UP Board कक्षा 10 विज्ञान के 18th जीवन की प्रक्रियाएँ (activities of life or processes) के 11th पार्ट का स्टडी नोट्स यहाँ उपलब्ध है| हम इस चैप्टर नोट्स में जिन टॉपिक्स को कवर कर रहें हैं उसे काफी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और जहाँ भी उदाहरण की आवश्यकता है वहाँ उदहारण के साथ टॉपिक को परिभाषित किया गया है| इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:
1. जल का प्रकाश अपघटन
2. प्रकाश संश्लेषण क्रिया में पर्णहरिम की आवश्यकता का प्रदर्शन
3. प्रकाश संश्लेषण क्रिया में O2 का निष्कासन
4. प्रकाश संश्लेषण में कार्बन डाइआक्साइड की आवश्यकता का प्रदर्शन
5. पर्णरन्ध्र की संरचना
6. पर्णरन्ध्र (स्टोमेडा) के कार्य
7. वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक
जल का प्रकाश अपघटन (Photolysis of water) : प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशिक अभिक्रिया (light reaction) में पर्णहरिम सौर प्रकाश से फोटोन (photon) की क्वांटम (quantum) उर्जा को अवशोषित करके उर्जान्वित हो जाता है| उर्जान्वित पर्णहरिम की उपस्थिति में जल के अणुओं का विच्छेदन होने से हाइड्रोजन (H+) तथा हाइड्राक्सिल (OH-) आयन्स प्राप्त होते हैं| उर्जान्वित पर्णहरिम से मुक्त उर्जा युक्त इलेक्ट्रान की उर्जा NADP हाइड्रोजनग्राही द्वारा बन्ध (bond) में संचित कर ली जाती है|
जल - अपघटन के फलस्वरूप O2 मुक्त होती है। उन प्रकाशिक क्रियाओं के लिए ऊर्जा NADPH2 में संचित होती है।
प्रकाश संश्लेषण क्रिया में पर्णहरिम की आवश्यकता का प्रदर्शन(Demonstration of necessity of chlorophyll in Photosynthesis):
क्रोटोन के पौधे को अन्धकार में रखकर स्टार्चविहीन कर लेते हैं। इसके बाद पौधे को प्रकाश मे रखते हैं। कुछ समय पश्चात् स्टार्च परीक्षण करने पर ज्ञात होता है कि पत्ती का हरा भाग ही नीला - काला होकर धनात्मक परीक्षण देता हैं। पत्ती का शेष भाग आयोडीन के रंग के कारण पिला रह जाता हैं इससे स्पष्ट होता है कि प्रकाश संश्लेषण हेतु पर्णहरिम आवश्यक है।
प्रकाश संश्लेषण क्रिया में O2 का निष्कासन (Release o O2 in process of Photosynthesis) :
प्रकाश संश्लेषण में हरे पौधे सौर उर्जा तथा पर्णहरिम की उपस्थिति मे CO2 तथा जल का प्रयोग करके मण्ड (कार्बोहाइड़ेट) बनाते है आर O2 मुक्त करते हैं।
एक बीकर के पानी में जलीय पौधा जैसे हाइड्रिला लेते हैं। उस पर एक कीप को उल्टा ढक देते हैं। कीप को नलिका पर पानी से भरी परखनली इस प्रकार लगाते हैं| कि परखनली का पानी नीचे न गिरे। इस बात का भी ध्यान भी रखते है कि उसमें किसी प्रकार से वायु प्रवेश न कर सके अब उपकरण को धूप में रख देते हैं। कुछ समय के पश्चात् कीप की नली में बुलबुले उठते दिखाई देते है। धीरे - धीरे परखनली में गैस एकत्र होने से ऊपर खाली जगह बन जाती हैं। परीक्षण करने से ज्ञात होता है कि यह गैस आक्सीजन हैं जलती तीली ले जाने पर तीली तेजी से जलती है अथवा पायरोगैलोल का प्रयोग करने पर परखनली पुन: पानी से भर जाती है क्योकि पायरोगैंलोल O2 को सोख लेता है। यदि उपकरण को अन्धकार में रख दिया जाए तो बुलबुले निकलने बन्द हो जाते हैं। यह सिद्ध करता है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में O2 मुक्त होती है|
