यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट परीक्षा प्राणी विज्ञान साल्व्ड प्रथम प्रश्न पत्र 2014(सेट-1)

Nov 15, 2016, 12:44 IST

2014 में हुई UP Board इंटरमीडिएट प्राणी विज्ञान प्रथम परीक्षा का प्रश्नपत्र यहाँ हम छात्रों को उपलब्ध करा रहे हैं | इस प्रश्न पत्र के माध्यम से छात्र यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट प्राणी विज्ञान प्रथम परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के स्तर के बारे मे जान सकते हैं |

UP Board 2014 इंटरमीडिएट प्राणी विज्ञान प्रथम परीक्षा का प्रश्न पत्र (up board class 12th Botany First Question Paper) यहाँ हम छात्रों को हिंदी में उपलब्ध करा रहे हैं | प्राणी विज्ञान प्रथम परीक्षा का प्रश्न पत्र हिंदी में उपलब्ध करा कर छात्रों को न सिर्फ प्रश्नों से अवगत कराना है, इसके साथ साथ प्रश्न पत्र को उपलब्ध कराने का उद्देश्य छात्रों को UP Board इंटरमीडिएट प्राणी विज्ञान प्रथम परीक्षा से परिचित कराकर छात्रों को सही मार्गदर्शन कराना है, क्युकि छात्रों को परीक्षा के दौरान प्रश्न पत्रों को देखकर जो भी सवाल होते हैं, वो परीक्षा से पहले समझ आना ज़रूरी है | प्राणी विज्ञान के गतवर्ष प्रश्न पत्र को सही तरीके से प्रेक्टिस कर छात्रों को आने वाली परीक्षा में काफी सहायता मिलती है | इंटरमीडिएट परीक्षा के पुराने प्रश्न पत्र (previous year question paper) छात्रों के लिए काफी सहायक होते हैं | इसी उद्देश्य के साथ हम प्राणी विज्ञान प्रथम गतवर्ष परीक्षा का प्रश्न पत्र छात्रों को उपलब्ध करा कर उन्हें परीक्षा के सही पैटर्न से अवगत करा रहे हैं | अगर छात्र पुराने प्रश्न पत्र का अभ्यास करेंगे तो आने वाले इंटरमीडिएट के परीक्षा में बेहतर से बेहतर अंक प्राप्त कर सकेंगे | इन प्रश्न पत्रों की सहायता से छात्रों को सही मार्गदर्शन मिलेगा, और UP Board इंटरमीडिएट परीक्षा में किस तरह के प्रश्न पूछे जा सकते हैं यह भी समझ आ जायेगा| इस प्रश्न पत्र की मदद से छात्र यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट प्राणी विज्ञान प्रथम गतवर्ष में पूछें जाने वाले प्रश्नों के स्तर के बारे में जानने के साथ साथ उन प्रश्नों का प्रयास भी कर सकते है |

इस प्रश्न पत्र के कुछ साल्व्ड प्रश्न उत्तर यहाँ मौजूद हैं-

प्रश्न: रसांकुर कहाँ पाये जाते है? इनके क्या कार्य है?     

उत्तर: रसांकुर आहारनाल की क्षुद्रांत्र में पाये जाते है| इनके कारण क्षुद्रांत्र की अवशोषण सतह में वृद्धि हो जाती है | पचे हुए भोज्य पदार्थो के अवशोषण का कार्य करते है|

प्रश्न: हार्मोन्स एवं विटामिन्स में अंतर बताइए|    

उत्तर: हार्मोन्स एवं विटामिन्स में अंतर–

क्र०सं०

विटामिन

हॉर्मोन्स

1.

जन्तुओं में विटामिन्स का संश्लेषण नहीं होता| (विटामिन ‘D’ को छोड़कर)|

हॉर्मोन्स का संश्लेसन अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियों में होता है|

2.

ये कार्बनिक अम्ल, एस्टर, स्त्रएड्स अदि होते है| ये प्रोटीन्स नहीं होते है|

ये प्रोटीन्स, स्त्रएड्स ग्लाइकोप्रोटीन्स, एमीनो अम्ल आदि के व्युत्पन्न होते है|

3.

विटामिन्स एन्जाइम्स के घटक या सहएन्जाइम्स का कार्य करते है| ये जैव रासायनिक क्रियाओं को उत्प्रेरित करते है|

हॉर्मोन्स जीन की क्रियाशीलता या कोंशा कला की पाराग्म्यता को प्रभावित करके उपापचय क्रियाओं को प्रभावित करते हैं|

4.

