शुक्रवार 26 मई 2017 को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने असम और अरूणाचल प्रदेश के बीच का सफर 4 घंटा कम करने वाले देश के सबसे लंबे भूपेन हजारिका पुल (धौला-सदिया पुल) का उद्घाटन किया. इस पुल के निर्माण के लिए अध्ययन का काम 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में शुरू हुआ था. इस लेख में हम इस बात का विवरण दे रहे हैं कि यह पुल भारत के अन्य पुलों से किस मायने में अलग है.
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1. टैंक का भार सहने में सक्षम
इस पुल पर 60 टन वजन का युद्धक टैंक भी आराम से गुजर सकता है, जिसे सेना जब चाहे चीन से लगी सीमा पर तैनाती के लिए ले जा सकती है.
2. खम्भों की संख्या 182
182 खंभों पर टिके इस पुल के निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों में भूकंप के झटके लगातार आते रहते हैं.
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3. पूर्वोतर के विकास को गति प्रदान करने वाला
सरकार का अनुमान है कि इस पुल के बनने से स्थानीय लोगों और सेना को सहूलियत के साथ-साथ पूर्वोत्तर में एक तरफ तो पर्यटन बढ़ेगा और दूसरी तरफ पनबिजली परियोजनाओं में निवेश आएगा जिससे देश में बिजली की उपलब्धता की हालत में सुधार होगा.
4. प्रति दिन 10 लाख रूपए के पेट्रोल-डीजल की बचत
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यह पुल असम के राष्ट्रीय राजमार्ग 37 को अरुणाचल प्रदेश के राष्ट्रीय राजमार्ग 52 से जोड़ता है. इससे असम से अरुणाचल प्रदेश जाने में 165 किलोमीटर दूरी और 4 घंटे समय की बचत होगी जो चीन के साथ भारत के रिश्तों को देखते हुए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. सरकार का दावा है कि समय की बचत के कारण प्रति दिन लगभग 10 लाख रूपए के पेट्रोल-डीजल की भी बचत होगी.
5. पुल का नामकरण महान गायक भूपेन हजारिका के नाम पर
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अरुणाचल प्रदेश का सदिया इलाका प्रसिद्ध गायक भूपेन हजारिका की जन्मस्थली है जो 1950 में आए एक बड़े भूकंप के बाद ब्रह्मपुत्र के बहाव में आए बदलाव में कट गया था. अतः इस पुल का नाम भूपेन हजारिका पुल रखा गया है.
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6. पुल के निर्माण से नाविकों को रोजगार के लाले
अभी तक धौला और सदिया के बीच करीब 150-200 नाव चलते थे जिन पर आम लोग और सेना के जवान इस पार से उस आर आते-जाते थे. इस पुल के चालू हो जाने के बाद ये नाव वाले बेरोजगार हो गए हैं.
7. पुल के निर्माण से संबंधित अध्ययन की शुरूआत 2003 में
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असम के तिनसुकिया से असम गण परिषद के विधायक जगदीश भुइयां और सांसद अरूण शर्मा ने 2003 में एक पत्र लिखकर तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्री सीपी ठाकुर से इस पुल के निर्माण की मांग की थी. वाजपेयी सरकार ने अगस्त, 2003 में स्थानीय लोगों की मांग के मद्देनजर इस पुल के निर्माण के लिए फिजिबलिटी स्टडी करने का आदेश दिया था. मनमोहन सिंह कैबिनेट ने जनवरी, 2009 में धौला-सदिया पुल बनाने की सैद्धांतिक मंजूरी दी थी. ये पुल अरुणाचल प्रदेश सड़क-परिहवन पैकेज के तहत घोषित 4 बड़ी परियोजनाओं में एक था.
8. पुल का निर्माण 2011 में शुरू
मार्च, 2010 में मनमोहन सिंह सरकार की इन्फ्रास्ट्रक्चर वाली कैबिनेट कमिटी ने ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी लोहित के ऊपर इस पुल के निर्माण को प्रशासनिक मंजूरी दी. 2011 में पुल बनाने का काम शुरू हुआ और इसे दिसंबर, 2015 में पूरा हो जाना था लेकिन बाढ़ के कारण इसमें देरी हुई.
9. पुल की लागत
मंजूरी के वक्त 9.15 किलोमीटर लंबे इस पुल पर आने वाले कुल खर्च का अनुमान 876 करोड़ था जबकि पूरा होते-होते इस पर कुल 2056 करोड़ रुपए खर्च हो गए. एप्रोच रोड को मिलाकर पुल की पूरी लंबाई 28.50 किलोमीटर है.
10. पुल बनाने वाली कंपनी
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर तैयार इस पुल को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और नवयुग इंजीनियरिंग ने बनाया है. इस मॉडल में पुल बनाने के बाद कुछ समय तक नवयुग कंपनी इसे चलाएगी और अपना मुनाफा निकालने के बाद सरकार को सौंप देगी.
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