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : जीवन की प्रक्रियाएँ, पार्ट-VI
प्रकाश संश्लेषण में कार्बन डाइआक्साइड की आवश्यकता का प्रदर्शन (Demonstration of necessity of CO2 in Photosynthesis):
एक बड़े व चौडे मुँह की बोतल की कॉर्क को दो लम्बे अर्धांशों में काट लेते है। एक मण्डरहित पौधे की पत्ती को दोनो अर्धांशों के बीच, पौधे पर लगे हुए या अलग करके बोतल के आधी बाहर तथा आधी अन्दर करके लगाते हैं। बोतल में पहले से ही पोटेशियम हाहड्रॉक्साइड (KOH) का घोल रखते हैं। यह बोतल के अन्दर की समस्त कार्बन डाइआक्साइड के सोख लेगा। कुछ समय तक प्रकाश संश्लेषण के लिए सम्पूर्ण उपकरण को धूप मे रख देते हैं। बाद में, पौधे की किसी पत्ती में मण्ड परीक्षण (starch test) करने पर ज्ञात होगा कि पत्ती में मण्ड बन गया हैं (प्रकाश संश्लेषण से पहले ग्लूकोस और बाद में मण्ड का निर्माण होता है)। अब बोतल से पत्ती को निकालकर इसमें भी मण्ड' परीक्षण करते हैं। पत्ती का जो भाग बोतल के अन्दर था उसमें मण्ड नहीं बना, जो भाग बाहर था उसमें मण्ड बना, अर्थात् प्रकाश संश्लेषण हुआ। वास्तव में बोतल की वायु में जो CO2 थी वह KOH ने सोख ली; अत: पत्ती के इस भाग को CO2 नहीं मिली अन्य सभी कारक (factors) मिलने पर भी कार्बन डाइआक्साइड की अनुपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण नहीं हुआ। अत: यह कथन सिद्ध हुआ कि कार्बन डाइआंक्साइड प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक हैं। इस प्रयोग को माल का प्रयोग (Moll's experiment) कहते हैं।
प्रकाश संश्लेषण के अन्तिम उत्पाद तथा उनका महत्त्व (End Products of Photosynthesis and their Importance):
प्रकाश संश्लेषणा के अन्त में सामान्यत: ग्लूकोस (glucose) बनता है जो बाद में पौधों की कोशिकाओं में मण्ड (starch) के रुप में परिवर्तित होकर संचित हो जाता है। पौधे कुछ अन्य पदार्थों के सहयोग से वसा, प्रोटीन्स आदि का निर्माण भी करते हैं। इस प्रकार सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ जीवधारियों को हरे पौधों अर्थात उत्पादकों (producers) से मिलते हैं। खाद्य पदार्था में से काबोंहाइड्रेटूस तथा वसा का उपयोग प्रमुखत: ऊर्जा उत्पादन के लिए होता है जबकि प्रोटीन्स तथा कुछ वसाओं का उपयोग शरीर की वृद्धि में किया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रकाश संश्लेषण में उत्पादित आँक्सीजन पौधों सहित सभी जीवों के श्वसन के लिए आवश्यक है। यहीं नहीं, प्रकाश संश्लेषण के द्वारा प्रकृति में क्राबंन डाइआक्साइड का उपयोग होने से वातावरण में आक्सीजन तथा कार्बन डाइआक्साइड का सन्तुलन बना रहता है।
पर्णरन्ध्र की संरचना (structure of stomata):
