आपने सुना होगा कि मथुरा के पेडे, आगरा का पेठा, दार्जिलिंग चाय, बनारस और कांजीवरम की साड़ी भारत में इन्ही नामों से बहुत प्रसिद्द है और हर दुकानदार इन्ही नामों के साथ अपने उत्पादों को बेचना चाहता है. इसे भौगोलिक संकेत (GI) टैग कहा जाता है. भारत में अब तक लगभग 361 प्रोडक्ट्स को GI टैग मिल चुका है.
भौगोलिक संकेत (GI) टैग क्या होता है? (What is Meaning of Geographical Indications Tag)
भौगोलिक संकेत एक नाम या निशान होता है जो किसी निश्चित क्षेत्र विशेष के उत्पाद, कृषि, प्राकृतिक और निर्मित उत्पाद (मिठाई, हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) को दिया जाने वाला एक स्पेशल टैग है. यह स्पेशल क्वालिटी और पहचान वाले उत्पाद जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले को दिया जाता है.
जिस भी किसी क्षेत्र को यह टैग दिया जाता है उसके अलावा किसी और को इस नाम को इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होती है.
इस टैग को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ़ गुड्स (रजिस्ट्रेशन और प्रोटेक्शन) एक्ट,1999 (Geographical Indications Act) के तहत ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री के द्वारा दिया जाता है जो कि उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के द्वारा दिया जाता है. कश्मीरी केसर को GI टैग, ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री ने डायरेक्टरेट ऑफ़ एग्रीकल्चर,जम्मू कश्मीर सरकार को दिया है.
न रहे कि GI टैग किसी उत्पाद को जीवन भर के लिए नहीं दिया जाता है. नियम के अनुसार यह 10 वर्ष के लिए दिया जाता है. इस अवधि के बाद इसे प्राप्त करने के लिए फिर से अप्लाई करना पड़ता है.
कश्मीरी केसर को GI टैग क्यों लेना पड़ा? (Why Kashmiri saffron has to take GI Tag)
दरअसल, दुनिया में सबसे अधिक केसर उत्पादन करने वाला देश ईरान है जो कि जो हर साल 30,000 हेक्टेयर भूमि पर 300 टन से अधिक केसर की खेती करता है. इसके अलावा स्पेन, अफग़ानिस्तान ख़राब क्वालिटी का केसर कम कीमत में बेचते हैं. जिसके कारण कश्मीरी केसर की कीमत लगभग 50% तक गिर गई हैं.
चूंकि कश्मीरी केसर पूरी दुनिया में सबसे अधिक उच्च क्वालिटी का माना जाता है. कश्मीरी केसर अन्य देशों के केसर से अलग हैं कश्मीरी केसर जैसे उच्च सुगंध, गहरे रंग, लंबे और मोटे धागे (कलंक) के कारण अधिक औषधीय मूल्य वाले गुणों में श्रेष्ठ माना जाता है.
लेकिन ईरान और अन्य देशों के निम्न क्वालिटी के केसर के कारण कश्मीरी केसर उत्पादकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.इसलिए कश्मीरी केसर उत्पादक चाहते है कि उनके केसर को दुनिया में अलग पहचान मिले जिससे कि उन्हें अच्छी क्वालिटी के केसर के लिए ठीक दाम मिल सकें.
कश्मीरी केसर को GI टैग मिलने के फायदे (Benefits of GI Tag to Kashmir Saffron)
कश्मीरी केसर को GI टैग मिलने के बाद यहाँ के उत्पादक अपने पैकेजिंग में यह लिख सकते हैं कि यह कश्मीरी उत्पाद है अर्थात यह उच्च क्वालिटी का है और इसलिए लोगों को यह विश्वास हो जायेगा कि इस उत्पाद के लिए ज्यादा कीमत देना भी गलत नहीं है.
इस प्रकार GI टैग मिलने से कश्मीरी केसर की बाजार में अलग पहचान बनेगी, बिक्री बढ़ेगी और इसका उत्पादन करना भी फायदेमंद होगा.
कश्मीरी केसर कहाँ पैदा होता है? (Where Kashmir Saffron Produced?)
कश्मीर में मुख्यतः 3 तरह का केसर पैदा किया जाता है, गुच्छी केसर, लच्छा केसर और मोंगरा केसर. इसका उत्पादन कश्मीर में लगभग पहली शताब्दी ई.पू. से पैदा किया जा रहा है.
कश्मीरी केसर का उत्पादन समुद्र तल से औसतन 1600 मीटर से 1800 मीटर की ऊँचाई पर उगाया जाने वाला एकमात्र केसर है. यह मुख्य रूप से पुलवामा, बडगांव, किस्तवार और श्रीनगर में पैदा किया जाता है.
उम्मीद है कि इस लेख को पढने एक बाद आप समझ गये होंगे कि आखिर यह GI टैग क्या होता है और इसके मिलने से क्या फायदे होते हैं?
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