विश्व वितरण
यूँ तो सुनामी की उत्पत्ति का मुख्य कारण शक्तिशाली भूकंप है और भूकंप मुख्यतः भूकंपीय क्षेत्रों में ही आते हैं, तथापि सुनामी का कोई निश्चित क्षेत्र निर्धारित नहीं है और ये विश्व के किसी भी भाग में विनाशलीला कर सकती है. ऐसा देखा गया है कि पृथ्वी पर सबसे अधिक सुनामी प्रशांत महासागर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में आती है. इसका कारण यह है कि प्रशांत प्लेट बड़ी अस्थिर प्लेट है जिसके पश्चिमी किनारे पर अभिसरण (Convergence) तथा पूर्वी किनारे पर अपसरण (Divergence) की क्रियाएं होती रहती हैं. इन क्रियाओं से भूकंप आते रहते हैं और ज्वालामुखी विस्फोट होते रहते हैं, जिसके कारण सुनामी का जन्म होता है.
ज्वालामुखी विस्फोट के कारण
एक अनुमान के अनुसार जबसे सुनामी का रिकॉर्ड रखना शुरू किया गया है तब से अब तक जापान के तट को 150 सुनामियों ने प्रभावित किया है. इसी प्रकार इंडोनेशिया में अब तक 31 सुनामी आ चुके हैं. प्रशांत महासागर में औसतन दो सुनामी प्रति-वर्ष आती हैं. प्रशांत प्लेट के किनारों पर विश्व के दो-तिहाई से भी अधिक भूकंप आते हैं. प्रशांत महासागर का अग्नि वलय फिजी, पापुआ न्यू गिनी, फिलीपींस, जापान एवं रूस के पूर्वी तट, अलास्का, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको तथा दक्षिणी अमेरिका तक विस्तृत है. भारत इस वलय से बाहर है और अपेक्षाकृत सुनामी से सुरक्षित माना जाता है. परंतु 2004 की सुनामी से यह स्पष्ट है कि भारत भी सुनामी के प्रकोप से सुरक्षित नहीं है.
सुनामी के प्रभाव
शक्तिशाली सुनामी के बड़े दूरगामी प्रभाव होते हैं, यहां हम 26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में आए सुनामी के कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव का विवरण दे रहे हैं:
1. जन-धन की हानि
सुनामी से तटीय क्षेत्रों में जन-धन की अपार क्षति होती है. 26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में आए सुनामी से 11 विभिन्न देशों में 2,80,000 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी और 10 लाख से अधिक व्यक्ति बेघर हो गए थे. इसके अलावा अरबों रूपए की संपत्ति क्षतिग्रस्त हो गई थी.
2. भू-आकृतियों में परिवर्तन
26 दिसम्बर, 2004 की सुनामी इतनी शक्तिशाली थी कि इससे कई भू-आकृतियों में परिवर्तन हुए. सुमात्रा के निकट कई छोटे-छोटे द्वीप या तो पूर्णतया नष्ट हो गए या उनमं- बड़े पैमाने पर बदलाव हो गया. भारत का दक्षिणतम छोर “इन्दिरा पॉइंट” लगभग पूर्ण रूप से नष्ट हो गया था. भारतीय एवं म्यांमारी प्लेटों के आपस में टकराने से हिन्द महासागर में 1200 किमी. लम्बा तथा 150-200 किमी. चौड़ा भ्रंश उत्पन्न हो गया था.
3. पृथ्वी के घूर्णन गति में वृद्धि
26 दिसम्बर, 2004 की सुनामी से पहले आए भूकंप से इतनी ऊर्जा निकली कि इसने पृथ्वी की घूर्णन गति को 3 माइक्रोसेकेण्ड तेज कर दिया और पृथ्वी के घूर्णन अक्ष में 2.5 सेमी. का विस्थापन हो गया.
4. मिट्टी की उपजाऊ शक्ति का ह्रास
26 दिसम्बर, 2004 की सुनामी के कारण बहुत से निम्न तटीय भागों में समुद्र का खारा जल भर गया, जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति का ह्रास हुआ. भारत के तमिलनाडु, श्रीलंका, इंडोनेशिया आदि क्षेत्रों के विशाल भूभाग में मृदा अपरदन हुआ और उसकी उर्वरक शक्ति क्षीण हो गई.
5. महासागरीय जीवन में बदलाव
26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में आए सुनामी से अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 45% प्रवाल भित्तियां (Coral Reefs) नष्ट हो गई. विद्वानों के अनुसार इसकी क्षतिपूर्ति में 700-800 वर्ष लगेंगे. इसके अलावा सुनामी के कारण हिन्द महासागर में मत्स्य उत्पादन में भी कमी आई है.
विभिन्न आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण
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