पत्ती तथा अन्य हरे, मुलायम, वायवीय भागो की बाह्य त्वचा में विशेष प्रकार की संरचनाएं पाईं जाती है जिन्हें पर्णरन्ध्र कहते है। ये रक्षक कोशिकाएँ (guard cells) से घिरे रहते है। रक्षक कोशिकाएँ सेम के बीज की तरह तथा हरित्तलवकयुकत्त होती है। इनको बाहरी भित्ति पतली तथा भीतरी (छिद्र की ओर) भित्ति मोटी होती है।रक्षक कोशिकाओं के चारों ओर बाह्य त्वचा की कोशिकाओं को सहायक अतिरिक्त कोशिकाएँ कहते है (देखिए चित्र 18.10 A,B)।
पर्णरन्ध्र (स्टोमेडा) के कार्य (Function of stomata) :
पर्णरन्ध्र (stomata) के दो प्रमुख कार्य है-
1. वाष्पोत्सर्जन (transpiration) : ऊतकों से अतिरिक्त जल का निष्कासन जलवाष्प के रूप में होता है।
2. वात - विनिमय (Gaseous exchange): भीतरी ऊतक के लिए कार्बन डाइआंक्साइड तथा आँक्सीजन आदि गैसों का आदान-प्रदान, पर्णरन्धों के द्वारा होता है। इस प्रकार के श्वसन तथा प्रकाश संश्लेषण में सहायता करते है।
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक (External Factors Affecting transpiration):
बाह्य कारक वाष्पोत्सर्जन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं। ये निम्नलिखित है-
1. वायु की आर्दता, 2 वायु की गति, 3 तापमान, 4 वायु का दाब, 5 प्रकाश की तीव्रता।
1. वायु को आर्दता (Humidity of Air): वायु की आर्द्रता वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करती है। वायु की आईना बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन को दर कम हो जाती है और आर्द्रता घटने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ जाती है।
2. वायु को गति (Wind Velocity): स्थिर वायु में पौधे के समीपवर्ती वातावरण में वायु की आर्द्रता बढ़ जाती है अत: वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। वायुगति के कारण पौधे के समीपवर्ती क्षेत्र में वायु को आर्द्रता कम बनी रहती है, इससे वाष्पोत्सर्जन को दर बढ जाती हैं।
3. तापमान (Temperature): ताप का सीधा प्रभाव वायु की आर्दता पर पड़ता है। तापमान अधिक होने पर वायु की आर्द्रता कम हो जाती है अत: तापमान के बढने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ेगी और कम होने पर वाष्पोत्सर्जन दर भी कम होती जाती है।
4. वायु का दाब (Atmospheric Pressure): वायु का दाब कम होने पर वायु की ज़लवाष्प ग्रहण करने की शक्ति बढ़ जाती है (आर्दता कम हो जाने के करण) अत: वाष्पोत्सर्जन की दर ऐसीअवस्था में बढ़ जाती है, इसके विपरीत दशा में जब वायुमण्डलीय दाब अधिक हो तो जलवाष्प धारिता कम हो जाने के कारण वाष्पोत्सर्जन पर उल्टा प्रभाव पड़ेगा अर्थात् वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
5. प्रकाश की तीव्रता (Light intensity): साधारणत: रात्रि में स्टोमेटा (रन्ध्र) बन्द रहते है। प्रकाश में स्टोमेटा खुल जाते है, अत: वाष्पोत्सर्जन की दर प्रकाश तीव्रता के साथ-साथ बढ़ती जाती है। प्रकाश की तीव्रता बढ़ने से तापमान बढ़ता है, वायु की आर्दता कम हो जाती है, अत वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। प्रकाश क्री तीव्रता के कम होने पर वातावरण का तापमान कम हो जाता है, वायु की आर्द्रता बढ़ जाती है, वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : जीवन की प्रक्रियाएँ, पार्ट-VII
Comments
All Comments (0)
Join the conversation