यूं तो पिछले कुछ वर्षों से भारत में महिला साक्षरता दर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और इस समय भारत की कुल 65 फीसदी से अधिक महिलायें साक्षर हैं. इसी तरह, इन दिनों भारत के स्कूल और कॉलेजों में भी पहले से ज्यादा अनुपात में महिलायें एडमिशन ले रही हैं और जहां तक देश में 10वीं और 12वीं क्लास के एजुकेशनल बोर्ड्स के रिजल्ट्स का प्रश्न है, तो इन रिजल्ट्स में भी पिछले कुछ वर्षों से लड़कियों का प्रदर्शन और पास परसेंटेज लड़कों से बेहतर रहा है. फिर भी, जब भारत में महिला वर्क फ़ोर्स अर्थात कामकाजी महिलाओं का प्रश्न आता है तो लेटेस्ट डाटा के मुताबिक, विश्व बैंक की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 26.97 फीसदी थी और इसी साल विश्व में महिला श्रम बल भागीदारी औसतन 48.47 फीसदी थी. ऐसे में, महिला कर्मचारियों की संख्या में गिरावट के कारणों के बारे में कई तरह के सवाल हमारे मन में उठते हैं. लेकिन, हमें इन कारणों पर जरूरत से ज्यादा चर्चा करने के बजाय इनके सटीक समाधान तलाशने चाहिए. ऐसी परिस्थितियों में, जो भारतीय महिलाओं को सशक्त एवं आदर्श महिला प्रेरणा पुंज चाहिए ताकि आजकल की महिलाएं भी उनसे प्रेरणा प्राप्त करके भारतीय कार्यबल में शामिल होकर देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें. इसलिये, इस आर्टिकल में हम आपके बेहतरीन मोटिवेशन के लिए भारत की कुछ महानतम महिला वैज्ञानिकों के बारे में चर्चा कर रहे हैं. इन महिलाओं ने तत्कालीन समाज और परंपराओं के खिलाफ जाकर अपने लिए कर्म क्षेत्र चुना जो आज भी भारत की करोड़ों महिलाओं के लिए एक आदर्श प्रेरणा पुंज के समान प्रज्जवलित है.

- असीमा चैटर्जी
असीम चैटर्जी ऑर्गेनिक केमिस्ट्री और फाइटोमेडीस्किन के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए मशहूर एक भारतीय केमिस्ट हैं. उनके सबसे उल्लेखनीय कार्य में विन्का अल्कलॉइड पर शोध और एंटी-ऐप्किलेप्टिक और एंटी-मलेरियल ड्रग्स का विकास शामिल हैं. उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के औषधीय पौधों पर काफी काम किया है. उन्होंने वर्ष 1940 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के लेडी ब्रेबोर्न कॉलेज में रसायन विज्ञान विभाग के संस्थापक प्रमुख के तौर पर पद ग्रहण किया. वर्ष 1944 में चटर्जी एक भारतीय विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट ऑफ साइंस की उपाधि ग्रहण करने वाली पहली महिला बनीं.
- जानकी अम्मल एडाथिल कक्कट
जानकी एक भारतीय वनस्पति-वैज्ञानिक थीं जिन्होंने साइटोजिनेटिक्स और फाइटोगोनोग्राफी में वैज्ञानिक अनुसंधान किया. उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्य में गन्ने और बैंगन पर उनका काम शामिल है. उन्होंने केरल के वर्षा-वनों से चिकित्सीय और आर्थिक महत्व के विभिन्न मूल्यवान पौधे एकत्रित किये. उनके परिवार में 6 भाई और 5 बहनें थीं, जहां लड़कियों को बौद्धिक क्रियाकलाप और ललित कलायें सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था. हालांकि, अम्मल ने वनस्पति विज्ञान पढ़ने का निर्णय लिया. तेल्लीचेरी में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, वे मद्रास चली गईं जहां उन्होंने क्वीन मेरी कॉलेज में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और वर्ष 1921 में प्रेसीडेंसी कॉलेज से वनस्पति में ऑनर्स डिग्री प्राप्त की. प्रेसीडेंसी कॉलेज में अपने शिक्षकों के प्रभाव से, जानकी अम्मल में साइटोजेनेटिक्स के अध्ययन का जुनून सवार हो गया. जानकी अम्मल ने इंग्लैंड में क्रोमोसोमल अध्ययन किया और भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण को पुनर्गठित किया. बाद में वे इस संगठन की महानिदेशक भी बनीं.