इनकी कमी से अल्पता रोग होते हैं|

इनकी अल्प या अतिस्त्रावण से कार्यात्मक रोग हो जाते हैं|

प्रश्न: वंशागत तथा उपार्जित लक्षणों में अंतर बताइए तथा प्रत्येक का उदहारण दीजिए|

उत्तर: वंशागत लक्षण या भिन्नताएँ (Genetic variariation on characters)–

जिन ढाँचे में परिवर्तन के फलस्वरूप जीवों में उत्पन्न होने वाली विभिन्नताएँ या लक्षण वंशागत होते है| जिन ढांचो में भिन्नता युग्मकजनन या निषेचन के समय युग्मकों के अनियमित रूप से संलयन के फलस्वरूप अथवा उत्परिवर्तन के फलस्वरूप होती है जैसे वर्णांन्धताहिमोफिलिया आदि व्याधियाँ|

उपार्जित लक्षण या भिन्नताएँ (Acquired characters or variations): ये भिन्नताएँ वातावरण प्रभाव (भोजन,  ताप, प्रकाश, नमी आदि) अंगो के उपयोग व अनुपयोग के फलस्वरूप अथवा अन्तः स्त्रावी हार्मोन्स के अल्प या अतिस्त्रावण के फलस्वरूप उत्पन्न होती है| इनको उपार्जित लक्षण कहते है| ये वंशागत नहीं होते| पहलवान की माँसपेशिया अधिक सुगठित एवं सुदृढ़ होती है| भारतीय बालिकाओं के नाक कान छेदने की पुरानी प्रथा है| लेकिन जन्म के समय नाक व कान छिदे हुए नहीं होते|

प्रश्न: आनुवंशिक अभियांत्रिकी के मानव हित में चार अनुप्रयोग लिखिए|   

उत्तर: आनुवंशिक अभियांत्रिकी अनुप्रयोग:

(i)  आनुवंशिक रोगों की पहचान करना|

(ii)  व्यक्तिगत जिन्स को पृथक् करना|

(iii) आनुवंशिक रोंगों का उपचार|

(iv) व्यावसायिक उत्पाद जैसे फ्लेवर सेवर टमाटर, मानव इन्सुलिन, मानव वृद्धि हार्मोन, विभिन्न रोंगों के टीकों का उत्पादन, कीट प्रतिरोधी, जीवाणु प्रतिरोधी, विषाणु प्रतिरोधी पौधे तैयार करना आदि|

प्रश्न: संवहनीय ऊत्तक से आप क्या समझते है? सामान्य संयोजी उत्तक से यह किस प्रकार भिन्न है? रुधिर की संरचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए|                                     

उत्तर: संवहनीय ऊत्तक (Connective Tissue): इसके अंतर्गत रक्त लसिका आते है| इनका मेट्रिक्स तरल प्लाज्मा होता है| प्लाज्मा में स्वेत कोलैजन तन्तु एवं पीले लचीले तन्तु नहीं होते है| प्लाजमा में स्थित कोशिकाएँ रुधिराणुकहलाती है| रुधिराणु प्लाज्मा का स्त्रावण नहीं करते|

रुधिर की संरचना (Sturcture of blood): रुधिर जल से थोड़ा अधिक गाढ़ा, हल्का क्षारीय (pH 7.4) होता है| एक स्वस्थ मनुष्य में रक्क्त शरीर के कुल भार का 7% से 8% होता है| रुधिर के दो मुख्य घटक होते है–

(1) प्लाज्मा (PPlasmsma),           

यह हल्के पीले रंग का, हल्का क्षारीय एवं निर्जीव तरल है| यह रुधिर का लगभग 55% भाग बनाता है| प्लाज्मा में लगभग 90% जल होता है| 8 से 9% कार्बनिक पदार्थ तथा लगभग 1% अकार्बनिक पदार्थ होते है|

(अ) कार्बनिक पदार्थ (Organic Substance)–

रक्त प्लाज्मा में लगभग 7% प्रोटीन होते है| प्रोटीन्स   मुख्यतः एल्बुमिन, प्रोथ्रोम्बिन तथा फाइब्रिनोजन होती है| इनके अतिरिक्त हॉर्मोन्स, विटामिन्स, स्वसन गैसे, हिपैरिन यूरिया, अमोनिया, ग्लूकोसएमिनो अम्ल,    वसा अम्ल, गिल्सरॉल,प्रतिरक्षी आदि होते है|

(ब) अकार्बनिक पदार्थ (Inoooyurtydoooorganiooghic Substance)–

कार्बनिक पदार्थों सोडियम, कैल्सियममैग्नेशियम तथा पोटैशियम के फॉस्फेट, बाइकर्बोबोनेट, सल्फेट या क्लोराइड्स आदि पाए जाते है|

