ज्वालामुखियों के विस्फोट से जो लावा निकलता है, उससे विभिन्न प्रकार के भू-आकृतियों का निर्माण होता है. इनमें से अधिकांश भू-आकृतियां धरातल के ऊपर बनती है, लेकिन कुछ भू-आकृतियां धरातल के नीचे भी बनती है. यहां हम ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बनने वाली विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियों का विवरण दे रहे हैं.
ज्वालामुखी विस्फोट के कारण धरातल पर बनने वाली भू-आकृतियां
1. राख अथवा सिन्डर शंकु (Ash or Cinder Cone): ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बाहर निकलने वाला लावा शीघ्र ही ठंडा होकर टुकड़ों में बदल जाता है जिसे सिन्डर कहते हैं. यह देखने में राख के समान होता है. इस प्रकार ज्वालामुखी विस्फोट द्वारा जमा हुई राख से बनने वाली शंक्वाकार आकृति को राख अथवा सिन्डर शंकु कहते हैं. सिन्डर शंकु की अधिकतम ऊंचाई 300 मीटर होती है. ऐसे शंकु हवाई द्वीप में अधिक पाए जाते हैं.
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2. अम्ल लावा शंकु अथवा गुम्बद (Acid Lava Cone or Dome): ऐसी आकृति का निर्माण सिलिका युक्त गाढ़ा तथा चिपचिपा लावा से होता है. ऐसा लावा जब ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बाहर निकलता है तो शीघ्र ही ज्वालामुखी के आस-पास जम जाता है और तीव्र ढाल वाले गुम्बद का निर्माण करता है. इटली में स्ट्राम्बोली तथा फ्रांस में पाई डी डोम (Puy de Dome) इसके अच्छे उदाहरण हैं.
3. पैठिक लावा शंकु अथवा लावा शील्ड (Basic Lava Cone or Lava Shield): पैठिक लावा में सिलिका की मात्रा कम होती है और यह अम्ल लावा की अपेक्षा अधिक तरल तथा पतला होता है. इसलिए यह दूर-दूर तक फैल जाता है और कम ऊंचाई तथा मन्द ढाल वाले शंकु का निर्माण करता है. हवाई द्वीप का मोनालोआ शंकु इसका उत्तम उदाहरण है.
विभिन्न आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण
4. शंकुस्थ शंकु (Cone in Cone): इन शंकुओं को घोंसला शंकु (Nest Cone) भी कहते हैं. प्रायः ऐसे शंकु के अन्दर ही एक अन्य शंकु बन जाता है. ऐसे शंकुओं में विसूवियस का शंकु सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है.
5. मिश्रित शंकु (Composite Cone): ये सबसे ऊंचे और बड़े शंकु होते हैं, जिनका निर्माण लावा, राख तथा अन्य ज्वालामुखी पदार्थों के बारी-बारी जमा होने से होता है. यह जमाव समानान्तर परतों में होता है. इसकी ढलानों पर कई छोटे-छोटे कोण बन जाते हैं जिन्हें परजीवी शंकु (Parasite Cone) कहते हैं. जापान का फ्यूजीयामा, संयुक्त राज्य अमेरिका का रास्ता, रेनियर और हुड, फिलिपींस का मेयान, इटली का स्ट्राम्बोली मिश्रित शंकु के उदाहरण हैं.
6. काल्डेरा (Caldera): तीव्र विस्फोट के द्वारा शंकु के ऊपरी भाग के उड़ जाने से या क्रेटर के धंस जाने से काल्डेरा का विकास होता है. विश्व का सबसे बड़ा काल्डेरा जापान का आसो है, जिसकी परिधि 112 किमी. तथा अधिकतम ऊंचाई 27 किमी है.
7. ज्वालामुखी डाट या प्लग (Volcanic Plug): ज्वालामुखी डाट का निर्माण ज्वालामुखी के शान्त हो जाने पर उसके छिद्र में लावा भरने से होता है. ज्वालामुखी शंकु के अपरदन के बाद यह डाट स्पष्ट दिखाई देने लगता है. इस प्रकार के डाट हवाई द्वीप समूह में अनेक स्थानों पर पाए जाते हैं.
