प्राकृतिक नुकसान यानी आर्थिक नुकसान
प्रभावित होंगी देशों की अर्थव्यवस्थाएं
संयुक्त राष्ट्र के एक सर्वेक्षण में चेतावनी दी गई है कि धरती पर जिस तरह से प्रकृति का दोहन करके उसका विनाश किया जा रहा है उससे आने वाले वक्त में देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होने लगेंगी। जीबीओ-3 यानी थर्ड ग्लोबल बायोडायवर्सिटी आउटलुक का कहना है कि कुछ इकोसिस्टम ऐसे बिंदु पर पहुँच रहे हैं कि वे मानव समाज के लिए कम लाभदायक साबित होने लगेंगे।
प्राकृतिक विनाश में जंगलों का तेजी से कम होते जाना, पानी के रास्ते में शैवाल का फैल जाना और बड़े पैमाने पर मूंगे की चट्टानों का मरते जाना शामिल है।
पूरा नहीं हुआ लक्ष्य इसके पहले वैज्ञानिक इस बारे में बता चुके हैं कि सरकारें 2010 तक जैव विविधता में होने वाली लगातार कमी पर रोक लगाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने में कामयाब नहीं रही हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002 में जोहानेसबर्ग में हुई एक बैठक में जैव विविधता में होने वाली कमी की दर पर अंकुश लगाने के लिए 2010 का लक्ष्य रखा गया था।
जैव विविधता में ह्रास की दर पहले से 1000 गुना ज्यादा है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार स्तनपाई, रेंगने वाले, पक्षी, जलथलचर और मछलियों की प्रजातियाँ 1970 से 2006 के बीच एक-तिहाई कम हो गई हैं।
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