(2) रुधिर कणिकाएँ या रुधिराणु (Blood Cells or Blood CorpuscalesCor)–

ये रुधिर का 45% भाग बनाते है| रुधिराणु तीन प्रकार के होते है| इनमें लगभग 99% लाल रुधिराणु है| शेष स्वेत रुधिराणु तथा रुधिर प्लेटलेट्स होते है|

(अ) लाल रुधिराणु (Red Blood Corpuscles or Erythrocytes)–

मनुष्य में इनकी संख्या 54 लाख प्रति घन मिमी रक्त होती है| स्तनियों के रुधिराणु केन्द्रकरहित, गोल  तथा उभयावतल (biconcave) होते है| इनमें लौहयुक्त यौगिक हिमोग्लोबिन पाया जाता है| ये ऑक्सीजन परिवहन का कार्य करता है| अन्य कशेरुकियों लाल रुधिराणु अंडाकार तथा केन्द्रयुक्त होते है|

(ब) स्वेत रुधिराणु या ल्यूकोसाइट्स (White blood corpuscles or Leucocytes)–

इनकी संख्या 6000 से 10,000 प्रति घन मिमी होती है| ये केन्द्रयुक्त, अमिबाभ तथा रंगहीन होते है| स्वेत रुधिराणु दो प्रकार के होते है– कणिकामय (granulocytes)  तथा कणिकारहित (agranulocytes)|

स्वेत रुधिराणु शरीर की सुरक्षा से सम्बन्धित होते है

कणिकामय स्वेत रुधिराणु का कोशाद्रव्य कणिकामय होते है| इनका केन्द्रक पालियुक्त (lobed) होता है|  ये तीन प्रकार के होती है – (i) बेसोफिल्स (ii) इओसिनोफिल्स तथा (iii) न्यूट्रोफिल्स| न्यूट्रोफिल्स बाह्य पदार्थों का भक्षण करके शरीर की सुरक्षा करते है|

कणिका रहित स्वेत रुधिराणु  का कोशाद्रव्य कणिका रहित होता है| इनका केन्द्रक अपेक्षाकृत बड़ा होता है|  ये दो प्रकार के होते है - (i) ये लिम्फोसाइट्स तथा (ii) मोनोसाइट्स| लिम्फोसाइट्स प्रतिरक्षी निर्माण करके तथा मोनोसाइट्स भक्षकाणु क्रियान द्वारा शरीर की सुरक्षा करते है|

रुधिर के कार्य (Functions of Blood)

1. ऑक्सीजन का परिवहन – लाल रुधिर कणिकाओ का हिमोग्लोबिन (heomoglobin) ऑक्सीजन से  क्रिया करके ऑक्सीहिमोग्लोबिन बनाता है| ऊतकों में पहुँचने पर ऑक्सीहिमोग्लोबिन ऑक्सीजन तथा हिमोग्लोबिन में टूट जाता है| ऑक्सीजन उत्तको द्वारा ग्रहण कर लि जाती है|

2. पोषक पदार्थों का परिवहन – आंत्र से अवशोषित पचे हुए भोज्य पदार्थ रुधिर प्लाज्मा द्वारा शरीर के विभिन्न उत्तकों में पहुँचाए जाते है|

3. उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन – शरीर में उपापचय क्रीयाओं कजे कारण यूरिया आदि उत्सर्जी पदार्थ बनते है| इन्हें रुधिर उत्सर्जी अंगों (वृक्क) में पहुँचा देता है| CO2 प्लाज्मा के द्वारा श्वसनांग तक पहुंचाई जाती है|

4. अन्य पदार्थों का परिवहन – (Transport of other matters)– रुधिर हॉर्मोन्स, एन्जाइम्स, एंटीबॉडीज आदि का परिवहन होता है|

5  रोंगों से बचाव – स्वेत रुधिर कनिकाएँ रोगाणुओं को नष्ट करती है रुधिर अनेक प्रकार के विषैले पदार्थों के प्रति प्रतिवर्ष (antitoxins)  बनाकर इनके हानिकारक प्रभावों से शरीर को सुरक्षा करता है|

6समन्वय करना (Co–ordinations) – रुधिर का प्रमुख कार्य शरीर के विभिन्न अंगों में जल,लवण,  अम्ल-क्षार सन्तुलन को बनाए रखना है|

7. रुधिर शरीर ताप का नियन्त्रण एवं नियमन करता है|

Jagran Josh
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Education Desk

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