UP Board कक्षा 10 विज्ञान के 20th पौधों और जन्तुओं में नियंत्रण और समन्वयन (coordination in plants.) के 2nd पार्ट का स्टडी नोट्स यहाँ उपलब्ध है| हम इस चैप्टर नोट्स में जिन टॉपिक्स को कवर कर रहें हैं उसे काफी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और जहाँ भी उदाहरण की आवश्यकता है वहाँ उदहारण के साथ टॉपिक को परिभाषित किया गया है| इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:
तन्त्रिका कोशिका (nerve cell) :
तन्त्रिका ऊतक का निर्माण तन्त्रिका कोशिकाओं (nerve cells neurons) से होता है। ये कोशिकाएँ अत्यधिक जटिल और सबसे लम्बी होती है। इनमें कोशिका विभाजन नहीं होता। एक तन्त्रिका कोशिका में निकलने वाले प्रवध्रों (processes) की संख्या के आधार पर इन्हें – एकध्रुवीय (unipolar), द्विध्रुवीय (bipolar) तथा बहुध्रुवीय (multipolar) कहते हैं| कुछ निम्न श्रेणी के जन्तुओं जैसे हाइड्रा (Hydra) में अध्रुवीय (non-polar) तन्त्रिका कोशिकाएँ पाई जाती है| इनमें प्रवर्धन तो होते है, किन्तु प्रवध्रों में क्रियात्मक विभेदीकरण नहीं होता| बहुध्रुवीय तंत्रिका कोशिका में निम्नलिखित भाग होते हैं|
1. कोशिकाकाय (Cyton): तन्त्रिका कोशिका का यह प्रमुख भाग है| कोशिकाकाय के जीवद्रव्य में केन्द्रक, माइटोकान्द्रिया, गाल्जिकाय, वसा बिन्दु, अन्त: प्र्द्रव्यी जालिका आदि के अतिरिक्त अनियमित आकार के निसल के कण (Nissl’s granules) होते हैं|
2. तन्त्रिका कोशिका प्रवर्ध (Neurites): तन्त्रिका कोशिकाओं में दो प्रकार के प्रवर्ध मिलते हैं|
(i) वृक्षिका या द्रुमिका (Dendrites): ये अपेक्षाकृत छोटे एवं शाखामय प्रवर्ध होते हैं जो सिरों की और क्रमश: सँकरे होते जाते हैं| वृक्षिका प्रेरणा या उद्दिप्न्नो को कोशिकाकाय की ओर ले जाते हैं|
(ii) अक्ष तन्तु या त्न्त्रिकाक्ष (Dendrites): कोशिकाकाय से एक, लगभग बराबर मोटाई का लम्बा प्रवर्ध अक्ष तन्तु या त्न्त्रिकाक्ष (axon) निकलता है| अन्तिम छोर पर तन्त्रिकाक्ष से समकोण पर कुछ शाखाएँ निकलती हैं| तन्त्रिकाक्ष के अन्तिम छोर पर घुण्डीनुमा रचनाएं साइनैप्तिक घुन्डियाँ (synaptic buttons) होती हैं| ये अन्य तन्त्रिका कोशिका के व्रक्षाभ (dendroid) के साथ संधि बनाती हैं|
तंत्रिकाक्ष चारों ओर से तंत्रिकाच्छद (neurilemma) से घिरा होता है। यह श्वान कोशिकाओं (Schwann cells) से बना होता है। तंत्रिकाच्छद स्थान-स्थान यर तंत्रिकाक्ष (axon) से चिपकी रहती है इन स्थानों को रैन्वियर की पर्वसन्धि (nodes of Ranvier) कहते हैं। कुछ तंत्रिका तन्तुओं में तंत्रिकाक्ष के चारों ओर मायलिन नामक वसीय पदार्थ पाया जाता हैं। इन तन्तुओं को मज्जावृत (medullated) कहते हैं। जब तंत्रिका तन्तु में मायलिन का अभाव होता है तो इन्हें मज्जारहित (non medullated) कहते हैं। तंत्रिकाक्ष (axon) उद्दीपन या प्रेरणा को दूसरी तन्त्रिका कोशिका के वृक्षाभ में पहुँचाते हैं।
तंत्रिका कोशिकाओं के तंत्रीकाक्ष मिलकर तंत्रिका बनाते हैं। तंत्रिका ग्राही अंगो से उद्दीपनों को मस्तिष्क या रीढ़ रज्यु तक पहुंचाती है और प्रेरणा को मस्तिष्क या रीढ़ रज्जु से कार्यकारी अंगो (effector organs) तक पहुंचाती हैं।
तन्त्रिका कोशिकाओं के प्रकार (Types of Neurons):