8. क्रेटर झील (Crater Lake): ज्वालामुखी शंकु के ऊपरी भाग में एक क्रेटर (Crater) होता है जिसका आकार कीप (Funnel) जैसा होता है. ज्वालामुखी विस्फोट के बाद इस क्रेटर में वर्षा का जल भर जाता है. इससे एक झील का निर्माण होता है, जिसे क्रेटर झील कहते हैं. उत्तरी सुमात्रा की तोबा झील विश्व की विशालतम क्रेटर झीलों में से एक है. इसका क्षेत्रफल 1900 वर्ग किमी. है.
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9. ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains): जब ज्वालामुखी उद्गार से शंकु बड़े आकार के हो जाते हैं तो ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण होता है. इस प्रकार के पर्वत इटली, जापान तथा अलास्का में पाए जाते हैं.
ज्वालामुखी विस्फोट के कारण
10. लावा पठार (Lava plateaus): ज्वालामुखी उद्गार से कम सिलिका वाले लावा के निकलने से विस्तृत पठारों का निर्माण होता है. दक्षिण भारत का पठार इसका सबसे अच्छा उदाहरण है.
ज्वालामुखी विस्फोट के कारण धरातल के नीचे बनने वाली भू-आकृतियां
1. बैथोलिथ (Batholith): यह सबसे बड़ा आग्नेय चट्टानी पिण्ड है, जो अन्तर्वेधि चट्टानों से बनता है. यह सैकड़ों किमी. लम्बा तथा 50 से 80 किमी. चौड़ा होता है. संयुक्त राज्य अमेरिका का इदाहो बैथोलिथ 40 हजार वर्ग किमी. से भी अधिक क्षेत्र में फैला है.
2. स्टॉक (Stock): छोटे आकार के बैथोलिथ को स्टॉक कहते हैं. स्टॉक का विस्तार 100 वर्ग किमी. से कम भाग में होता है. इसका ऊपरी भाग गोलाकार गुम्बदनुमा होता है और इसकी अन्य विशेषताएं बैथोलिथ के समान होती है.
3. लेकोलिथ (Lacolith): जब मैग्मा ऊपर की परत को जोर से ऊपर को उठाता है और गुम्बदाकार रूप में जम जाता है तो इसे लेकोलिथ कहते हैं. उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी भाग में लेकोलिथ के कई उदाहरण मिलते हैं.
4. लैपोलिथ (Lapolith): जब मैग्मा जमकर तश्तरीनुमा आकार ग्रहण कर लेता है तो उसे लैपोलिथ कहते हैं. लैपोलिथ दक्षिण अमेरिका में अधिक मिलते हैं.
5. फैकोलिथ (Phocolith): जब मैग्मा लहरदार आकृति में जमता है तो उसे फैकोलिथ कहते हैं.
6. सिल (Sill): जब मैग्मा भू-पृष्ठ के समानान्तर परतों में फैलकर जमता है तो उसे सिल कहते हैं. इसकी मोटाई एक मीटर से लेकर सैकड़ों मीटर तक होती है. ऐसे सिल मध्य प्रदेश तथा झारखंड में पाए जाते हैं.
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7. डाइक (Dyke or Dike): जब मैग्मा किसी लम्बवत दरार में जमता है तो वह डाइक कहलाता है. इसकी लम्बाई कुछ मीटर से कई किलोमीटर तथा मोटाई कुछ सेंटीमीटर से कई मीटर तक होती है. यह कठोर होता है और अपरदन के कारकों का इस पर आसानी से प्रभाव नहीं पड़ता है. इसके कारण आस-पास की चट्टानों के अपरदन के बाद डाइक एक विशाल दीवार की भांति दिखाई देते हैं.
विभिन्न आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण
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