स्कूल में छात्रों को जांचने के लिए कई तरह टेस्ट्स लिए जाते है जैसेकि आंतरिक मूल्यांकन, तिमाही परीक्षण, अर्द्ध-वार्षिक परीक्षा, और फिर एक वार्षिक परीक्षा। ये परीक्षाएं छात्रों के परिणाम में यह साबित करती हैं कि छात्र अब अगले स्तर की ओर बढ़ने के योग्य है| लेकिन अक्सर यह भी देखा गया है कि छात्र परीक्षाओ में पास तो हो जाते हैं लेकिन यह अनुमान नहीं लगे जा सकता की उन्होंने पिछले स्तर से कुछ सीखा या नहीं या वे कितना सीख पाए है| यह कई बार एक बहस का विषय बन जाता है कि क्या परीक्षाएं केवल विद्यार्थियों की याद रखने की क्षमता को जांचने के लिए होती है? और स्टूडेंट्स ने क्या और कितना सीखा है इसका कैसे पता चलेगा?
यहां हम छात्रों के ज्ञान को मापने वाली परीक्षाओं के दोनों पहलुओं पर चर्चा करते हैं या नहीं?
पक्ष में -
- परीक्षाओं के लिए ज़्यादातर छात्र सिर्फ उतना ही पढ़ते है की परीक्षा में पास हो सके और वे सब पढ़ा हुआ ज़्यादा समय तक याद भी नहीं रख पातें|
- परीक्षाएं छात्रों की समझ और ज्ञान का सही अनुमान इसलिए भी नहीं लगा सकती क्यूंकि परीक्षाएं उन् विषयों पर आधारित होती है जिनका वास्तविक जीवन से कोई सीधा संबंध नहीं होता
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- इसके अलावा, हर परीक्षा में विद्यार्थियों को एक सीमित समय के अंदर ही परीक्षा देनी होती है जिससे केवल विद्यार्थियों के कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा जवाब याद करके लिखने जैसा कौशल पता चल पता है। यह नहीं की उन्हें उस विषय में कितना ज्ञान को प्राप्त हुआ है
- टेस्ट पेपर में पूछे गए सभी प्रश्न केवल किताब पर आधारित होते हैं और वास्तविक जीवन स्थितियों के साथ इसका कोई सीधा संबंध नहीं है, जो छात्रों को रोज़मर्रा की जिंदगी में सामना करते हैं इसलिए हम यह परीक्षा के परिणाम से यह अनुमान नहीं लगा सकते की स्टूडेंट्स इसे असल ज़िन्दगी में अपना पाएंगे या नहीं|
- अक्सर परीक्षाएं खत्म होने के बाद स्टूडेंट्स अगली परीक्षा की तैयारी में लग जाते है इसलिए वे उसी हिसाब से हर परीक्षा की तैयारी करते है और समझने की बजाय सिर्फ याद करके परीक्षा में उत्तर ज़रूर लिख आते है लेकिन कितना याद रख पातें है यह बता पाना थोड़ा मुश्किल है|
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विरुद्ध -
- परीक्षाओं के लिए तैयारी करने के लिए विद्यार्थियों को सब कुछ याद करना होगा जो की बिना किसी अवधारणा को समझे करना मुश्किल होगा|
- टेस्ट पेपर में पूछे जाने वाले प्रश्न ऐसे विषयों पर आधारित होते हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वास्तविक जीवन, स्थितियों और तथ्यों से जुड़े होते हैं|
- परीक्षाएं सीमित समय की अवधि में इसलिए निर्धारित की जाती हैं ताकि यह पता चल सके की विद्यार्थी जो परीक्षण पेपर में प्रश्न पूछे गए है उन्हें अपने बुद्धि-कौशल और क्षमता से कैसे हल करने का प्रयास करता है। इससे छात्रों के ज्ञान और कौशल का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है|
- याद रखना भी सीखने का एक मुख्य हिस्सा होता है और सभी विद्यार्थियो को सीखने के लिए अपनी स्मरण-शक्ति का उपयोग करना होगा| और यही सब सीखी हुई बातें अपने वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में अपनी चेतना से अनुमान लगाकर सामना करना होगा| उदाहरण के लिए, जब स्टूडेंट्स को कॉलेज के दौरान इंजीनियरिंग की शिक्षा दी जाती है तो वे इसी पढ़ाई को परीक्षा में याद रखते है और साथ ही अपने कैरियर को सफल बनाने के लिए इंजीनियरिंग के सिद्धांतों को अपने काम में लागू करते है|
निष्कर्ष: परीक्षाओं ही एकमात्र तरीका है जिससे विद्यार्थी की शिक्षा के स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है और यह पता लग जाता है की स्टूडेंट्स अपनी आगे की पढ़ाई और career के लिए तैयार है या नहीं। यदि परीक्षाएं किताबी शिक्षा पर आधारित ना हो तो छात्रों के कौशल और ज्ञान की जांच करना वास्तव में मुश्किल होगा। अगर परीक्षक छात्रों के ज्ञान को जांचना चाहते हो तो वे परीक्षा में प्रश्न पूछने के लिए एक नया पैटर्न बना सकते हैं।
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