Indian Railways: भारतीय रेलवे प्रतिदिन 13 हजार से अधिक यात्री ट्रेनों का संचालन करता है, जो कि रेलवे के 7,000 से अधिक रेलवे स्टेशनों से गुजरती हैं। इसके साथ ही इसके पास 76 हजार से अधिक यात्री कोच मौजूद हैं। भारतीय रेलवे में यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या करोड़ों में है। इन सभी आंकड़ों के साथ भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। वहीं, एशिया में इसका स्थान पहला है। आपने भारतीय रेलवे में दो प्रकार के कोच देखे होंगे, जो कि लाल और नीले रंग के होते हैं। इनमें नीले रंग के कोच को ICF कोच कहा जाता है। हालांकि, क्या आपको पता है कि इन कोच का रंग नीला क्यों होता है। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे।
पहले लाल रंग के हुआ करते थे कोच
भारतीय रेलवे में 1990 से पहले सभी आईसीएफ कोच लाल रंग के हुआ करते थे। हालांकि, कुछ प्रीमियम ट्रेनें, जैसे राजधानी और डेक्कन क्वीन जैसी ट्रेनों का रंग अलग था। सामान्य कोच को लाल रंग करने से पहले आइरन ऑक्साइड लगाया जाता था, जिससे इन ट्रेनों पर जंग न लगे। इसके बाद इन ट्रेनों को गहरा लाल रंग दिया जाता था, जिस गल्फ कलर भी कहा जाता है।
1990 के बाद बदले थे रंग
दरअसल, पहले रेलवे में ब्रेकिंग सिस्टम के लिए वैक्यूम का इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि, यह ज्यादा कारगर नहीं थे, जिसको देखते हुए बाद में रेलवे में एयर ब्रेक्स को लाया गया। इन ब्रेक्स सिस्टम को पुराने ब्रेक सिस्टम को हटाकर बदला जाना था। क्योंकि, रेलवे में प्रीमियम ट्रेनों के रंग पहले से ही अलग थे। ऐसे में रेलवे को इन ट्रेनों की पहचान आसानी से हो गई थी। लेकिन, लाल रंग के कोच में जब ब्रेक्स सिस्टम बदले गए तो, कोच की पहचान करना मुश्किल था। इस वजह से रेलवे की ओर आईसीएफ कोच के रंग बदलने का निर्णय लिया गया। इसके लिए रेलवे के अधिकारियों की ओर से नीला रंग फाइनल किया गया। साल 2005 तक लाल रंग के डिब्बे पूरी तरह से नीले रंग में तब्दील हो गए थे।
कहां है ICF कोच फैक्ट्री
भारतीय रेलवे में इंटग्रल कोच फैक्ट्री भारतीय रेलवे का प्रमुख डिब्बा कारखाना है, जो कि चेन्नई के पेरंबुर में स्थित है। इस फैक्ट्री की स्थापना 1955 में की गई थी, जिसके बाद यहां भारतीय रेलवे के लिए हजारों सवारी डिब्बे बनाए गए हैं। वहीं, इस फैक्ट्री की ओर से कुछ कोच का विदेश से भी निर्यात किया जाता है।