हम अक्सर अरब इज़राईल और इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद के बारे मे सुनते रहते हैं। अभी हाल के दिनो मे भी दोनों देश के मध्य हुए भयानक युद्ध के कारण जानमाल की काफी क्षति दोनों पक्षो को उठानी पड़ी। हमे आशावादी रहकर इजरायल-फिलिस्तीनी विवाद समझने में थोड़ी मुश्किल होगी लेकिन कम से कम यह हमें यह समझने में सहायता करेगा कि कैसे इस जटिल विवाद को ख़त्म किया जा सकता है। इस विवाद को अगर हम ध्यान से देखे तो ऐसा लगता है की यह संघर्ष कभी राष्ट्रवादी नहीं रहा है अपितु धार्मिक राजनीति की उपज मात्र है लेकिन कोई भी इस तथ्य को खंडन नहीं कर सकता है कि यहूदियों यहूदी को इजरायल की भूमि का एक ऐतिहासिक अधिकार है।
इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद का एक मात्र कारण यरूशलेम पर अधिपत्य स्थापित करना क्युकी यह यहूदी , इसाई और इस्लाम का धार्मिक स्थल है। इसलिये इज़रायल और फिलिस्तीन दोनों अपनी राजधानी बनाना चाहते हैं। शहर को विभाजित करने का तरीका इजरायल और फिलीस्तीनियों को विभाजित करने वाले मूलभूत मुद्दों में से एक रहा है। अगर धार्मिक इतिहास का आकलन करे तो यहूदी धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म से पूर्व का धर्म है। 1920 के टकराव ने फिलीस्तीनी राष्ट्रवाद का उदभाव का कारक सिद्ध हुआ और अंततः 1947 में इजरायल-फिलिस्तीनी विवाद में बढ़ोतरी हुई और बाद में यह विवाद अरब-इजरायल विवाद में तब्दील हो गया।
इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद का मूल कारण
इजराइल का गठन संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव तथा ब्रिटेन के League of Nation mandate से हुआ था। यहूदियों के लिया एक अलग देश की मांग यु तो बहुत पहले से हो रही थी लेकिन दुसरे विश्वयुध्य में यहूदियों के ऊपर जो अत्याचार हुए थे विशेष तौर पर हिटलर द्वारा इसके फलस्वरूप यहूदियों के लिए अलग राज्य के मांग को अन्तेर्राष्ट्रीय जनमत का समर्थन मिला।
Source: ifamericaknew.org
लेकिन अरब जो फिलिस्तीन में रह रहे थे उन्होंने इजराइल के गठन का विरोध किया। फिलिस्तीन में रह रहे अरब निवासी को पडोसी अरब निवासी का समर्थन मिला विशेष रूप से मिस्त्र, जॉर्डन और सरिया। इस संदर्भ में अरब देशो ने इजराइल को नष्ट करने की कोशिश की लेकिन वे न केवल विफल हुए बल्कि इजराइल ने कई फिलिस्तीनी इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया जिसके कारण फिलिस्तीन राज्य का गठन नहीं हो पाया। युध्य के कारण बहुत सारे फिलिस्तीनी शरणार्थी बन गए और इजराइल के साथ एक समझौते के अंतर्गत (Oslo Agreement) दो इलाकों (गाजा पट्टी और पश्चिमी तट) में फिलिस्तीनो को स्वतंत्रता प्रदान की गयी।
Oslo का समझौता: फिलिस्तीन के लिए अक अलग संप्रभु राज्य का गठन होना चाहिए; यारुसलम शहर यहूदी, इसाई एवं इस्लाम के लिया धार्मिक महत्व रखता है। इस्लाम के लिया मक्का-मदीना के बाद तीसरा महत्वपूर्ण स्थल है वही यहूदी और इसाई के लिए पहले।
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1967 के पहले जेरुसलम दो भागो में बाटा था जिसका एक हिस्सा इजराइल के अधीन था और दूसरा अरब देश जॉर्डन के अधीन था। लेकिन 1967 के युध्य के बाद इजराइल ने पूरे यारुसलम पर कब्ज़ा कर लिया और बाद में इसे अपनी राजधानी घोषित कर दी लेकिन दुनिया के अन्य देशो ने यारुसलम को मान्यता नहीं है।
इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद और वर्तमान परिदृश्य
2017 में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद, कुछ अमरीकीयो का सुझाव था की येरुसलम को मान्यता दी जानी चाहिए जिसका ट्रम्प ने समर्थन किया था। लेकिन बाद में इस्पे विचार-विमर्श करके अमरीकी विदेश विभाग ने इस प्रस्ताव को नामंजूर इस तरह से की, के इस तरह के मान्यता से फिलिस्तीन एवं अरब देशो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और अमरीकी विरोधी भावना का उदभाव होने की आशंका जताई। मेरी राय में इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के समाधान के लिए तीन मुख्य मार्ग हैं और वे निम्नलिखित हैं:
1. (पुनः) वार्ता शुरू,
2. रचनात्मक एकपक्षीय और,
3. शीत शांति
इंटरपोल द्वारा किस प्रकार के नोटिस जारी किए जाते हैं?
70 वर्षों के इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष ने मध्य पूर्व के परिदृश्य को प्रभावित किया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के शांति निर्माण प्रयासों को चुनौती दी है। सबसे हालिया वार्ताएं विफल होने के कारण- अतिरिक्त हिंसा और सार्वजनिक व्यवहार में कट्टरता में बढ़ोतरी होने कारण बातचीत समझौते के लिए संभावनाओं में गिरावट आयी है। इन चुनौतियों का सामना करते हुए और व्यापक अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा हितों पर उनका असर, वर्तमान प्रशासन ने इस संघर्ष को एक राजनयिक प्राथमिकता के रूप में पहचाना है।
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