तन्त्रिका कोशिकाएं कार्य के आधार पर निम्न प्रकार की होती है-
1. संवेदी न्यूरान (sensory neuron) : ये अंगो से संवेदनाओं को ग्रहण करते है तथा केन्दीय तन्त्र (मस्तिष्क अथवा सुषुमना) को पहुंचाते हैं। ये संवेदी तंत्रिका बनाते हैं।
2. प्रेरक न्यूरॉन (Motor neuron) : ये केन्दीय तंत्र से प्रेरणाओं को लेकर कार्यकारी अंगों तक पहुंचाते हैँ। ये चालक तंत्रिका बनाते हैं।
3. मिश्रित न्यूरॉन (Mixed neuron) : कुछ तंत्रिकाओं में संवेदी न्यूरॉन तथा चालक न्यूरॉन दोनों पाए जाते है, इन तत्रिकाओं को मिश्रित तन्त्रिका कहते हैं।
तंत्रिका तन्त्र की कार्यिकी (Physiology of Nervous system) : प्राणी संवेदी अंगों से उद्दीपनों को ग्रहण करता है। उद्दीपन संवेदी तंत्रिकाओं (sensory nerves) द्वारा एक मेरु रज्जु या मस्तिष्क में पहुँचते है। मेरु रज्जु तथा मस्तिष्क समन्वय केन्द्र का कार्य करते हैं। ये उद्दीपनों का विश्लेषण करते है और प्रतिक्रिया को प्रेरणा के रूप में चालक तन्तिकाओं (motor nerves) द्वारा कार्यकर अंगो (effectors) तक पहुंचाती हें। कार्यकर अंग मुख्यतया पेशियों या ग्रन्थियां होती हैं। ये प्रेरणा के अनुसार प्रतिक्रिया करते हैं।
स्वायत तंत्रिका तन्त्र (Autonomic Nervous System):
यह तन्त्र स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, किन्तु इसका नियन्त्रण अन्तत: केन्दीय तन्त्रिका तन्त्र द्धारा ही होता हैं।
स्वायत्त तंत्रिका तन्त्र के दो घटक होते है-
1 अनुकम्पी तंत्रिका तन्त्र (Sympathetic Nervous System)
2 परानुकम्पी तंत्रिका तन्त्र (Parasympathetic Nervous System)
अनुकम्पी तथा परानुकम्पी तत्रिका तन्त्र का अंगो पर परस्पर विरोधी नियन्त्रण होता है। अनुकम्पी तंत्रिका तन्त्र प्रतिकूल अवस्था में ऊर्जा व्यय करके शरीर की सुरक्षा प्रतिक्रियाओं को बढाता हैं जबकि परानुकम्पी तंत्रिका तन्त्र ऊर्जा संचय से सम्बन्धित क्रियाओं को बढाता हैं।
क्र.सं. | अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र (Sympathetic Nervous System) | परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र (Parasympathetic Nervous System) |
1. 2. 3. 4. 5. 6.
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10. | आँख की पुतली को फैलाता है| अश्रु ग्रन्थियों से अश्रु स्त्रावण को प्रेरित करता है| लार ग्रन्थियों से लार के स्त्रावण को कम करता है| श्वसन दर (breathing rate) को बढाता है| हृदय की स्पंदन दर को बढाता है| रुधिर वाहिनियों को सिकोड़कर रुधिर दाब बढ़ाता है| आहार नाल में पेशियों को शिथिल करके क्रमाकुंचन गति को कम करता है| एड्रीनल (adrenal), अन्त: स्त्रावी ग्रन्थि को प्रेरित करके सुरक्षा प्रतिक्रिया को बढाता है| यकृत तथा अग्न्याशय के स्त्रावण को कम करता है| मूत्राशय की पेशियों को शिथिलकर फैलाता है| | आँख की पुतली को फैलाता है| अश्रु स्त्रावण को रोकता है| लार स्त्रावण को बढाता है| श्वास दर को कम करता है हृदय की स्पंदन दर को कम करता है| त्वचा आदि की रुधिर वाहिनियों को फैलाकर रुधिर दाब को घटाता है|
इन्सुलिन के स्त्रावण को उत्तेजित करता है|
यकृत तथा अग्न्याशय के स्त्रावण को प्रेरित करता है| मूत्राशय की पेशियों को सिकोड़ता है| |
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