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- आनंदीबाई गोपालराव जोशी
आनंदीबाई पहली भारतीय महिला चिकित्सकों में से एक थीं. वे भारतीय मूल की पहली महिला थीं जिन्होंने अमरीका जाकर मेडिसिन में अध्ययन किया और ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की. ऐसा माना जाता है कि वे पहली महिला थीं जिन्होंने भारत से अमरीकी भूमि पर कदम रखा. आनंदीबाई का जन्म सन 1880 के दशक में एक परंपरावादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था और 8 वर्ष की छोटी-सी आयु में उनका विवाह हो गया था. 14 वर्ष की आयु में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसकी मृत्यु उपयुक्त चिकित्सीय सहायता समय पर न मिलने के कारण जल्दी ही हो गई. इससे आनंदीबाई के जीवन में एक नया मोड़ आया क्योंकि तब उन्होंने चिकित्सक बन कर लोगों की मदद करने का फैसला कर लिया. उनकी इस यात्रा में उनके पति श्री गोपालराव जोशी ने अपना पूरा सहयोग दिया. उन्होंने आनंदीबाई को शिक्षा प्राप्त करके समाज की मदद करने के लिए हमेशा प्रेरित किया. आनंदीबाई ने 11 मार्च, वर्ष 1886 में एमडी सहित अपनी ग्रेजुएशन पूरी की. उनकी थीसिस का विषय ‘आर्य हिंदुओं में प्रसूति’ था. उनकी ग्रेजुएशन पूरी होने पर, रानी विक्टोरिया ने आनंदीबाई को एक बधाई संदेश भेजा था. न्यू यॉर्क में अपनी शिक्षा पूरी करने के 1 वर्ष के बाद, भारत लौटने पर कमजोर स्वास्थ्य और ट्यूबरक्लोसिस (TB) के रोग के कारण आनंदीबाई की मृत्यु हो गई.
- अदिति पंत
अदिति अंटार्टिका पहुंचने वाली पहली महिला हैं. सुदीप्ता सेनगुप्ता के साथ, वे वर्ष 1983 में अंटार्टिका में भारतीय अभियान का एक हिस्सा थीं. अदिति ने जब अलिस्टर हार्डी की किताब ‘दि ओपन सी’ पढ़ी तो उन्हें समुद्र विज्ञान को एक पेशे के तौर पर अपनाने की प्रेरणा मिली. उस समय वे पुणे विश्वविद्यालय से बीएससी की पढ़ाई कर रही थीं. उन्हें हवाई विश्वविद्यालय में मरीन साइंस या समुद्री विज्ञान के अध्ययन के लिए अमरीकी सरकार से छात्रवृत्ति मिली. उन्होंने वेस्टफील्ड कॉलेज, लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की. उनकी पीएचडी थीसिस ‘समुद्री शैवाल का शरीर क्रिया विज्ञान’ के बारे में थी. अपनी पढाई पूरी करने के बाद, वे भारत आ गईं और उन्होंने गोवा में राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान ज्वाइन किया.
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- राजेश्वरी चैटर्जी
राजेश्वरी जी कर्नाटक से पहली महिला इंजीनियर थीं. वे कर्नाटक में वर्ष 1922 में पैदा हुई थीं. उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपनी दादी द्वारा स्थापित स्कूल में प्राप्त की. अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने पर उन्होंने बंगलुरू केंद्रीय महाविद्यालय में दाखिला लिया और गणित विषय में बीएससी (ऑनर्स) और एमएससी की डिग्रीयां प्राप्त कीं. इन दोनों परीक्षाओं में मैसूर विश्वविद्यालय में वे प्रथम आईं. वर्ष 1943 में अपनी एमएससी की डिग्री प्राप्त करने के बाद राजेश्वरी जी भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बंगलुरू में सूचना के क्षेत्र में तत्कालीन इलेक्ट्रिकल टेक्नोलॉजी विभाग में एक रिसर्च स्टूडेंट के रूप में शामिल हुईं. वर्ष 1946 में, दिल्ली सरकार द्वारा उन्हें एक ‘मेधावी छात्रा’ के रूप में चुना गया और विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की गई. तब उन्होंने अमरीका में अध्ययन करने का निर्णय लिया.
इन महिलाओं ने ऐसे कार्य कर दिखाए जो उस समय पुरुषों के लिए भी अकल्पनीय थे. उक्त महिलाएं दुनिया भर की महिलाओं के लिए सबसे सशक्त प्रेरणास्रोत हैं और भविष्य में भी बनी रहेंगी. यदि उस समय ये महिलायें ऐसे असाधारण कार्य कर सकीं तो आजकल, जब महिलाओं के पास विभिन्न अधिकार, बेहतर सुविधायें और तरक्की करने के काफी अवसर मौजूद हैं; फिर उन्हें आगे बढ़ने से कौन रोक सकता है?
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