जानें तमिलनाडु की 'कोविलपट्टी कडलाई मिठाई' को GI टैग क्यों मिला?

तमिलनाडु की प्रसिद्ध ‘कोविलपट्टी कडलई मिठाई' (Kovilpatti Kadalai Mittai) को भौगोलिक संकेत (GI) टैग दिया गया है. इसके लिए आवेदन कोविलपट्टी क्षेत्रीय कडलई मिठाई' निर्माताओं द्वारा दायर किया गया था. यह मिठाई थूथूकुड़ी जिले के कोविलपट्टी और आस-पास के कस्बों और गांवों में सन 1940 से ही निर्मित की जाती है. आइये जानते हैं कि इस मिठाई को यह टैग क्यों दिया गया है.
Kovilpatti Kadalai Mittai
Kovilpatti Kadalai Mittai

'कोविलपट्टी कडलाई मिठाई' का इतिहास (History of Kovilpatti Kadalai Mittai)

आम तौर पर यह मिठाई भारत के विभिन्न हिस्सों में बनायीं जाती है लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसको बनाने का पहला प्रयास भारत की स्वतंत्रता से पहले अर्थात 1940 में एक ग्रोसरी स्टोर चलाने वाले ‘पोनाम्बला’ नादर ने किया था. उन्होंने गुड को गर्म करके उसमें मूंगफली के दाने डालकर यह मिठाई बनायी थी.उन्होंने ही इसे रेक्टेंगुलर आकार भी दिया था.

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भौगोलिक संकेत (GI) टैग क्या होता है? (What is Geographical Indication Tag)

दिसंबर 1999 में, संसद ने भौगोलिक संकेतक माल (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 पारित किया था. यह अधिनियम भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतों के पंजीकरण और उनकी नकल से सुरक्षा प्रदान करता है. 

भौगोलिक संकेत (GI) टैग, एक प्रकार का विशेष नाम या निशान होता हैं जिसकी मदद से किसी कृषि उत्पाद, और निर्मित उत्पाद (मिठाई, हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) को अलग पहचान दी जाती है. यह टैग स्पेशल क्वालिटी और पहचान वाले उत्पाद (जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होता है) को दिया जाता है. 

जिस भी किसी क्षेत्र (देश, प्रदेश और टाउन) को यह टैग दिया जाता है, उसके अलावा किसी टाउन, राज्य और देश को इस नाम को इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होती है. यह टैग 10 वर्षों के लिए दिया जाता है इसके बाद इसे दुबारा प्राप्त करने के लिए फिर से अप्लाई करना पड़ता है.

भारत में अब तक लगभग 361 उत्पादों को GI टैग दिया जा चुका है. भारत में सबसे पहले यह टैग पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में पैदा पैदा होने वाली चाय को दिया गया था.  

तमिलनाडु की 'कोविलपट्टी कडलाई मिठाई' को GI टैग क्यों मिला? (Why Tamil Nadu’s Kovilpatti Kadalai Mittai get GI Tag)

सामान्यतः लोगों के दिमाग में यह बात आ जाती है कि यह मिठाई तो भारत के बहुत से राज्यों में बनायीं जाती है फिर तमिलनाडु को यह टैग क्यों दिया गया है?

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इसका सबसे पहला कारण यह है कि इस मिठाई को बनाने का सबसे पहला प्रयास ‘कोविलपट्टी’ टाउन के गोसर द्वारा ही किया गया था. इस तथ्य की जाँच में समय लगने के कारण ही यह टैग आवेदन करने के लगभग 5 साल बाद दिया गया है.

इसको स्पेशल बनाने का दूसरा कारण इसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री है.

1.विशेष गुड: इसमें जो गुड डाला जाता है वह पूरी तरह से आर्गेनिक तरीके से पैदा किया जाता है और कुछ खास इलाकों में ही इसका उत्पादन होता है. यह गुड काफी सॉफ्ट होता है जिसके कारण यह मिठाई सॉफ्ट रहती है.

2. विशेष पानी: इसमें जो पानी डाला जाता है वह ताम्रपर्णी नदी (Thamirabarani) से ही लिया जाता है.यह नदी पश्चिमी घाट से निकलती है और मन्नार की खाड़ी में गिरती है.इस नदी के पानी के कारण इसका स्वाद अलग हो जाता है.

3. विशेष मूंगफली: इसमें डाली जाने वाली मूंगफली एक विशेष जगह अरुप्पुकोट्टै (Aruppukkottai) में काली मिटटी में पैदा की जाती है.इसे वहीँ से मंगाया जाता है.

इस प्रकार स्पष्ट है कि तमिलनाडु की यह 'कोविलपट्टी कडलाई मिठाई' जिन सभी कच्चे पदार्थों से बनायीं जाती है वे सबसे उत्तम होते हैं. शायद यही कारण है कि यह मिठाई अपने स्वाद में अनोखी है और इसी अनोखेपन के कारण इसे GI टैग दिया गया है.

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इस मिठाई को GI टैग मिलने से इसके द्वारा वैश्विक करेंसी भी प्राप्त की जा सकती है क्योंकि इस मिठाई की सेल्फ लाइफ काफी ज्यादा होती है और इसे दूर बसे ठन्डे देशों में भी निर्यात किया जा सकता है. उम्मीद है कि जल्दी ही इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई देंगे.

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