दिल्ली सल्तनत: सामाजिक आर्थिक संरचना

दिल्ली सल्तनत के दौरान व्यापार में काफी वृद्धि हुई थी. मुद्रा के रूप में चांदी का टंका प्रचालन में था.

Jagran Josh
Nov 28, 2014, 15:39 IST

दिल्ली सल्तनत के काल में सामाजिक-आर्थिक संरचना इस प्रकार है.

दिल्ली सल्तनत के दौरान आर्थिक संरचना

दिल्ली सल्तनत के दौरान व्यापार में काफी वृद्धि हुई थी. इस समय मुद्रा प्रणाली लागू थी. मुद्रा के रूप में चांदी का टंका प्रचालन में था. सड़कें भी अच्छी स्थिति में थीं जोकि बंगाल के सोनारगाव को  दिल्ली, लाहौर, से जोड़ती थीं. संचार प्रणाली भी प्रमुख रूप में मौजूद थी. अर्थात पोस्ट को ले जाने और ले आने के लिए घुड़सवार मौजूद थे.

दिल्ली, लाहौर, मुल्तान, और लखनौती व्यापर के प्रमुख केंद्र थे. इन जगहों पर नए-नए उद्योग मौजूद थे. जैसे- धातु का काम, कागज बनाने, और वस्त्र के रूप में नए उद्योगों का केंद्र. वस्त्र व्यापार चीन और पश्चिम एशिया, के साथ किया जाता था जहाँ पर  घोड़े और हाथी दांत, एवं मसालों को वस्त्रों के स्थान पर दिया जाता था. व्यापार वस्तुतः अरब, व्यापारियों के द्वारा पूरी तरह से हस्तगित किया गया था लेकिन तमिलो, कलिंगों और  गुजरातियों की भी व्यापार में सहभागिता थी.

सल्तनत में अधिकांश लोगों की जीविका का प्रमुख माध्यम मजदूरी थी. कुछ जमींदार समृद्ध थे जिनमें हिंदु के साथ-साथ मुसलमान जमींदार भी शामिल था. सुल्तान और उनके अमीर एक भव्य महल में जीवन-यापन करते थे. कारीगर और दुकानदार मध्यम वर्ग में शामिल थे. इस काल में गुलामी प्रथा भी उपस्थित थी.

राज्य की आय का मुख्य स्रोत खराज़ था जोकि भू-राजस्व के रूप में लिया जाता था. गैर-मुसलमानों से भी इस काल में कर वसूला जाता था जिसे जजिया कहते थे. अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत के इतिहास में पहली बार कर की राशि में पूर्व के 1/6 से बढाकर 1/2 कर दिया था. जबकि पूरे सल्तनत काल में किसानों से उनकी पैदावार का 1/3 भाग लिया जाता था. ज़ज़िया हर हिन्दू पर लगाया जाने वाला कर था. इसी तरह ज़कात नामक एक कर भी लिया जाता था. यह कर वस्तुतः गरीब मुसलमान भाइयों की मदद के लिए अमीर मुसलमानों से लिया जाता था. खुम्स लूट का धन होता था. इस धन का 1/5 राजकोष में तथा 4/5 भाग सैनिकों में बाँट दिया जाता था, लेकिन अलाउद्दीन ख़िलजी एवं मुहम्मद तुग़लक़ लूट के धन का 4/5 भाग राजकोष में जमा करवाते थे तथा शेष 1/5 भाग सैनिकों में वितरित कर दिया जाता था.

दिल्ली सल्तनत के दौरान सामाजिक संरचना

दिल्ली सल्तनत के दौरान,इस काल का  समाज संक्रमण के चरण में था. समाज का बिभाजन पूरी तरह से धर्म पर आधरित था. लोग हिन्दू और मुस्लिम समुदाय में बिभाजित थे. मुस्लिम वर्ग पुनः अमीर और सरदार वर्ग में बिभाजित था. अमीर लोग भी तीन वर्ग में बिभाजित थे: खान, अमीर , और मलिक. जमींदार भी प्रमुख रूप में दिल्ली  सल्तनत में शामिल थे. वे मुख्य रूप से प्रशासनिक संवर्ग में शामिल थे.  

दिल्ली सल्तनत के इतिहास में जब अमीरों नें अपनी सत्ता खोनी प्रारंभ की तो सत्ता के केंद्र के रूप में मुस्लिम समुदाय आगे आया. ये अमीर, असरफ के नाम से जाने जाते थे. असरफों ने समाज के अन्दर प्रमुख स्थान प्राप्त किया था. इसीलिए सामाजिक संरचना के अन्दर उन्हीं प्रामुख स्थान प्राप्त था. ये अमीर अपनी आर्थिक मजबूती और रईसों की तरह के लिबास और खान-पान की वजह से समाज में अलग स्थान प्राप्त किया था. जो अमीर, योद्धा वर्ग में शामिल किये जाते थे उनके द्वारा धीरे-धीरे एक सांस्कृतिक संरचना का निर्माण किया गया. इस समय के इतिहास में तुर्की शासकों और राजपूत शासकों के मध्य राजनीतिक संबध आम बने रहे.

काज़ी और मुइजी वर्ग न्यायिक संरचना में प्रमुख स्थान प्राप्त किये हुए थे. वे इन अमीरों की भी मदद किया करते थे. सल्तनत में मुहत्सिब वर्ग के द्वारा आम मुस्लिम वर्ग के द्वारा शरिया के पालन के तौर-तरीकों का मूल्याङ्कन किया जाता था. ये सभी पद वेतनपरक थे. सल्तनत में काफी संख्या में क्लर्क, छोटे-छोटे अधिकारी और दास समुदाय मौजूद था.

हिंदुओं के समाज की संरचना में कोई प्रतिष्ठित बदलाव नहीं किया गया था. दिल्ली सल्तनत के दौरान, पर्दा प्रणाली का व्यापक प्रचालन हो गया था. उच्च वर्गों में, महिलाओं को पर्दा प्रथा के माध्यम से छिपाया जाता था, लेकिन छोटे वर्गों में महिलाएं काफी स्वतंत्र जीवन का यापन करती थी. इस समय सती प्रथा और विधवा विवाह प्रतिबंधित थे. इस काल में एक अच्छी चीज यह थी कि विधवाओं को उनके पति की संपत्ति में अधिकार दिया जाता था.

मुस्लिम समाज आर्थिक असमानता के आधार पर जातीय और नस्लीय समूह में विभाजित किया गया था. तुर्क, ईरानी, अफगान और भारतीय मुसलमानों के बीच शायद ही कोई वैवाहिक सम्बन्ध इस दौरान कायम थे. समाज में जो लोग हिन्दू से मुसलमान बने थे उन्हें न केवल निचली वरीयता दी जाती थी बल्कि उनकी रैंक भी निम्न थी. हिंदु वर्ग के द्वारा प्रशासन की पूरी स्थानीय व्यवस्था को संभाला जाता था. फिर भी दोनों हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच अतिव्यापन की स्थिति थी. फिर भी दोनों के मध्य सामाजिक और सांस्कृतिक विचारों और विश्वासों में मतभेद विद्यमान थे. इसी वजह से दोनों के मध्य तनाव का माहौल था और उनके मध्य आपसी समझ और सांस्कृतिक समायोजन की कमी भी विद्यमान थी.

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Education Desk

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